मोरेश्वर नीलकंठ (मोरोपंत) पिंगले संकलन के उत्कट अभिलाषी

प्रज्ञा संस्थानसंघ के वरिष्ठ प्रचारक मोरोपंत पिंगले को देखकर सब खिल उठते थे। उनके कार्यक्रम हास्य-प्रसंगों से भरपूर होते थे। लेकिन साथ ही वे गहन चिंतक एवं कुशल योजनाकार भी थे। संघ नेतृत्व द्वारा सौंपे गए हर कार्य को उन्होंने नई कल्पनाओं के आधार पर सर्वश्रेष्ठ ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उनका जन्म 30 अक्टूबर 1919 को हुआ था। वे बचपन में मेधावी होने के साथ ही बहुत चंचल एवं शरारती भी थे। 1930 में वे स्वयंसेवक बने और 1941 में नागपुर के मौरिस कॉलेज से बी. ए. करके प्रचारक निकले। प्रारंभ में उन्हें मध्य प्रदेश के खंडवा में सह विभाग प्रचारक बनाया गया। इसके बाद वे मध्य भारत के प्रांत प्रचारक और फिर महाराष्ट्र के सह प्रांत प्रचारक बने। क्रमश: पश्चिम क्षेत्र प्रचारक, अखिल भारतीय शारीरिक प्रमुख, बौद्धिक प्रमुख, प्रचारक प्रमुख तथा सह सरकार्यवाह के बाद वे केंद्रीय कार्यकारिणी के सदस्य रहे।

संघ के प्रथम प्रचारक उमाकान्त केशव (बाबा साहेब) आप्टे ने इतिहास में सम्यक दृष्टि एवं सत्यापन के लिए बड़ा कार्य किया। किंतु उनके जीवनकाल में उनके विचारों को मूर्त रूप नहीं दिया जा सका। उनके देहांत के बाद 1973 में मोरोपंत  पिंगले की प्रेरणा से नागपुर में ‘बाबा साहेब आप्टे स्मारक समिति’ की स्थापना हुई। बाद में इसी समिति के अंतर्गत ‘अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना’ का गठन किया गया। मोरोपंत को समय-समय पर दिए गए विविध प्रवृत्ति के कामों के कारण अधिक याद किया जाता है। इनमें छत्रपति शिवाजी की 300वीं पुण्यतिथि पर रायगढ़ में भव्य कार्यक्रम, डॉ. हेडगेवार की समाधि का निर्माण तथा उनके पैतृक गांव कुन्द कुर्ती (आंध्र प्रदेश) में कुलदेवता के मंदिर की प्रतिष्ठापना, बाबा साहेब आप्टे स्मारक समिति के अंतर्गत विस्मृत इतिहास की खोज, वैदिक गणित तथा संस्कृत का प्रचार-प्रसार आदि उल्लेखनीय हैं।

आपातकाल में भूमिगत रहकर तानाशाही के विरुद्ध आंदोलन चलाने में मोरोपंत की बहुत बड़ी भूमिका थी। 1981 में मीनाक्षीपुरम् कांड के बाद संघ ने हिंदू जागरण की जो अनेक स्तरीय योजनाएं बनाईं, उसके मुख्य कल्पक एवं योजनाकार मोरोपंत ही थे। इसके अंतर्गत ‘संस्कृति रक्षा निधि’ का संग्रह और ‘एकात्मता रथ यात्रा’ का सफल आयोजन हुआ। विश्व हिंदू परिषद के मार्गदर्शक होने के नाते उन्होंने ‘श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन’ को हिंदू जागरण का मंत्र बना दिया। श्रीराम जानकी रथ यात्रा, ताला खुलना, श्रीराम शिला पूजन, शिलान्यास, श्रीराम ज्योति, पादुका पूजन आदि कार्यक्रमों ने देश में धूम मचा दी।  इन सभी आयोजनों की कल्पना व रचना में मोरोपंत की प्रमुख भूमिका थी। 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी कलंक का परिमार्जन इसी का सुपरिणाम था। गोवंश रक्षा के क्षेत्र में उनकी सोच बिल्कुल अनूठी थी। उनका मत था कि गाय की रक्षा किसान के घर में हो सकती है, गोशाला या पिंजरापोल में नहीं। गोबर एवं गोमूत्र भी गोदुग्ध जैसा ही उपयोगी पदार्थ है। यदि किसान को इनका मूल्य मिलने लगे, तो फिर कोई गोवंश को नहीं बेचेगा।

मोरोपंत की प्रेरणा से गोबर और गोमूत्र से साबुन, तेल, मंजन, कीटनाशक, फिनाइल, शैंपू, टाइल्स, मच्छर क्वाइल एवं दवाएं आदि सैकड़ों प्रकार के निर्माण प्रारंभ हुए। ये मानव, पशु और खेती के लिए बहुपयोगी हैं। अब तो गोबर और गोमूत्र से लगातार 24 घंटे जलने वाले बल्ब का भी सफल प्रयोग हो चुका है। 1983-85 तक मोरोपन्त ने लुप्त वैदिक सरस्वती नदी के अनुसंधान के लिए एक अभियान शुरू किया। उन्होंने हरियाणा में सरस्वती नदी के उद्गम-स्थल से चलते हुए राजस्थान, बहावलपुर एवं गुजरात की कच्छ की खाड़ी तक विद्वानों की टोली (पुरातत्त्ववेत्ता व इतिहासविद्) के साथ एक लंबी शोधपरक यात्रा की। इस शोध-अभियान से सिद्ध हो गया कि सारस्वत सभ्यता का आधार सरस्वती नदी किन्हीं प्राकृतिक कारणों से विलुप्त हो गई थी। शोध में सरस्वती सभ्यता का प्राचीन अवशेष मिले। तदंतर योजना ने मोरोपन्त के निर्देशन में सरस्वती को स्थापित किया। भारतीय-इतिहास को एक नया आयाम दिया, जिससे कपोल-कल्पित वैदेशिक मानसिकता वाले इतिहास को ध्वस्त करने में सफलता मिली।

उनका मत था कि भूतकाल और भविष्य को जोड़ने वाला पुल वर्तमान है। अत: इस पर सर्वाधिक ध्यान देना चाहिए। उन्होंने हर स्थान पर स्थानीय एवं क्षेत्रीय समस्याओं को समझ कर कई संस्थाएं तथा प्रकल्प स्थापित किए। महाराष्ट्र सहकारी बैंक, साप्ताहिक विवेक, लघु उद्योग भारती, नाना पालकर स्मृति समिति, देवबांध (ठाणे) सेवा प्रकल्प, कलवा कुष्ठ रोग निर्मूलन प्रकल्प, स्वाध्याय मंडल (किला पारडी) की पुनर्स्थापना आदि की नींव में मोरोपंत ही हैं। उनके जीवन में निराशा एवं हताशा का कोई स्थान नहीं था। वे सदा हंसते-हंसाते रहते थे। उन्हें महाराष्ट्र में ‘हिंदू जागरणाचा सरसेनानी’ (हिंदू जन जागरण के सेनापति) की उपाधि से विभूषित किया गया। 21 सितंबर 2003 को नागपुर में उन्होंने अंतिम सांस ली।

 (साभार युगवार्ता )

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