सरकार का एक ही धर्मग्रंथ है ‘भारत का संविधान’ – नरेन्द्र मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 नवंबर, 2015 को अपने भाषण में कहा कि ‘सरकार का एक ही धर्मग्रंथ है-भारत का संविधान। देश संविधान से ही चलेगा।’ जिस प्रधानमंत्री का संविधान के प्रति ऐसे नेक विचार हैं, उनके शासन में क्‍या संविधान सचमुच खतरे में है या इस चुनाव में लोकतंत्र और संविधान को विपक्ष एक बड़ा मुद्दा बनाने का प्रयास कर रहा है।

लोकसभा के इस आम चुनाव में विपक्ष खाली हाथ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता आसमान पर है। ऐसे में विपक्ष लोगों से कहे तो क्या कहे! उसे कुछ भी सूझ नहीं रहा है। इसका एक ऐतिहासिक कारण है। लोकसभा के ज्यादातर चुनावों में विपक्ष प्रधानमंत्री की विफलताओं को मुद्दा बनाता रहा है। यह चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सफलता और उनके कार्यकाल की सार्थकता से भरापूरा है। इसके अगर प्रमाण यहां बताने लगें, तो पूरी एक किताब नाकाफी होगी। लेकिन विपक्ष को कुछ तो कहना ही है, नहीं तो वे अपनी उपस्थिति कैसे दर्ज करा पाएंगे। लेकिन विपक्ष की विडंबना देखिए। वे एक स्वर से जो-जो मुद्दे उछाल रहे हैं, वे सभी लौटकर उन्हें बुरी तरह घायल और अपंग बना दे रहे हैं।

साफ है कि विपक्ष मुद्दे के अभाव में खुद से लड़ रहा है। इसे उदाहरणों से समझना सरल है। एक दिन लालू प्रसाद यादव ने टिप्पणी की कि नरेंद्र मोदी का कोई परिवार नहीं है इसलिए वे परिवारवाद के विरुद्ध हैं। उन्हें अगर यह याद होता कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लीक से हटकर पिछले साल लालकिले के प्राचीर से घोषित किया था कि भारत का हर नागरिक मेरा परिवार है। इसे ही 15 अगस्त को अपना संदेश बनाने के लिए उन्होंने संबोधित किया, ‘मेरे परिवार जनों।’ जैसे ही लालू ने यह भूल की कि जवाब में लोगों ने अपने ‘एक्स’ प्रोफाइल पर अपने नाम के आगे जोड़ा, ‘मोदी का परिवार।’  लालू प्रसाद बेचारे हो गए। इसलिए क्योंकि वे अपने परिवारवाद की रक्षा में बड़बोले बने थे।

इस मोर्चे पर बुरी तरह पिट जाने के बाद विपक्ष ने नया मोर्चा खोला। वह भारतीय संविधान का है। राहुल गांधी अपनी हर सभा में बोलते हुए सुने जा रहे हैं कि संविधान को खतरा है। कांग्रेस के चेहरे हैं, राहुल गांधी। वे जो बोल रहे हैं, उनके ही ढंग और ढर्रे पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को चलना पड़ता है। वे पढ़े-लिखे हैं। उन्हें राजनीतिक जीवन का लंबा अनुभव है। यह कहना कठिन है कि वे जो भी चुनाव के दौरान बोल रहे हैं, उस पर उनको विश्‍वास भी है या नहीं। लेकिन वे भी तोता रटंत शैली में राहुल गांधी की तरह कह रहे हैं कि भाजपा से सबसे बड़ा खतरा संविधान को है। इसी तर्ज पर विपक्ष के दूसरे नेताओं के भी बयान आए हैं। भाजपा ने नारा दिया है, इस बार, 400 पार। इसे भी विपक्ष ने संविधान से जोड़ने की जुगत बैठाई। विपक्ष समझाना चाहता है कि भाजपा अगर चार सौ की संख्या लोकसभा में पार कर गई तो वह संविधान बदल देगी। यह भयादोहन की राजनीति है।

