कर्नाटक चुनाव के परिणाम पर चिंतन

प्रज्ञा संस्थानचुनाव परिणाम राजनीतिक दलों के भविष्य की दिशा निर्देशन के सोपान हैं. अब कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद सत्ता से बेदखल हुई भाजपा ने इस करारी हार पर चिंतन के लिए बैठक आयोजित करने जा रही है. कर्नाटक के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने अपना पूरा ज़ोर लगाया था लेकिन इसके बावजूद वह बुरी तरह पराजित हुई. लगभग सभी राजनीतिक विशेषज्ञ इस बात पर सहमत नज़र आए कि कर्नाटक चुनाव में भाजपा की हार का बड़ा कारण सत्ता विरोधी लहर था जिसकी काट के लिए पार्टी मुनासिब उपाय करने में विफल रही.
एक निश्चित अवधि तक सत्ता में रहने के बाद, मतदाता अक्सर सत्ताधारी दल के प्रदर्शन से असंतुष्ट हो जाते हैं और बदलाव चाहते हैं. बीजेपी 2019 से सत्ता में थी.बीजेपी को बेरोज़गारी और आसमान छूती महंगाई जैसे मुद्दों का सामना करना था. कांग्रेस ने इन्हीं मुद्दों को उठाया लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार, बीजेपी इस पर कोई ठोस रणनीति तैयार करने में नाकाम रही. स्थानीय नेताओं को चुनाव अभियान में अधिक अहमियत नहीं दी गई और केंद्र के नेताओं पर ज़रूरत से ज़्यादा निर्भरता थी. ब्रांड मोदी का ज़रूरत से अधिक इस्तेमाल भी काम नहीं आया.बीजेपी का ख्याल था कि पीएम मोदी की रैलियों और रोड शो से कम से कम अतिरिक्त 20 सीटें इसकी झोली में गिरेंगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
चुनाव प्रचार के अंतिम चरण में पीएम नरेंद्र मोदी ने अभियान को तेज़ी देने की कोशिश की और अपने डेढ़ हफ़्ते के प्रवास में औसतन हर दिन तीन से चार रैलियां, रोड शो, सभाएं कीं. आखिरी समय में बजरंग बली मुद्दे पर भाजपा नें हिंदू मतों का ध्रुवीकरण का पुरजोर प्रयास किया लेकिन कांग्रेस ने धैर्य से चालीस फीसदी कमीशन एयर भ्रष्टाचार का मुद्दा पकड़े रखा. यहाँ तक कि गृहमंत्री अमित शाह और असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व सरमा ने प्रचार के आख़िरी दिनों में अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ गोलबंदी के प्रयास किये लेकिन  विफल रहे.
कर्नाटक में पार्टी के भीतर आपसी कलह, आंतरिक संघर्ष और गुटबाज़ी के कारण बीजेपी की स्थिति कमज़ोर हो गई थी. यदि पार्टी एकजुटता से आंतरिक विभाजनों को दूर करने के बाद चुनाव मैदान में उतरती तो इसका असर उसके चुनावी प्रदर्शन पर पड़ सकता था. पार्टी में जो बग़ावत हुई और जिस तरह की कलह थी, उसने ख़ास तौर से लिंगायत बहुल इलाक़ा और महाराष्ट्र से सटे कर्नाटक के इलाक़ों में, पार्टी को बड़ा भारी नुकसान पहुँचाया.
इसके अतिरिक्त पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा तथा जगदीश शेट्टारजैसे नेताओं को नज़रअंदाज़ करके पार्टी ने भारी ग़लती की. इतना ही नहीं यदि भाजपा ने सत्ता में अपने पिछले कार्यकाल के दौरान कई वादे किए थे, लेकिन उन्हें पूरा करने में विफल रही. इससे मतदाताओं के विश्वास और समर्थन पर असर पड़ा और इससे का असर भी पार्टी के प्रदर्शन पर पड़ा. ख़ैर २०२४ के आम चुनाव एक वर्ष के भीतर आयोजित होंगे . भाजपा के लिए यह चिंतन का समय ताकि भविष्य का मार्ग निर्धारित हो सके .

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Name *