करतारपुर कॉरिडोर से क्या चाहता है पाकिस्तान

 

बनवारी

यह मात्र संयोग नहीं था कि भारत सरकार ने करतारपुर कॉरिडोर के शिलान्यास के लिए 26 नवंबर का दिन चुना। इस कॉरिडोर को बनाए जाने की घोषणा पहले पाकिस्तान ने की थी और उसने शिलान्यास के लिए 28 नवंबर का दिन तय किया था। भारत ने उसके दो दिन पहले शिलान्यास का दिन इसलिए चुना कि ठीक दस वर्ष पहले इसी दिन पाकिस्तान ने मुंबई में विस्फोट करवाए थे, जिनमें 166 लोग मारे गए थे। आज तक पाकिस्तान ने उसमें शामिल किसी अपराधी को गिरतार करके सजा नहीं दिलवाई। भारत जानता था कि पाकिस्तान करतारपुर कॉरिडोर को एक कूटनीतिक पहल के रूप में दिखाने की कोशिश करेगा। पाकिस्तान करतारपुर कॉरिडोर का दोहरा इस्तेमाल कर सकता है। वह उसके जरिये भारत पर बातचीत फिर से शुरू करने के लिए दबाव भी डाल सकता है और दूसरी तरफ खालिस्तानी तत्वों को उकसा भी सकता है।

भारत इस दोहरी मंशा को जानता है। इसलिए उसने करतारपुर कॉरिडोर के शिलान्यास का दिन वही चुना, जिस दिन मुंबई विस्फोट हुए थे। यह स्वाभाविक ही है कि इस दिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुंबई विस्फोट की बात अधिक हो, करतारपुर कॉरिडोर की कम। भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उस घटना का हवाला देते हुए पाकिस्तान को कड़ी चेतावनी दी। उधर अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा कि वे मुंबई में हुए विस्फोट के अपराधियों को सजा दिलवाने के लिए भारत के साथ हैं। उन विस्फोटों में मारे गए अमेरिकी नागरिकों की याद करते हुए अमेरिकी सरकार ने 50 लाख डॉलर का एक नया इनाम भी घोषित किया है, जो उस व्यक्ति को दिया जाएगा, जो उस कांड में शामिल रहे किसी व्यक्ति की सूचना देकर उसे सजा दिलवाने का रास्ता साफ करेगा। भारत ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह करतारपुर कॉरिडोर को भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध सुधारने की किसी नई पहल के रूप में कम से कम अभी देखने के लिए तैयार नहीं है। करतारपुर कॉरिडोर की मांग काफी पुरानी है। पंजाब के सिख उसकी लंबे समय से मांग करते रहे हैं।                                                                                                                   

भारत ने पाकिस्तान से 2015 से बातचीत करने से मना कर रखा है। पाकिस्तान फिर से बातचीत शुरू करने के लिए व्याकुल है। ताकि इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह कहने का मौका मिल जाए कि वह शांति चाहता है। आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त लोग उसके नियंत्रण में नहीं हैं। हाल ही में जब पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री इमरान खान चीन गए थे तो दोनों देशों की बातचीत के बाद जो संयुक्त वक्तव्य जारी हुआ था, उसमें इस बात का विशेष उल्लेख था कि चीन पाकिस्तान की बातचीत के जरिए भारत से संबंध सुधारने की कोशिश का समर्थन करता है। स्पष्ट था कि चीन भी भारत पर यह दबाव बना रहा था कि वह पाकिस्तान से बातचीत शुरू करने के लिए तैयार हो जाए।

सिख समुदाय के लिए करतारपुर साहिब का बहुत महत्व है। गुरुनानक देव अपने जीवन के अंतिम दिनों में 18 वर्ष इस स्थान पर रहे थे। इसलिए इस स्थान की विशेष महत्ता है। भारतीय सीमा से यह मात्र तीन किलोमीटर की दूरी पर है। करतारपुर कॉरिडोर कम से कम सिखों की धार्मिक भावनाओं को देखते हुए एक बड़ा कदम है। दोनों सरकारों ने इस कॉरिडोर को लेकर जो कदम उठाए हैं, वह स्वागतयोग्य है।

