कृष्ण जन्मभूमि मंदिर (मथुरा) का जवाहरलाल नेहरू से अटल बिहारी वाजपेयी तक कोई भी दर्शन करने कभी भी नहीं गया। एक मात्र प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी हैं जो कल (23 नवंबर 2023) गए थे। आखिर क्यों बाकी सब 15 नहीं गए ? मुसलमान वोट का खौफ सताता रहा होगा। हालांकि अटल बिहारी वाजपेयी तो रमजान में रोजा अफ्तार की दावत लखनऊ में खूब करते थे। प्रधानमंत्री थे तब। अटलजी के संदर्भ में परेशानी और पशेमानी की बात यह थी कि “हिंदू तन मन” पंक्तियों के इस कवि ने प्रधानमंत्री बनते ही नेहरू-मार्का नीतियां ही अपनायीं। वे अयोध्या-संघर्ष से दूर ही रहे।
तुलनात्मक नजरिए से मोदी अपनी संस्कृति और परिपाटी से अधिक जुड़े रहे। यूं कई दफा कृष्ण मंदिर वे आ चुके हैं। पिछली बार 1991 में आए थे। तब प्रो. राजेंद्र सिंह ने संघ प्रतिनिधि सभा का कार्यक्रम रखा था। मोदी प्रचारक थे। (चित्र देखें)। उसी सभा में मोदी ने राम जन्मभूमि आंदोलन को व्यापक और तेज बनाने की योजना रची थी। उसी का परिणाम है कि 22 जनवरी 2024 को भव्य राम मंदिर तैयार हो जाएगा। मथुरा में कल मोदी के शब्द थे : “वह दिन दूर नहीं जब भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन और अधिक दिव्यता के साथ होंगे।”
मोदी से भिन्न रहे योगी आदित्यनाथजी। वे जब भी मथुरा-वृंदावन आए तो लीला पुरुषोत्तम के दर्शन करते रहे। अब मर्यादा पुरुषोत्तम का भव्य मंदिर अयोध्या में तैयार करा रहे हैं। मोदीजी का एक अनुमानित संकेत है। जब 2014 में वे वाराणसी से लोकसभा प्रत्याशी बने थे तो उनका ऐलान था : “मुझे गंगा मां ने बुलाया है।” अतः अपेक्षित है कि अगले साल (2024) वे मां यमुना के आग्रह पर मथुरा से लोकसभा में जाएं। तब ही दिव्य कृष्ण मंदिर पूर्ण आकार शीघ्रता से लेगा। आखिर गंगा-यमुनी संस्कृति को मोदी अपनी स्टाइल में दृढ़ करना चाहेंगे।
अब कृष्ण जन्मभूमि संघर्ष का दुतगामी होने का आधारभूत विश्वास इसलिए है कि इसी जगह (1991 में) राम मंदिर आंदोलन की रूपरेखा भी बनी थी। मोदी तब चालीस साल के थे। अतः अब उसी शृंखला को लंबाने की कोशिश होगी। मगर इसके लिए अयोध्या की भांति लंबी प्रतीक्षा की आशंका नहीं होनी चाहिए। तब उत्तर प्रदेश की यादव सरकार ही बाबरी मस्जिद की पैरोकार थी। अब काशी में गलियारा (कॉरिडोर) बन गया है। मथुरा (बिहारी जी मंदिर) में ऐसा ही गलियारा बनाने का आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट दे चुका है। सारे व्यवधान दूर हो गए। राम, कृष्ण, शिव की यही इच्छा। अतः कृष्ण मंदिर के परिप्रेक्ष्य में एक प्रश्न गैर-हिंदुओं से हो। मध्यकालीन बर्बरता से उबरने की आवश्यकता है। सोचिए, विदेशी शासकों का राम जन्मभूमि, ज्ञानवापी ज्योतिर्लिंग और कृष्ण जन्मभूमि पर ही क्यों कब्जा हुआ ? उजबेकी डाकू जहीरूद्दीन बाबर ने अयोध्या पर ही सैनिक हमला क्यों किया ? स्पष्ट है बहुसंख्यकों को आतंकित और गुलाम बनाने की मंशा थी। वर्ना अयोध्या के बजाय निकटस्थ फैजाबाद में मस्जिद बनाते जैसे अभी बन रहा है। औरंगजेब को काशी और मथुरा पर ही हमला क्यों बोलना था ?
