सोनिया गांधी की कमजोर डोर – रामबहादुर राय

रामबहादुर राय

जो हथकंडा इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने घोटाले की जांच से बचने के लिए अपनाया था, वही हथकंडा नेशनल हेराल्ड मामले में सोनिया गांधी अपना रही हैं। इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को जांच से बच जाने का अवसर इसलिए मिल सका क्योंकि राजनीतिक अस्थिरता ने उनकी सहायता की। आज की परिस्थिति दूसरी है।

प्रवर्तन निदेशालय के अफसर नेशनल हेराल्ड घोटाले में सोनिया गांधी और राहुल गांधी से पूछताछ कर रहे हैं। इसके विरोध में कांग्रेस सड़कों पर उतरी है। बेहतर तो यह होता कि सोनिया गांधी कांग्रेस कार्यकर्ताओं से अपील करती कि यह हमारा निजी मामला है। इसे राजनीतिक रंग देने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। कांग्रेस कार्यकर्ताओं का विरोध प्रदर्शन और कुछ नहीं है सिवाय इसके कि एक घोटाले को राजनीतिक रंग देकर हल्का किया जाए। आश्चर्य और अफसोस इस बात पर है कि मीडिया में अब तक इस बारे में कहीं कुछ छपा हुआ नहीं दिखा। यह जरूर आया है कि आज के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से जब गुजरात दंगे पर एसआईटी पूछताछ कर रही थी तब उन्होंने उसे राजनीतिक रंग नहीं दिया था। मुख्यमंत्री पद पर वे थे। चाहते तो ऐसा कर सकते थे और अहमदाबाद की सड़कों पर भाजपा के हजारों लोग उतर आते। लेकिन नेशनल हेराल्ड घोटाला में कांग्रेस का रुख नया नहीं है, पुराना है, परम्परागत है। कांग्रेस की परम्परा में यह कोई नई बात नहीं है।

इसे ही समझने और जानने की जरूरत है। ऐसा कर नेशनल हेराल्ड घोटाले का वह पहलू जान सकते हैं जिसे छिपाया जा रहा है। इसे जानने के लिए इतिहास में लौटने और उस इतिहास को फिर से देखने का यह समय है। जवाहरलाल नेहरू पर कभी भ्रष्टाचार का कोई दाग नहीं लगा। इसका कारण था। पंडित नेहरू की और बहुत सारी कमजोरियां थी। जिसकी लोग चर्चा भी करते हैं। परंतु शायद ही कोई होगा जो पंडित  जवाहरलाल नेहरू को भ्रष्ट राजनेता मानता हो। उनकी नीतियों से मतभेद थे। उसका स्वरूप दोहरा था। कांग्रेस के भी बड़े नेता उनकी नीतियों से मतभेद रखते थे। यह जगजाहिर है। दूसरे दलों के नेता भी उनकी आलोचना नीतिगत स्तर पर करते रहे हैं। पंडित नेहरू के जमाने में अनेक घोटाले भी हुए। चार तो बहुत चर्चित रहे। एक, जीप घोटाला। दो, मुद्गल प्रकरण। तीन, मुंद्रा सौदा। चार, सिराजुद्दीन मामला। इन मामलों में यह आरोप अवश्य लगे कि पंडित नेहरू ने इन भ्रष्टाचारों के सूत्रधारों के प्रति सख्ती नहीं बरती।

इन घोटालों में उनके सहयोगी मंत्री लिप्त थे। उन्हें जाना भी पड़ा। उस समय किसी विरोधी नेता ने भी यह नहीं आरोप लगाया कि पंडित नेहरू उस भ्रष्टाचार के हिस्सेदार हैं। इसके ठीक विपरीत उनकी बेटी इंदिरा गांधी जब प्रधानमंत्री बनी तो तमाम भ्रष्टाचारों के आरोपों से वे घिर गर्इं। भ्रष्टाचार का एक दौर ही शुरू हो गया। उनपर जो आरोप लगे वे पद के दुरुपयोग मात्र तक सीमित नहीं थे। आरोपों का दायरा बहुत बड़ा था। राजनीति में जब उनकी तूती बोलती थी और उन्हें लोकसभा में तीन-चौथाई से ज्यादा बड़ा बहुमत प्राप्त था, उन दिनों भ्रष्टाचार के इतने किस्से एक के बाद दूसरे और उन किस्सों की अटूट श्रृंखला लोगों के दिमाग पर छा गई। कुछ किस्से उनके सहयोगियों के थे। जैसे ललित नारायण मिश्र पर लगे आरोप। क्या उनकी हत्या राजनीतिक नहीं थी? इसे तब भी पूछा गया और आज भी वह प्रश्न बना हुआ है।

कहना यह है कि पंडित नेहरू के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की देख-रेख में भ्रष्टाचार बढ़े। उनके बेटे संजय गांधी ने उसे अपने फायदे के लिए खूब बढ़ाया। प्रधानमंत्री निवास और कार्यालय का उसे प्रोत्साहन मिला। चौधरी वंशीलाल का एक कथन खोटे सिक्के की तरह पूर भारत में घूमा। किसी बातचीत में चौधरी वंशीलाल ने कहा था कि मैंने बछड़े को अपने पास रख लिया है। उनका इशारा संजय गांधी की ओर था। संयोग से उन दिनों कांग्रेस का चुनाव निशान गाय और बछड़ा ही था। लोग मजाक में कहते थे कि गाय तो इंदिरा गांधी और बछड़ा है, संजय गांधी। उस संजय गांधी को छोटी कार बनाने का शौक चढ़ा। उसके लिए कायदे कानून को एक ओर रखकर चौधरी वंशीलाल की सरकार ने बड़ी जमीन आवंटित की। 

