केजरीवाल का ‘परिवर्तन’ से ‘संपूर्ण परिवर्तन’ का दूसरा सच

सुभाष झा

दिल्ली में चुनावी माहौल है तो  मैं इस लेख के माध्यम से ‘जो कि केजरी कथा पुस्तक से लिया गया है में केजरीवाल के ‘परिवर्तन’ से ‘संपूर्ण परिवर्तन’ का जो  दूसरा सच है , उजागर करता है |

कबीर’ संस्था पर गृह मंत्रालय की जांच रिपोर्ट आ चुकी है। गृह मंत्रालय की रिपोर्ट में भी ‘परिवर्तन’ और ‘पीसीआरएफ’ नाम आया था। ये दोनों संस्थाएं ‘कबीर’ के तहत काम करती हैं। इन सभी तथ्यों से जो सवाल निकलते हैं, वह यह कि क्या ‘परिवर्तन’ का अपना अस्तित्व नहीं है? कहीं वह ‘संपूर्ण परिवर्तन’ के तहत काम करती है तो कहीं ‘कबीर’ के तहत। जबकि अरविंद केजरीवाल ‘परिवर्तन’ के नाम से ही अपने एजेंडे को आगे बढ़ा रहे थे या वे किसी दूसरे के निर्देश पर ऐसा कर रहे थे?

केजरीवाल का अमेरिकी संस्थाओं से रिश्ता पुराना है। उनके ऊपर फोर्ड ही मेहरबान नहीं रहा, बल्कि ‘अशोक’ नाम की संस्था भी केजरीवाल पर मेहरबान थी। अशोक नाम की संस्था अमेरिका में पंजीकृत है। इस संस्था के रणनीतिक साझेदार के रूप में मैकेंजी एंड कंपनी का नाम प्रमुख है। इस संस्था का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इसके प्रमुख कार्यकारी अधिकारी अमेरिकी सरकार में सचिव के पद पर कार्यरत रहे हैं। वे व्हाइट हाउस में भी काम कर चुके हैं। उनका नाम है बिल ड्रायटन। यह संस्था भी केजरीवाल के पीछे खड़ी है। इस संस्था ने केजरीवाल को अशोका फेलोशिप के लिए 2004 में चुना था। यहां सवाल उठता है कि जिस समय अशोका फेलोशिप के लिए केजरीवाल ने आवेदन किया, क्या वे उस समय अपने पद से इस्तीफा दे चुके थे? जानकारी के मुताबिक फरवरी 2006 में वे सरकारी पद से मुक्त हुए हैं।

दरअसल, इस संस्था के एजेंडे में भारत शुरू से ही था। ‘अशोक’ ने अपनी स्थापना (1982) के बाद दो सालों तक सभी फेलोशिप भारतीयों को दिए। यहां गौर करने वाली बात है कि जब 1982 में अमेरिका सोवियत रूस से मुकाबले के लिए अफगानिस्तान में जेहादी तैयार कर रहा था, उसी समय से उसकी नजर भारत पर थी।

अपने ही पूछ रहे केजरीवाल से सवाल

अरविंद केजरीवाल की एक संस्था का नाम ‘पीसीआरएफ’ (पब्लिक कॉज रिसर्च फाउंडेशन) है। मैग्सेसे पुरस्कार मिलने के बाद इस संस्था को अरविंद केजरीवाल ने खड़ा किया था। केजरीवाल ने इस संस्था की शुरुआती जिम्मेदारी अपने पुराने साथी अश्वनी उपाध्याय को दी। केजरीवाल ने जब आम आदमी पार्टी बनाई तो अश्वनी उसके संस्थापक सदस्यों में से एक थे। उन्हें पार्टी की ‘लीगल सेल’ का संयोजक बनाया गया, लेकिन अश्वनी उपाध्याय इन दिनों केजरीवाल के रुख से नाराज हैं। उन्होंने केजरीवाल के ऊपर देश विरोधी  ताकतों के हाथों खेलने का आरोप लगाया है। आम आदमी पार्टी में रहते हुए जो कुछ उन्होंने देखा है, उस पर 20 सवाल उन्होंने केजरीवाल से पूछे हैं। इसका जवाब केजरीवाल ने नहीं दिया है। उन सवालों में एक यह है कि कोयला घोटाले सहित भ्रष्टाचार के कई मामले में कांग्रेस सांसद नवीन जिंदल सवालों के घेरे में आए हैं। अरविंद केजरीवाल ने उनके बारे में अबतक क्यों चुप्पी साध रखी है? पवन बंसल और वीरभद्र के भ्रष्टाचार पर वे क्यों चुप्प रहे हैं? इसके साथ-साथ अश्वनी ने उन सवालों को भी उठाया है, जो अबतक उनके विरोधी  उठाते रहे हैं। मसलन- आतंकवादियों के समर्थन में खड़े होने वाले रजा मुजफ्फर भट्ट कमाल फारूकी को किस दबाव में टिकट दिया है? फोर्ड फाउंडेशन से अरविंद केजरीवाल के रिश्ते पर भी उन्होंने सवाल उठाए हैं। यह भी पूछा है कि नक्सल विचारध्ाारा को समर्थन देने वालों को वे कब पार्टी से बाहर कर रहे हैं?

