सांस्कृतिक चेतना के सोपान

मनीषी हजारी प्रसाद द्विवेदी आज अगर होते,  तो वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात को 21वीं सदी की सांस्कृतिक क्रांति कहते. इस पर विवाद भी छिड़ सकता है. कारण यह है कि नरेंद्र मोदी अपनी लोकप्रियता के निरंतर ऊंचाई को छूते जा रहे हैं, फिर भी उनके घर आलोचकों की कोई कमी नहीं है. कुछ मुखर हैं और कुछ मौन हैं. लेकिन एक बात पर कोई विवाद नहीं है. वह यह है कि नरेंद्र मोदी जो शुरू करते हैं उसे सोच समझकर शुरू करते हैं. उसमें उनकी गहरी सोच दिखती है. जो भी कदम उठाते हैं वह अचानक भले ही लगता हो, लेकिन वह गहरे चिंतन-मनन का परिणाम होता है. उनके हर कार्य में एक निरंतरता देखी जा सकती है. यही उन्हें दूसरे प्रधानमंत्रियों से और इस समय के राजनीतिक नेताओं से भिन्न और श्रेष्ठ बनाता है. इसके बहुत सारे उदाहरण देखे और खोजे जा सकते हैं. एक का विशेष उल्लेख इस आलेख में करना सामयिक है. वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात है.