इस बारे में लोकसभा के सदस्य श्यामनंदन मिश्र, मधुलिमये और ज्योतिर्मय बसु ने जनहित में सवाल पूछे। उनके सवालों को नियम के विपरीत तोड़ा-मरोड़ा गया। यह कार्य लोकसभा सचिवालय ने किया। उन सवालों को एक कर जो जवाब सरकार की ओर से दिया गया वह ऐसे विवाद को जन्म देने का कारण बना, जिसे मारुति कार घोटाला कहते हैं। यह पहला घोटाला था जिसका संबंध प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे से था। सत्ता की धौंस में उस घोटाले को दबाया गया। यह बात अलग है कि विपक्ष ने संसद के पटल पर अपनी लड़ाई जारी रखी। अपनी कुर्सी बचाने के लिए इंदिरा गांधी ने लोकतंत्र की हत्या की। राजनीतिक भ्रष्टाचार की यह कहानी लोग जानते हैं। उसकी उन्हें सजा जनता ने दे दी।

लोकतंत्र की वापसी हुई। जनता शासन कायम हुआ। मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। वे एक ईमानदार लेकिन अड़ियल प्रधानमंत्री के रूप में याद किए जाते हैं। उनके कार्यकाल में शाह आयोग बना और मारुति घोटाले की जांच शुरू हुई। चूंकि मोरारजी देसाई दूध का दूध और पानी का पानी करना चाहते थे। जिससे इंदिरा गांधी भयभीत थीं। भय उसे ही होता है जो अपराध करता है। उनके अपराध सामने आते उससे पहले ही जोड़-तोड़कर इंदिरा गांधी ने जनता पार्टी तोड़वा दी। उन पर जो जांच हो रही थी वह अधर में लटक गई। जांच में सहयोग करने के बजाए इंदिरा गांधी ने उसे राजनीतिक रूप दिया। संजय गांधी के गुर्गों ने सड़क पर उधम मचाया। उससे एक बात नई सामने आई। राजनीति का वह ऐसा पाठ है जो हर भ्रष्ट राजनेता तुरंत कंठस्थ कर लेता है।

वह पहला उदाहरण था जब भ्रष्टाचार को राजनीतिक तिकड़म से भू-समाधि दे दी गई। उससे लोक मानस को जो आघात लगा वह सामाजिक जीवन में एक ऐसा नासूर है जो अब तक ठीक नहीं हुआ है। भ्रष्टाचार को राजनीतिक सदाचार बनाने की वह घटना है। वह अगर अकेली घटना होती तो उसे परम्परा नहीं कहते। लेकिन वैसी ही दूसरी घटना इंदिरा गांधी के बेटे राजीव गांधी के शासन में हुई। कौन नहीं जानता! यह सभी जानते हैं कि बोफोर्स सौदे में राजीव गांधी आकंठ डूबे हुए थे। उसके उजागर होने से पहले राजीव गांधी का दूसरा नाम था, मिस्टर क्लीन। बोफोर्स सौदे के आरोप जैसे-जैसे लोगों तक पहुंचे कि प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर दाग लगने शुरू हुए। साफ-सुथरे माने जाने वाले राजीव गांधी भ्रष्टाचार के कीचड़ में न केवल फंसे बल्कि उनकी मान-मर्यादा चली गयी। चुनाव में कांग्रेस हारी।

विश्वनाथ प्रताप सिंह ने ही बोफोर्स के सौदे में दलाली खाने के मामले को जनता की अदालत में पहुंचाया था। जनता ने उनपर भरोसा किया। वे प्रधानमंत्री पद पर पहुंचे। जनता ने माना कि एक फकीर प्रधानमंत्री बना है। इससे उम्मीद बनी कि बोफोर्स सौदे की जांच अपने मुकाम तक पहुंचेगी। वह नहीं पहुंची। उसी हथकंडे से नहीं पहुंची जिसकी खोज इंदिरा गांधी ने की थी। वही हथकंडा नेशनल हेराल्ड मामले में सोनिया गांधी अपना रही

हैं। जो बात कांग्रेस नहीं समझ रही है और इस कारण भारी भ्रम में वह है। उसे 2022 के यथार्थ को देर-सबेर स्वीकार करना होगा। इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को जांच से बच जाने का अवसर इसलिए मिल सका क्योंकि राजनीतिक अस्थिरता ने उनकी सहायता की। सजा से बच जाने में उन्हें सफलता मिली। आज की परिस्थिति दूसरी है।

एक दशक पहले की बात है। डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने एक अदालत में मामला दर्ज किया कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने धोखाधड़ी से नेशनल हेराल्ड की कम्पनी एसोसिएटेड जर्नल लिमिटेड (एजेएल) की संपत्ति और जमीन को हथिया लिया है। जांच के दौरान यह मामला मनी लॉन्ड्रिग के रूप में सामने आया। उसके लिए सोनिया गांधी और राहुल गांधी से पूछताछ की गई है। पहले आयकर विभाग ने जांच की, अब प्रवर्तन निदेशालय जांच कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से इस मामले ने दिलचस्प मोड़ ले लिया है। प्रिवेंशन आॅफ मनी लॉन्ड्रिग एक्ट (पीएमएलए) पर सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला सुनाया है वह अपराधियों को बच निकलने के जो-जो रास्ते हो सकते हैं, उन्हें बंद करता है। इसी तरह राजनीतिक स्थिरता के कारण वह हथकंडा कांग्रेस के काम नहीं आएगा जो अब तक आता रहा है। इसे सोनिया गांधी और राहुल गांधी जानते हैं। फिर भी उसी परम्परा को अपनाया है जिससे अब तक नेहरू वंश अपना बचाव करता रहा है। उसे राजनीतिक विवेक के सहारे नये यथार्थ का सामना करना होगा।

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