भारत का मानना है कि कश्मीर में और उसके बाहर भी भारत को परेशान करने के लिए पाकिस्तान ने आतंकवादी तंत्र का उपयोग करने की अपनी पुरानी नीति छोड़ी नहीं है। ऐसी स्थिति में उससे बात करने का कोई फायदा नहीं है। इमरान खान ने प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते समय दोनों देशों के संबंध सुधरने की आशा की थी। उसके बाद संयुक्त राष्ट्र में भारत और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों की बातचीत की संभावना भी बनी, लेकिन भारत ने अपने हाथ यह कहते हुए खींच लिए कि पाकिस्तान की नीति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है और जब तक वह आतंकवादियों के इस्तेमाल की नीति नहीं छोड़ता, भारत उससे बातचीत का कोई लाभ नहीं देखता। इस बीच पाकिस्तानी सेना ने भारत पर दबाव बनाने के लिए करतारपुर कॉरिडोर बनाए जाने का प्रस्ताव भी सामने रख दिया। असल में नवजोत सिंह सिद्धू इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह में गए थे और स्वयं पाकिस्तान सेनाध्यक्ष ने उनसे करतारपुर कॉरिडोर पर जल्दी निर्णय लिए जाने की बात कही थी।

सिख समुदाय के लिए करतारपुर साहिब का बहुत महत्व है। गुरुद्वारा दरबार साहिब करतारपुर रावी नदी के तट पर स्थित है। वह पाकिस्तान के नरोवाल जिले में है, जो लाहौर से 120 किलोमीटर दूर है। लेकिन भारतीय सीमा से वह मात्र तीन किलोमीटर की दूरी पर है। गुरुनानक देव अपने जीवन के अंतिम दिनों में 18 वर्ष इस स्थान पर रहे थे। इसलिए इस स्थान की विशेष महत्ता है। पाकिस्तान 18 वर्ष पहले सन 2000 में भारतीय सीमा से बिना वीजा के तीर्थयात्रियों को इस गुरुद्वारे तक जाने देने के लिए तैयार हो गया था। इसके लिए रावी नदी पर एक पुल बनाया जाना था, लेकिन पाकिस्तान अब तक इस मामले को लटकाए रहा। अब उसने अचानक करतारपुर कॉरिडोर बनाए जाने की घोषणा की। भारत ने डेरा बाबा नानक से भारत-पाकिस्तान सीमा तक एक कॉरिडोर बनाए जाने का निर्णय पाकिस्तान के कॉरिडोर बनाए जाने के फैसले के फौरन बाद ले लिया गया। उसका बड़ा कारण यह है कि भारत सरकार पंजाब के लोगों विशेषकर सिखों को यह संकेत नहीं दे सकती थी कि वह उनकी इस पुरानी मांग के पूरा होने की बाधा बन रही है।                                                                                                                     