 मन की बात पर कई किताबें आई हैं. उनमें मन की बातों का क्रमवार संकलन है. यह तो शुरुआत है. मन की बात पर किताबें आती रहेंगी. साफ है कि अब यह ऐसा अवसर हो गया जिसका लोग इंतजार करते हैं. अगर हाल के वर्षों को याद करें तो रामायण और महाभारत सीरियल का जिस तरह इंतजार होता था, वैसा ही मन की बात का स्थान जनमानस में बन गया है. इसके स्पष्ट और अनुभव करने लायक घटनाएं घटित हो रही हैं. करीब 9 साल पहले 3 अक्टूबर, 2014 को नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ लोगों से की थी और उसे रेडियो ने प्रसारित किया था, तब क्या कोई कल्पना कर सकता था यह सिलसिला रुकेगा नहीं, चलता रहेगा. यह अपने आप में संकल्पवान नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व का विलक्षण रूप है, जिसमें निरंतरता है.
 इसे समझने के लिए एक तथ्य पर ध्यान देना चाहिए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात के लिए पहले दिन से ही रविवार को चुना है. इसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ है. जो इस पर ध्यान देंगे वे दांतो तले उंगली दबाएंगे. चकित होंगे. इसलिए क्योंकि प्रधानमंत्री की व्यस्तता को कौन नहीं जानता! यहां आशय वर्तमान प्रधानमंत्री से है. उन प्रधानमंत्रियों से नहीं है जो पहले रहे हैं.  दूसरा तथ्य भी कम महत्वपूर्ण नहीं है. मन की बात का पहला अवसर 14 मिनट में पूरा हुआ. दूसरे मन की बात में पहले से 5 मिनट ज्यादा लगे. तीसरे मन की बात ने पूर्ण आकार लिया और वह 30 मिनट में पूरा हुआ. इसमें कोई भी थोड़ा सा विचार करें तो इस नतीजे पर पहुंचेगा की मन की बात का क्रमिक विकास हुआ.
 मन की बात के उत्तरोत्तर विकास के मुख्यतः दो पक्ष है. एक की यह लोकप्रिय हुआ है. इसके श्रोता देश और दुनियाभर में फैले हुए हैं. मन की भारत की वाणी बन गई है. जो सुनते हैं,  वे अनुभव करते हैं कि प्रधानमंत्री जो बोल रहे हैं. वह उनके अंतर्मन की आवाज है. जो ओंठ पर आ गया वह नहीं है.यह तो वह आवाज है जिसका संबंध बुद्धि से अधिक भावना और संवेदना है. उपनिषद का महावचन है, तत्वमसि. इसकी बहुत तरह से व्याख्या की गई है और की जाती रहेगी. इसे मन की बात के संदर्भ में समझना हो तो कह सकते हैं कि मन की बातें प्रधानमंत्री जो बोलते हैं वह बुद्धिगत ही नहीं होता, बल्कि उसमें संवेदना का सम्बन्ध स्वर होता है. संवेदना को समझे बगैर मन की बात का मर्म ख्याल में नहीं आएगा. बुद्धिगत वचन का सम्बन्ध प्रतीति से है. जहाँ संवेदना होती है, वही जीवन का अमृत तत्व स्वयं वाणी के रूप में अभिव्यक्त होता है. इसकी लोकप्रियता का राज मन की बात में संवेदना का भरा पूरा होना है. बुद्धि बहुत मामूली घटना होती है इसमें कई बार नयापन नहीं होता, दोहराव  होता है. लेकिन संवेदना बिल्कुल जीवंत घटना होती है. यहां यह कहना उचित ही होगा कि बुद्धि चाहे तो उधार प्राप्त की जा सकती है. जैसे शब्द उधार ले लिए जाते हैं. ऐसा दिखता भी है कि बहुत सारे नेता बुद्धि को प्राप्त करते रहते हैं. लेकिन संवेदना प्राप्त नहीं की जा सकती. उसे जीना पड़ता है. प्रधानमंत्री के मन की बात को इसी श्रेणी में रख सकते हैं. वे जो बोलते हैं उसमें संवेदना होती है. सुनने वाला पाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो बोलते हैं उसको जीते भी हैं. वह उनके जीवन जीने से निकला हुआ शब्द होता है. ऐसा शब्द जो सीधे सुनने वाले से अपना भावात्मक तार जोड़ लेता है.
 जो दूसरा पक्ष है, उसका संबंध जन शिक्षा की शैली से है जिसमें लोग अनुभव करते हैं कि प्रधानमंत्री अपने मन की बात में राजनीति को परे रखते हैं. अक्सर राजनीतिक नेताओं के बारे में एक आम धारणा होती है कि वे राजनीति की दुनिया से बाहर शायद ही कभी निकलते हो. यहाँ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिद्ध किया कि वे राजनीति में हैं और सफल-सार्थक राजनीति के पक्षधर हैं. उसके प्रणेता हैं, लेकिन वे मात्र राजनीतिज्ञ ही नहीं है. यह मन की बात से लोगों ने जान लिया है. जानना और मानना एक नहीं है, अलग-अलग है. कुछ लोग मान लेते हैं और फिर जानने की कोशिश करते हैं. मन की बात ने इस क्रम को पलट दिया है . लोगों ने पहले जो भी माना होगा और उसके आधार पर एक धारणा बनाई होगी, जब मन की बात को सुनने का अवसर मिला तब लोगों ने अनुभव किया कि इस व्यक्ति को तो हम कहां जानते थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जानने का एक नया सिलसिला मन की बात से शुरू हुआ. मन की बात ने जन-जन को स्पर्श किया है. यह इसलिए हो सका क्योंकि सुनने वालों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति आदर का एक भाव पैदा हुआ. उस भाव ने  जन-जन के भीतर एक केंद्र रचा. लोगों के हृदय का वह केंद् नरेंद्र मोदी से भावनात्मक संबंध का सृजन करता जा रहा है. ऐसे संबंध दिखते नहीं, अनुभव में आते हैं. दिखने और अनुभव में बड़ा फर्क है. मन की बात में आकर्षण है और बढ़ता जा रहा है. इसलिये बढ़ता जा रहा है क्योंकि इसमें एक एकरसता नहीं है, नयापन है, विविधता है और जीवन की समस्याओं से पार होने के उसमें उपाय है. मन की बात को महायान भी कह सकते हैं. महायान से आशय विशालकाय नाव से है जो जीवन रूपी सागर को पार करने का आश्वासन देने में समर्थ है.
 मन की बात का प्रभाव हर बार थोड़ा बढ़ जाता है. प्रधानमंत्री जो कहते हैं, उसे उदाहरण से समझाते हैं. उन उदाहरणों में जिनका उल्लेख हो जाता है वे तत्क्षण अपनी ख्याति के एवरेस्ट पर अपना झंडा गाड़ने का गौरव प्राप्त कर लेते हैं. उनको प्रोत्साहन मिलता है. प्रेरणा मिलती है. मुहावरे की भाषा में कहें तो मन की बात से एक दीप जलता है और वह हजारों दीप को जलाने तथा अँधेरे को मिटाने में सफल हो जाता है. यह है मन की बात की सार्थकता. अब तक 99 बार मन की बात लोग सुन चुके हैं. 30 अप्रैल का इंतजार हो रहा है, जिस दिन मन की बात के 100 सोपान पूरे होंगे. ऐसा भी नहीं है कि मन की बात को राजनीतिक रंग देने के प्रयास नहीं हुए. जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ईष्या करते हैं, उन्हें मन की बात खटकती है.  वे  अवसर खोजते रहते हैं कि कब और कैसे उन्हें रोका जाए. कभी चुनाव के बहाने तो कभी दूसरे बहाने से मन की बात को रोकने के प्रयास हुए हैं. यह बात अलग है कि सफलता नहीं मिली. विरोधी दलों के इस कुचाल में कोई दम था नहीं. इसी से यह बात भी अपने आप प्रमाणित हो गई कि मन की बात में राजनीति नहीं, बल्कि समाज के उत्थान का यह एक अनोखा प्रयास है.
 प्रश्न यह है कि मन की बात को किस परिभाषा में ढालें. क्या कोई ऐसा सांचा है जो मन की बात को अपने में ग्रहण कर एक स्वरूप दे सके और वह सर्वमान्य हो. ऐसा संभव है. यह तभी संभव है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात को राजनीतिक चश्मे से ना देखें. जो ऐसा करेंगे वह मन की बात का मर्म समझ सकेंगे. यह भी समझ सकेंगे कि संवाद की यह शैली पुरानी है. भारतीय परंपरा में है. जन सामान्य से सीधे संवाद का एक इतिहास है. समय-समय पर उसका स्वरूप बदलता रहा है, लेकिन संवाद की यह शैली उन्हें एक नई चेतना से भर देती है जो उसे ग्रहण करने के भाव से सुनते हैं.
 महात्मा गांधी की प्रार्थना सभा को इसी रूप में देख सकते हैं. आजादी आई, पर भीषण मार-काट लेकर आई. उस समय भी वे बिना नागा किये प्रार्थना सभा में अपनी बात कहते ही रहते थे. ऐसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात को एक उपकरण बनाया है. जो काम राजनीति नहीं कर सकती, वह मन की बात से संभव है. वह क्या है, इसे समझने के लिए हजारी प्रसाद द्विवेदी के कथन का पुनः स्मरण करना चाहिए. उन्होंने कभी कहा था कि, ‘संस्कृति मेरे मन में सर्वोच्च चिंतन-मनन के मूर्त रूप का नाम है.’ इसे इन शब्दों में उन्होंने अधिक स्पष्ट किया, ‘मैं उनको ही भारतीय संस्कृति में गिनता हूं, जो सर्वोत्तम हैं.’ इस अर्थ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात एक सांस्कृतिक चेतना के सर्वोत्तम की अभिव्यक्ति है.

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