अपने परदादा श्रीकृष्ण के लिए प्रपौत्र वज्रनाभ ने कुलदेवता का यह आस्था स्थल बनवाया था। यहां प्राप्त ब्राह्मी लिपि के दस्तावेजों से पता चलता है कि शोडास राजकाल के महाराज वसु ने मंदिर में तोरण द्वार और वेदिका निर्मित करायी थी। इसी देवालय को सम्राट विक्रमादित्य ने करीब दो हजार साल पूर्व भव्य रूप दिया था। तब संस्कृति तथा कला के केंद्र के रूप में मथुरा विकसित हुई थी। पड़ोस में ही बौद्ध और जैन केंद्र भी बने थे। महमूद गजनी जिसने सोमनाथ को सोलह बार लूटा था, सन् 1018 में मथुरा पर आक्रमण किया। उसके मुंशी अल उत्बी ने अपने “तारिख-ए-यामिनी” में मथुरा का वर्णन किया है। उसने लिखा था : “शहर के केंद्र में एक विशाल और भव्य मंदिर था, जिसके बारे में लोगों का मानना था कि यह इंसानों द्वारा नहीं बल्कि स्वर्गदूतों द्वारा बनाया गया था।” वैष्णव संत चैतन्य महाप्रभु और वल्लभाचार्य सोलहवीं सदी में मथुरा की यात्रा की थी। फिर (1150 ई. में) महाराज विजयपाल ने नया मंदिर बनवाया था। इसे दिल्ली के सुल्तान सिकंदर लोदी ने तोड़ डाला। चौथे मंदिर का निर्माण ओरछा नरेश (झांसी के निकट) महाराज वीरसिंह देव ने (जहांगीर के समकालीन) ने बनवाया था। उसकी भव्यता से चिढ़ कर आलमगीर औरंगजेब ने 1669 में मथुरा पर हमला किया। मंदिर ध्वस्त कर दिया। शाही ईदगाह का निर्माण किया। तभी से हिंदू-मुस्लिम तनाव उमड़ता रहा। मुगल नीति का परिणाम था।
वस्तुतः समस्त मथुरा क्षेत्र के पुनरुद्धार का प्रयास हिंदू महासभा के अध्यक्ष पंडित मदन मोहन मालवीय ने शुरू किया था। वे 1940 में मथुरा आए थे। और तभी निर्धारित किया था कि मंदिर फिर बनेगा। नतीजन मालवीय के अनुरोध पर 7 फरवरी 1944 को जुगल किशोर बिड़ला ने राजा पटनीमल से कटरा केशव देव खरीद लिया। फिर 21 फरवरी 1951 को श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना हुई। इस पर कुछ मुसलमानों ने 1945 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक रिट दाखिल कर दी। इसका फैसला 1953 में आया। इसके बाद ही यहां कुछ निर्माण कार्य शुरू हो सका। यहां गर्भ गृह और भव्य भागवत भवन के पुनर्रुद्धार और निर्माण कार्य आरंभ हुआ, जो फरवरी 1982 में पूरा हुआ।
श्रीकृष्ण जन्मस्थान के पास 10.9 एकड़ जमीन का मालिकाना हक है जबकि शाही ईदगाह मस्जिद के पास 2.5 एकड़ जमीन है। हिंदू पक्ष का कहना है कि शाही ईदगाह मस्जिद को अवैध तरीके से कब्जा करके बनाया गया है। इस जमीन पर उनका दावा है। मगर मस्जिद के कारण परिसर का विकास बाधित रहा।
मुगल राजकुमार दारा शिकोह ने मंदिर को संरक्षण दिया था। मंदिर को एक रेलिंग दान में दी थी। औरंगज़ेब के आदेश पर मथुरा के सूबेदार अब्दुन नबी खान ने रेलिंग को हटा दिया। औरंगजेब ने दारा को चांदनी चौक में हाथी के पैर तले कुचलवाया था। हिंदू मंदिरों के खंडहरों पर जामा मस्जिद का निर्माण कराया। अब मोदी आ गए हैं। सब दुरुस्त कर देंगे। नया इतिहास रचेंगे।