आखिर, शिमिरित ली बोलीं

“जब मैं भारत आई थी, तब 19 साल की थी। वहां एक स्वयंसेवक की तरह ‘कबीर’ संस्था से जुड़ी। मेरा ‘कबीर’ से जुड़ाव दो महीने का था। इस दौरान मैंने एक रिपोर्ट तैयार की थी, जिसका संबंध पारदर्शिता और कानून से था। दरअसल, यह मेरी पढ़ाई का हिस्सा था।” शिमिरित ली ने यह बात कही है। वे न्यूयार्क में शोधार्थी  हैं। ‘एक  पत्रिका ने शिमिरित ली के बारे में विस्तार से रिपोर्ट छापी थी। उस रिपोर्ट में सवाल किए गए थे कि आखिर शिमिरित ली कौन है? वे बतौर शोद्धार्थी  भारत आई थी या फिर एजेंट थी? पत्रिका के 16-31 जनवरी के अंक में यह रिपोर्ट छपी थी।

इस रपट में दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में शिमिरित ली की संदिग्ध  मौजूदगी का जिक्र किया गया था। शिमिरित ने उस सभी देशों में अलग-अलग विषयों पर काम किया। इसी दौरान भारत भी आई थी। यहां उसने केजरीवाल की संस्था कबीर के लिए काम किया। बाद में गृह मंत्रालय की जांच रिपोर्ट में उसके ‘कबीर’ में काम करने की बात कही गई है। इससे ‘यथावत’ की रपट पुष्ट होती है। पत्रिका की इस रपट के बाद कई सवाल उठे थे। शिमिरित ली की संदिग्ध भूमिका के बारे में दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष डॉ. हर्षवर्धन  ने अरविंद केजरीवाल से सवाल पूछा था। हालांकि, तब अरविंद केजरीवाल का कोई जवाब नहीं आया था। हां, शिमिरित ली जरूर बोल पड़ी हैं।

करीब दो महीने बाद शिमिरित ने कहा है मैं मिस्र या चाड नहीं गई थी और मोहल्ला या ग्राम सभा के बारे में भी मुझे कुछ नहीं पता। मैं इस समय एक शोध छात्रा हूं। इससे आगे शिमिरित यह भी कहती हैं कि फोर्ड और विदेशी एजेंसियों से अरविंद केजरीवाल को जोड़ने वाले उनकी लोकप्रियता से घबरा गए हैं।

रिपोर्ट के जवाब में शिमिरित ने जो कहा है, उसकी पड़ताल जरूरी है। वे कहती हैं कि मोहल्ला सभा या फिर ग्राम सभा जैसी किसी चीज को नहीं जानती हैं। हालांकि, उन्होंने इतना तो स्वीकार किया है कि उन्होंने कबीर के लिए काम किया है। वह यह भी स्वीकार करती हैं कि उन्होंने कबीर के लिए एक रिपोर्ट तैयार की है, लेकिन उस रिपोर्ट का जिक्र नहीं करती हैं। शिमिरित कहती हैं कि उन्होंने कबीर संस्था में काम करने के लिए कोई भुगतान नहीं लिया। फिलहाल यह समझ से परे है कि वे तथ्यों को क्यों छुपा रही हैं? शिमिरित ली को कबीर की तरफ से 25,333 डॉलर दिया गया। कबीर की तरफ से यह भुगतान इसी रिपोर्ट के लिए किया गया था। यह भुगतान ‘स्टडी ऑफ लोकल सेल्फ गवर्नेंस इन इंडिया’ के तहत किया गया। इस रिपोर्ट में ‘स्वराज अभियान’ का भी जिक्र है। गृह मंत्रालय की जांच रिपोर्ट में भी शिमिरित ली को भुगतान करने की बात कही गई है। हालांकि शिमिरित ली के दस्तखत को जांच रिपोर्ट में फर्जी बताया गया है। ‘कबीर’ के लिए शिमिरित ली ने जो रिपोर्ट तैयार की उसमें मोहल्ला सभा का जिक्र करती हैं। जबकि उनका दावा है कि वह ग्राम सभा के बारे में भी नहीं जानती। शिमिरित जितनी बातें स्वीकार कर रही हैं, उससे ज्यादा छिपा रही हैं। इसका एक प्रमाण यह है कि वेब की दुनिया में उन्होंने जो तथ्य दे रखे थे, उसे हटा दिया गया है। इसके प्रमाण ‘यथावत’ के पास हैं।

शिमिरित की पुरानी प्रोफाइल के अनुसार वह अर्जेंट एक्शन फंड की सलाहकार रही है। इजरायल और हायफा से शिमिरित का रिश्ता रहा है। कयान महिलावादी संगठन से भी शिमिरित जुड़ी रही हैं। उन्होंने ह्यूमन राइट वॉच की अफ्रीकी शाखा के लिए भी काम किया है। बहरहाल, शिमिरित के जवाब को जिन संगठनों ने प्रमुखता से उठाया है, उनकी भी पड़ताल जरूरी है। इनकी बात को ‘काफिला’ ने भी उठाया है

‘‘केजरीवाल का अमेरिकी संस्थाओं से रिश्ता पुराना है। उनके ऊपर फोर्ड ही मेहरबान नहीं रहा, बल्कि ‘अशोक’ नाम की संस्था भी केजरीवाल पर मेहरबान थी। अशोक नाम की संस्था अमेरिका में पंजीकृत है। इस संस्था के रणनीतिक साझेदार के रूप में मैकेंजी एंड कंपनी का नाम प्रमुख है। इस संस्था का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इसके प्रमुख कार्यकारी अध्ािकारी अमेरिकी सरकार में सचिव के पद पर कार्यरत रहे हैं।

 

 

 

 

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