इस तरह इस चुनाव में लोकतंत्र और संविधान को विपक्ष एक बड़ा मुद्दा बनाने का प्रयास कर रहा है। क्या यह वास्तव में मुद्दा है? इस प्रश्‍न का संबंध इससे है कि क्या संविधान और लोकतंत्र खतरे में है? इसकी पड़ताल करने से पहले यह जानना जरूरी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा का संविधान के प्रति क्या दृष्टिकोण है। अपनी सभाओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बार-बार कहा है कि ‘मैं गरीब के घर से निकल कर आप सबके आशीर्वाद से यहां तक पहुंचा हूं, तो डॉ. राजेंद्र प्रसाद और बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर के संविधान की देन है।’ एक दूसरी सभा में उन्होंने कहा कि ‘घमंडिया गठबंधन के लोग झूठ फैलाना बंद करें। संविधान डॉ. राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में डॉ. भीमराव अंबेडकर के दिल की कलम से लिखा गया है। यह महान है। इसे कोई बदल नहीं सकता।’ उस सभा से उन्होंने पूरे देश को याद दिलाया कि उन्होंने ही संविधान दिवस की शुरुआत कराई।

यह बहुत पुरानी बात नहीं है। 11 अक्टूबर, 2015 को बाबा साहब अंबेडकर स्मारक के शिलान्यास का अवसर था। उसी समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि ‘हमारी सरकार ने 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाना तय किया है।’ स्वाभाविक ही था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा को कार्यान्यवित करने के लिए एक अधिसूचना जारी की जाती। वह हुई। जिसमें संविधान दिवस मनाने का निर्णय घोषित किया गया था। विपक्ष यह जानता है कि संविधान खतरे में नहीं है। वह यह भी जानता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संविधान की मूल भावना के अनुरूप समावेशन का भगीरथ अभियान चलाया है। ऐसे राजनेता से क्या संविधान को खतरा हो सकता है! लेकिन विपक्ष झूठ-मूठ इसे मुद्दा बनाने की विफल कोशिश कर रहा है। कांग्रेस के नेता अपनी निराशा-हताशा छिपा नहीं पा रहे हैं। वे इसी कारण बार-बार कह रहे हैं कि ‘लोकतंत्र और संविधान को बचाने का यह आखिरी मौका है।’

निराशा मन की एक ग्रंथि है। यह वास्तव में उलझन होती है। लेकिन हताशा तो घायल मन की एक अवस्था है। कांग्रेस का यह दौर इसी अवस्था का परिचायक है। कांग्रेस के नेताओं को क्या यह याद नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही हैं जिन्होंने संविधान दिवस मनाने की घोषणा कर एक नई संवैधानिक चेतना की लहर देश में पैदा कर दी। उन्हें यह भी याद रहना चाहिए कि कांग्रेस की सरकारों ने समय-समय पर संविधान को चोट पर चोट पहुंचाई। इसका सबसे बड़ा प्रमाण तो इमरजेंसी का वह समय है जब संविधान के शरीर को तो घायल किया ही गया और उसकी आत्मा को भी पिजड़े में बंद रखा गया। जिसे जनता ने आजाद कराया।

विपक्ष याद करे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 नवंबर, 2015 को अपने भाषण में कहा कि ‘सरकार का एक ही धर्मग्रंथ है-भारत का संविधान। देश संविधान से ही चलेगा।’ एक विशेष अवसर पर संसद में यह उनका कथन है। डॉ. भीमराव अंबेडकर की 125वीं जयंती के अवसर पर लोकसभा में बहस हुई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने समापन भाषण में तब यह बात कही। तो क्या कांग्रेस इसे भूल गई है? क्या वह देश को गुमराह कर रही है? कांग्रेस के नेता इतने भुलक्कड़ नहीं हैं। वे जानबूझकर इसे मुद्दा बनाने की ताक में हैं। लेकिन देश की जनता जानती है और मानती भी है कि संविधान का सम्मान अगर किसी प्रधानमंत्री ने बढ़ाया है तो वे स्वयं नरेंद्र मोदी हैं।