भारत सरकार स्वयं भी पाकिस्तान से करतारपुर कॉरिडोर बनाए जाने की निरंतर मांग करती रही है। इसलिए गुरदासपुर जिले के डेरा बाबा नानक में शिलान्यास का फैसला हुआ और उसमें उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू, परिवहन मंत्री नितिन गडकरी और पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह शामिल हुए। भारत ने इस कॉरिडोर को भव्य बनाए जाने का भी निर्णय किया। सीमा पर एक भव्य गेट बनाए जाने का प्रस्ताव पाकिस्तान भी कर चुका है। भारत ने भी वैसा ही करने का निर्णय लिया है। इस कॉरिडोर से होकर जाने वाले लोगों को पाकिस्तान से कोई वीजा नहीं लेना पड़ेगा। यह घोषणा पाकिस्तान कर चुका है। लेकिन दोनों देशों की खुफिया एजेंसियां उसके दुरुपयोग की आशंका देखते हुए आवाजाही के क्या नियम-कायदे बनाती हैं, यह देखना होगा। निश्चय ही यह यात्रा उतनी सरल नहीं होगी जितनी पहली नजर में दिखाई देती हैं। शिलान्यास समारोह में उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने आतंकवाद का उल्लेख अवश्य किया। लेकिन उन्होंने पाकिस्तान का सीधे नाम नहीं लिया। उनका भाषण संयत था, पर सांकेतिक रूप से यह स्पष्ट कर देने वाला था कि भारत पाकिस्तान की हरकतों पर कड़ी नजर रखे हुए हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने इस अवसर पर काफी सख्त भाषा इस्तेमाल की। उन्होंने सीधे पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष का नाम लेकर उन्हें कश्मीर सीमा पर की जाने वाली सैनिकों की हत्या के लिए प्रताडि़त किया। उन्होंने पंजाब में आतंकवादी गतिविधियों के लिए भी सीधे पाकिस्तानी सेना को दोषी ठहराया। उन्होंने कहा कि वह खुद सेना में रहे हैं और पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष उनसे काफी जूनियर हैं। उन्होंने उनसे दो टूक भाषा में पूछा कि ऐसा किस सेना में सिखाया जाता है कि स्राइपर बैठाकर अपने विरोधी सेना के सैनिकों की हत्या की जाए। पाकिस्तान सेना ऐसा करके सभी तरह की मर्यादाओं का उल्लंघन कर रही है। उन्होंने कहा कि वे यह जानते हैं कि पाकिस्तान में जो कुछ भी होता है, वह सेना की मर्जी से ही होता है। हाल ही में पंजाब में हुए विस्फोट के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराते हुए अमरिंदर सिंह ने कहा कि पाकिस्तान के कारण पंजाब को बहुत अधिक भुगतना पड़ा है। उनकी करतारपुर साहिब में बहुत श्रद्धा है, लेकिन वे पाकिस्तान का निमंत्रण स्वीकार करके उनके शिलान्यास समारोह में भाग लेने पाकिस्तान नहीं जाएंगे। क्योंकि उन्हें अपने यहां के लोगों की सुरक्षा देखनी है। दुर्भाग्य से अमरिंदर सिंह सरकार के एक मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने उनकी अनिच्छा के बावजूद शिलान्यास समारोह में जाने की घोषणा की। लगता है कांग्रेस में इस मुद्दे पर कोई एक राय नहीं है। यह प्रश्न उठता है कि पाकिस्तान ने करतारपुर कॉरिडोर बनवाने के लिए यह समय ही क्यों चुना। भारत में अगले कुछ महीनों में आम चुनाव होने वाले हैं।                                     

स्वयं पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान कह चुके हैं कि उन्हें अगले चुनाव तक भारत से बातचीत की पहल की आशा नहीं है। क्या पाकिस्तान चुनाव से पहले भारत पर बातचीत शुरू करने का दबाव बनाना चाहता है? कहना मुश्किल है। क्योंकि यह फैसला मुख्यत: पाकिस्तानी सेना का है। वह इसे कूटनीतिक पहल के रूप में इस्तेमाल करना चाहती है या खालिस्तानी तत्वों को यह संकेत भेजना चाहती है कि वह उनका उपयोग करने को तैयार है? हो सकता है पाकिस्तानी सेना अपने लिए ये दोनों विकल्प खुले रखना चाहती हो। उसने पाकिस्तान के शिलान्यास समारोह में शामिल होने का निमंत्रण अकाल तख्त के कार्यवाहक जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह को भिजवाया था। इसका सीधा सा मतलब है कि सिखों के बीच अपने लिए अनुकूल भावना पैदा करना चाहती है। इन सब आशंकाओं की गुंजाइश है, पर भारत को उससे आगे भी देखते रहना चाहिए। पाकिस्तान यह भी सोच सकता है कि भारत में आम चुनाव के बाद जो नई सरकार बने, वह अधिक सकारात्मक होकर पाकिस्तान से बातचीत फिर से शुरू करने के बारे में सोच सके। भारत सरकार ने पाकिस्तान के प्रति काफी कड़ा रुख अपना रखा है। लेकिन अगले कुछ महीनों में अगर पाकिस्तान कुछ और सकारात्मक कदम उठाता है तो दोनों देशों के बीच संबंध सुधरने की यह एक नई पहल भी साबित हो सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ दिन पहले करतारपुर कॉरिडोर बनाए जाने की तुलना बर्लिन की दीवार गिरने से की थी। पर उन्होंने देशों के बीच लोगों से एक-दूसरे के निकट आने के लिए ही इस उपमा का इस्तेमाल किया था। जो भी हो करतारपुर कॉरिडोर कम से कम सिखों की धार्मिक भावनाओं को देखते हुए एक बड़ा कदम है। दोनों सरकारों ने इस पर तुरत-फुरत अमल शुरू कर दिया, यह स्वागतयोग्य है।

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