भारत सेक्युलर बना रहे, तभी “केरल स्टोरी” का अर्थ है !!

के .विक्रम रावचर्चित फिल्म “दि केरल स्टोरी” की समालोचना के पहले इसी मसले पर उन व्यक्तियों की उक्तियां पेश हैं जो हिंदुत्व, भाजपा और संघ के कट्टर निंदक हैं, बैरी हैं, उनसे चिढ़ते हैं, घिन करते हैं। शुरू करें कामरेड वीएस अच्युतानंदन के बयान से जो अगले 20 अक्टूबर (2023) को सौ वर्ष के हो जाएंगे। केरल के माकपा मुख्यमंत्री के नाते नई दिल्ली में (24 जुलाई 2010) को उन्होंने कहा था : “अगले दो दशक में केरल मुस्लिम बहुल प्रदेश हो जाएगा।” उनका अंदेशा था कि धनबल शादी आदि तथा अन्य प्रलोभनों द्वारा हिंदू युवतियों का मतांतरण हो रहा है।
     इन्ही आशंकाओं की पुष्टि की थी माकपा नेता पिनरायी विजयन (अधुना मुख्यमंत्री) ने अगले ही दिन (25 जुलाई 2010) (इंडियन एक्सप्रेस)। उस वक्त मनमोहन सिंह सरकार में रेल राज्य मंत्री तथा इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के नेता ई. अहमद ने माकपा मुख्यमंत्री को “हिंदुत्व का प्रचारक” करार दिया था। एक अंतराल के बाद सोनिया-कांग्रेसी मुख्यमंत्री ईसाई मतावलंबी श्री ओमन चांडी ने (25 जून 2011) बताया था कि गत दस वर्षों में तीस हजार जन मुस्लिम बने। इनमें कई अफगानिस्तान, पश्चिम एशिया और तालिबान, इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया तथा अल कायदा शिविर में भेजे गए। केरल में 2011 तक हिंदू आबादी 54.73 प्रतिशत, मुसलमान 26.56 और ईसाई 18.38 फ़ीसदी थे। कुल जनसंख्या तीन करोड़ पैंतीस लाख थी। यह सरकारी रपट है। माकपा के आरोप के आधार में वे सारे तथ्य पेश किए गए थे कि किस भांति गैर-मुस्लिम मलयाली लोग खाड़ी देशों में जाकर आतंकी संगठनों की मदद से तटवर्ती राज्य केरल में धर्मांतरण कराते हैं। पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया, कोझीकोड की थर्वियातुल इस्लाम सभा और मरकजल हियादा किशोरियों को मुसलमान बनाते हैं। हिंदू युवतियों की बिंदी मिटाकर हिजाब लगाने पर विवश करते हैं। एक विस्तृत शोध पर आधारित अपनी रपट में (2016 में) “टाइम्स ऑफ इंडिया” ने छापा था कि छः हजार लोगों ने केरल में इस्लाम कबूला था। कोझीकोड और मल्लापुरम जिलों में ही 5,793 लोग (2011 से 2015) मुसलमान बने। इनमें 1074 ईसाई थे। केरल की इकोनामी पेट्रो डॉलर है। भारतीय प्रवासी सबसे अधिक मुद्रा अपने देश को भेजते हैं। भारतवंशियों ने 2017 में 69 अरब डालर भेजा। यह राशि 1991 में महज तीन अरब डालर थी। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा केरल में आता है, जो चालीस फ़ीसदी तक है। संयुक्त अरब अमीरात में केरल के लोग बहुत बड़ी संख्या में रहते हैं। मलयाली भाषा का अखबार “माध्यमम” खाड़ी के देशों में भी छपता है। उन्नीस संस्करण में से छः खाड़ी देशों से निकलते हैं। मलयाली भाषा हर चैनल पर आधे घंटे का खाड़ी के देशों पर केंद्रित कार्यक्रम प्रसारित होता है।
