मजहब भाषा और लिपि की सीमा

 सभा में गांधीजी का लिखित संदेश सुनाया जाने वाला था किंतु संयोगवश प्रार्थना आध घंटे बाद शुरू हुई. तब तक महात्माजी का मौन समाप्त हो गया था. इसलिए संदेश सुनाए जाने के बजाय उन्होंने नीचे लिखा भाषण दिया)

वे समझते हैं कि कलमा पढ़कर मैं मुसलमानों को धोखे में डालता हूं. ऐसे लोग यह नहीं जानते कि मजहब भाषा और लिपि की सीमा से बाहर है |मेरे पास बराबर ऐसे पत्र आ रहे हैं जिनमें मुझ पर यह इलजाम लगाया जाता है कि मैं जिन्ना साहब का गुलाम और पांचवें दस्ते वाला बन गया हूं. कोई पत्र लेखक कहता है, मैं कम्यूनिस्ट बन गया हूं. लेकिन मैं इन बौछारों से नहीं घबराता. आप लोग हर रोज गीता के जो श्लोक सुनते हैं वे हमेशा मेरे साथ रहते हैं और इन बातों को सहने की शक्ति देते हैं. अगर मुझ पर इलजाम लगाने वाले इन श्लोकों का मतलब समझते तो ऐसी बात न करते.

मैं सनातनी हिंदू हूं, इसलिए ईसाई, बौद्ध और मुसलमान होने का दावा करता हूं. कुछ मुसलमान भाई भी यह महसूस करते हैं कि मुझे कुरान की अरबी आयतें पढ़ने का अधिकार नहीं है. वे समझते हैं कि कलमा पढ़कर मैं मुसलमानों को धोखे में डालता हूं. ऐसे लोग यह नहीं जानते कि मजहब भाषा और लिपि की सीमा से बाहर है. मैं कोई कारण नहीं देखता कि मैं कलमा क्यों नहीं पढ़ सकता और मुहम्मद को रसूल यानी अपना पैगंबर क्यों नहीं मान सकता. मैं तो हर मजहब के पैगंबर और संतों में विश्वास रखने वाला हूं. मैं ईश्वर से प्रार्थना करूंगा कि मुझ पर इलजाम लगाने वालों पर मुझे गुस्सा न आए. इतना ही नहीं, बल्कि मैं उनके हाथों मरने के लिए भी तैयार रहूं. मेरा विश्वास है कि अगर मैं अपने यकीन पर मजबूती से कायम रहा तो मैं सिर्फ हिंदू-धर्म की ही नहीं, इस्लाम की भी सेवा करूंगा.

आज रावलपिंडी का एक हिंदू वहां की घटनाओं का दुखजनक विवरण सुनाने आया था. महज हिंदू होने के कारण उसके 58 साथी मार डाले गए थे और वह खुद तथा उसका एक लड़का बच गया है. रावलपिंडी के आसपास के गांव तो भस्म कर दिए गए हैं. यह कितने दुख की बात है कि जिस रावलपिंडी के बारे में मुझे याद है कि किस तरह वहां के हिंदू, मुसलमान और सिख मेरा और अली बंधुओं का सत्कार करने में आपस में एक-दूसरे से होड़ लगाते थे, वही आज किसी भी गैरमुसलमान के लिए खतरे की जगह बन गया है. पंजाब के हिंदुओं के दिलों में गुस्से की आग जल रही है. सिख कहते हैं कि वे गुरु गोविंद सिंह के चेले हैं, जिन्होंने उन्हें तलवार का इस्तेमाल सिखाया है. लेकिन मैं हिंदुओं और सिखों से बार-बार यही कहूंगा कि वे बदला न लें. मैं यह कहने की हिम्मत करता हूं कि बदला लेने की भावना छोड़कर अगर सब हिंदू और सिख अपने मुसलमान भाइयों के हाथों, दिल में गुस्सा लाए बिना मर भी जाएं तो वे सिर्फ हिंदू और सिख मजहब की ही नहीं, इस्लाम और दुनिया की भी रक्षा करेंगे.