तो फिर क्यों कांग्रेस सहित पूरा विपक्ष इसे ही मुद्दा बना रहा है? इसका उत्तर खोजना सरल है। कांग्रेस और विपक्ष नहीं चाहता कि भारत का लोकतंत्र उस सपने को साकार करे जिसे डॉ. भीमराव अंबेडकर ने देखा था और 25 नवंबर, 1949 को संविधान सभा के दर्पण से पूरे देश को दिखाया था। उनके कथन का यह अंश है, ‘हमें केवल राजनीतिक लोकतंत्र से ही संतुष्‍ट नहीं हो जाना चाहिए। उसे सामाजिक लोकतंत्र में बदलना चाहिए।’ उन्होंने सामाजिक लोकतंत्र की एक परिभाषा भी की थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उसे साकार कर रहे हैं। डॉ. अंबेडकर के सामाजिक लोकतंत्र का एक लोकवृत्त है। जिसमें वंचित अपना अधिकार पा सके और समाज में भाईचारे की भावना बढ़ती जाए। शोषण समाप्त हो। समता की राह खुले। सामाजिक लोकतंत्र के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक नया मंत्र दिया है। वह हर नागरिक की जुबान पर है। ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्‍वास और सबका प्रयास’।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जन नेता हैं। वे तीसरी बार पूरे दमखम से जनादेश के लिए मैदान में उतरे हैं। ऐसा सिर्फ एक बार हुआ है। जब 1962 में तीसरी बार पंडित जवाहरलाल नेहरू जनादेश मांग रहे थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पंडित जवाहरलाल नेहरू में एक बड़ा अंतर भी है। वे तीसरी बार अपनी लोकप्रियता के निचले पायदान पर थे। लेकिन इस समय परिस्थिति ऐसी है कि नेहरू खानदान अपनी राजनीतिक साख के रसातल में है। उसे और विपक्ष को अपने अस्तित्व की चिंता है। डूबते विपक्ष को संविधान की डाल का सहारा चाहिए। वह बड़ी कठिनाई में है। संविधान की डाल पकड़े वह कब तक लटकता रहेगा? यह प्रश्‍न है। लोग पूछ रहे हैं। ऐसा विचित्र विपक्ष कैसे समझा पाएगा कि संविधान किस तरह खतरे में है। यही कारण है कि विपक्ष अपनी बात लोगों के गले नहीं उतार पा रहा है। दूसरी तरफ एक बड़ा यथार्थ देश-समाज और दुनिया के सामने उभरा है। उसे पहचाना भी गया है। वह यह कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकतंत्र को कांग्रेस के कुलीनतंत्र से मुक्त कराया है। सामाजिक लोकतंत्र की राह में जो बाधाएं थी, उन्हें दूर किया है। इससे स्वतंत्रता को नया अर्थ मिला है। यही कांग्रेस सहित विपक्ष की खीझ का बड़ा कारण दिखता है।

लेकिन ऐसा भी नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संविधान के सवाल पर विपक्ष के आरोपों पर चुप हों। वे चुनौती को सामने से लेते हैं। उसका जवाब देते हैं। इसी कारण उनके कहे एक-एक शब्द पर लोगों को भरोसा होता है। संविधान के सवाल पर उन्होंने विपक्ष को ठीक-ठीक घेरा है। सही जगह और सही मंच से जो बात कही है वह ठीक निशाने पर बैठी है। उन्होंने बिहार और बंगाल की सभाओं में कहा कि लोकसभा का यह चुनाव उन लोगों को सजा देने के लिए है जो संविधान के खिलाफ हैं। इस एक वाक्य में कांग्रेस और वामपंथियों की इमरजेंसी के दौरान की काली करतूतें सामने आ जाती है। संविधान को बार-बार इन्हीं लोगों ने चोट पहुंचाई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह भी समझाया है कि विपक्ष कैसे संविधान की भावना के विरुद्ध जन-मानस की आस्था का अपमान करता रहा है।

तमिलनाडु की सभाओं में उन्होंने बताया कि सुब्रमण्यम भारती की कविताओं में भारत को माता स्वरूप प्रस्तुत किया गया है। हिन्दू धर्म में शक्ति का स्वरूप है, मातृ शक्ति, नारी शक्ति। इसे बताकर उन्होंने पूछा कि राहुल गांधी इसी शक्ति का विनाश करना चाहते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नजर में यह संविधान का अनिवार्य अंश है। उन्होंने इसे संवैधानिक व्यापकता का आधार दिया है। संविधान सभा ने मताधिकार में भेदभाव नहीं किया। पुरुष और नारी दोनों को भारत का संविधान समान अधिकार देता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब नारी शक्ति की वंदना करते हैं तो वे संविधान के इस प्रावधान के प्रति अपनी निष्‍ठा दोहराते हैं। लेकिन विपक्ष इन बातों की उपेक्षा कर इस आम चुनाव को संविधान केंद्रित बनाना चाहता है। इससे आम चुनाव पिछले चुनावों से भिन्न हो गया है। राजनीतिक दलों के बीच आम चुनाव होते रहे हैं। यह आम चुनाव राजनीतिक सिद्धांतों का महाभारत हो गया है।

पुरुष और नारी दोनों को भारत का संविधान समान अधिकार देता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब नारी शक्ति की वंदना करते हैं तो वे संविधान के इस प्रावधान के प्रति अपनी निष्‍ठा दोहराते हैं। लेकिन विपक्ष इन बातों की उपेक्षा कर इस आम चुनाव को संविधान केंद्रित बनाना चाहता है।

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