    अब इस फिल्म के कानूनी पहलू पर भी गौर कर लें। फिल्म पर रोक का प्रयास अदालतों में किया गया। तीन हाईकोर्टों तथा स्वयं सर्वोच्च न्यायालय बार बार अवसर दिया सुनवाई का। अंततः खारिज कर दिया। कहीं भी राहत नहीं मिली। मद्रास हाई कोर्ट ने एक जनहित याचिका (4 मई 2023) को खारिज कर दिया था। फिल्म के रिलीज पर रोक लगाने की मांग की गई थी। चेन्नई के एक पत्रकार की याचिका थी कि देश की संप्रभुता और एकता को फिल्म प्रभावित करेगी। उन्होंने तर्क दिया कि फिल्म केरल को आतंकवादी-समर्थक राज्य के रूप में चित्रित करता है। जस्टिस जगदीश चंद्रा और जस्टिस सी. सरवनन की अवकाशकालीन पीठ ने जनहित याचिका को खारिज कर दिया क्योंकि केरल हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही फिल्म की रिलीज के मुद्दे पर विचार कर लिया था।
     सर्वोच्च न्यायालय ने प्रथम याचिका (2 मई 2023) को सुनी थी। कोई भी राहत नही दी। निरस्त करने वाली खंडपीठ में न्यायमूर्ति के. मैथ्यू जोसेफ थे। साथ में न्यायमूर्ति श्रीमती बी.वी. नागारत्नम। वे पूर्व प्रधान न्यायधीश ईएस वेंकटरमैय्या की पुत्री हैं तथा स्वयं भारत की प्रथम महिला प्रधान न्यायमूर्ति नामित होंगी। समाजवादी पार्टी द्वारा समर्थित राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल याचिकाकर्ताओं के वकील थे। न्यायमूर्ति जोसेफ स्वयं केरल उच्च न्यायालय के जज तथा उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायमूर्ति रहे थे। उनके पिता स्व. न्यायमूर्ति के.के. मैथ्यू द्वितीय प्रेस आयोग के अध्यक्ष थे। सर्वोच्च न्यायालय में अप्रत्याशित तौर से दो दिन बाद दूसरी याचिका दायर की गई जिसे प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ तथा न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ ने खारिज कर दी। उन्हें उच्चतम न्यायालय का जज बनाने में मोदी सरकार तनिक आनाकानी कर रही थी। न्यायमूर्ति जोसेफ की अध्यक्षता वाली पीठ ने उत्तराखंड राज्य में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार द्वारा 2016 में राष्ट्रपति शासन लगाने के आदेश को रद्द कर दिया था।
     “केरल स्टोरी” में युवा नर्स शालिनी के फ़ातिमा बनने की कहानी है। अदा शर्मा ने ही फातिमा की भूमिका निभाई है, जो एक हिंदू मलयाली नर्स है उसे बाद में ISIS जॉइन कराया जाता है। इस फ़िल्म में जब शालिनी से पूछा जाता है, कि उसने ISIS में कब और कैसे शामिल हुई ? तब पता चलता है, कि केरल में ISIS ब्रेनवाश कर हिंदू लड़कियों को मुसलमान बना कर उन्हें इस आतंकी संगठन में शामिल करवाता है। धर्मांतरण हिंदू लड़कियों का ही नहीं ईसाई लड़कियों का भी हो रहा है। फ़िल्म का निर्देशन सुदीप्तो सेन ने किया है और निर्माता विपुल अमृतशाह हैं।
     फिल्म में निरीह हिंदू और ईसाई लड़कियों को सेक्स स्लेव बना कर अरब देशों में भेजा जाता है। एक अड़ियल कठमुल्ला कहता है : “युवती को फंसाओ, गर्भवती बना दो।” तब वह विवश युवतियों को कलमा पढ़ाता है। पूरा वैश्विक इस्लामी एजेंडा दिखाया जाता है। मुल्ला कहता है : “आलमगीर औरंगजेब का सपना था कुल हिन्द को दारुल इस्लाम बनाएं। उस मकसद को हासिल करना है।” फिल्म अभिनेत्रियों से हिंदू देवी देवता पर भद्दी बातें कहलाई जाती हैं। ईसाई नर्स से मुल्ला कहता है : “तुम्हारा ईसा मसीह खुद सूली पर चढ़ा दिए गए हैं। वे तुम्हे क्या बचाएंगे ? केवल अल्लाह ही बचा सकता है।” यही सारांश है। कई मायने रखता है।
[लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं]

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