तीस साल से मैं आपको अहिंसा और सत्य का उपदेश देता आया हूं. मैंने दक्षिण अफ्रीका में बीस साल तक इसी तरह किया था. मेरा विश्वास है कि दक्षिण अफ्रीका के हिंदुस्तानियों ने मेरी बात मान कर फायदा ही उठाया है और यहां भी जो सत्य और अहिंसा के रास्ते पर चले हैं उन्होंने कुछ गंवाया नहीं है. ठीक है कि हमारे सत्याग्रहियों ने अपना सब कुछ लुटा दिया लेकिन उसमें क्या हुआ ? रत्न को उन्होंने हाथ में कर लिया और निकम्मी चीज फेंक दी. अगर मैं पंजाब गया तो मैं वहां क्या करूंगा इसकी मेरे दिल में हिचकिचाहट हो रही है. वहां क्या मैं बदला लेने जाऊं ? बदला लेने की बात मीठी तो लगती है लेकिन ईश्वर कहता है, बदला लेने का काम बुरा है. मुझसे काफी लोग कहते हैं कि यहां आओ तो सही! मैं उनसे कहता हूं कि मैं वहां बदला लेने की बात का प्रचार करने वाला नहीं हूं. ऐसा करना तो हिंदू, सिख और मुसलमान सबकी कुसेवा करना होगा.मैं ऐसे पाकिस्तान की कल्पना ही नहीं कर सकता जहां कोई गैर-मुसलमान शांति और सुरक्षा के साथ न रह सके न ऐसे  हिंदुस्तान का ही ख्याल कर सकता हूं जहां मुसलमान खतरे में हों

मैं मुसलमानों से भी कहना चाहता हूं कि हिंदू और सिखों के साथ लड़कर पाकिस्तान लेने की बात निरा पागलपन है. पाकिस्तान में तो अमन से रहने की बात है. कायदे आजम ने कहा है कि हमारे यहां हरदम इंसाफ होगा. आज वहां क्यों इंसाफ नहीं दीखता ? शायद वे पूछेंगे कि बिहार में भी क्या हुआ ? पर बिहार के प्रधानमंत्री तो आज रो रहे हैं. वह कहेंगे, आपकी कांग्रेस कहां गई थी? उसने क्या किया? यह सवाल बड़ा है. कांग्रेस का राज्य हिंदू-मुसलमान दोनों पर चलना चाहिए. लेकिन आज ऐसा नहीं है. मैं ऐसे पाकिस्तान की कल्पना ही नहीं कर सकता जहां कोई गैर-मुसलमान शांति और सुरक्षा के साथ न रह सके. न ऐसे हिंदुस्तान का ही ख्याल कर सकता हूं जहां मुसलमान खतरे में हों. मैं बिहार गया और वहां के हिंदुओं के गुस्से को ठंडा करने और मुसलमानों में हिंदुओं के प्रति विश्वास पैदा करने की कोशिश की. खुशी की बात है कि बहुत से हिंदुओं ने अफसोस जाहिर किया और आगे वैसा न होने देने का विश्वास दिलाया. उसी तरह मैं मुस्लिम नेताओं से अपील करूंगा कि जिन प्रांतों में उनकी आबादी ज्यादा है, वहां के अपने मुस्लिम भाइयों से वे कहें कि वे अपने यहां से गैर-मुसलमानों को मिटाने की कोशिश न करें.

पंजाब के हिंदुओं और सिखों ने कितनी ही उत्तेजक भाषा का प्रयोग क्यों न किया हो फिर भी जिन इलाकों में मुसलमान ज्यादा तादाद में थे वहां उन्होंने गैर-मुसलमानों के साथ जो बेरहमी और पाशविकता की उसकी कोई वजह न थी.पिछले दो दिनों से नोआखाली से फिर बुरी खबरें आ रही हैं, लेकिन सब कुछ होने पर भी पुलिस या फौज की मदद मांगना गलती और कायरता है. जो लोग गड़बड़ मचने पर रोते हैं, वे गुलाम हैं और जो फौज की सहायता चाहते हैं वे गुलाम बने रहेंगे. लोग न तो गृह-युद्ध में पड़ेंगे, न गुलाम रहना ही पसंद करेंगे. मुझसे सतीश बाबू व प्यारेलालजी ने पत्र लिखकर पूछा है कि घास-फूस के झोपड़ों के दरवाजे बंद करके, जिसमें दस-बीस आदमी हों, जला दिया जाए तो वे क्या करें ? हरेन बाबू ने चौमुहानी से ऐसी ही बात लिखी है और बताया है कि आश्रित लोग जाना चाहते हैं, पर समझाने पर रुक गए हैं. मैंने बंगाल के प्रधानमंत्री को तार दिया है कि यह खतरनाक बात है. लोगों को मैंने संदेश भेजा है कि जिनमें साहस हो, हिम्मत हो, वे जल जाएं, मिट जाएं. अगर अपने में इतनी मजबूती वे महसूस नहीं करते तो वे वहां से हिजरत करें. जिन अंग्रेजों को यहां से हम भगाना चाहते हैं उनकी फौजों को लोग हरगिज न बुलावें. पिछली लड़ाई में इंग्लैंड के और जापान के कितने आदमी मर गए, पर उसकी वे शिकायत नहीं करते. ये बहादुर जातियां हैं. हमको अंग्रेजों का राज अच्छा लगे, यह हमारे लिए शर्मनाक बात है.

सोमवार 7 अप्रैल 1947 ( महात्मा गांधी द्वारा दिया गया भाषण )

 

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