जरूरी है बीबीसी पर नकेल

भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमले का नया शोर शुरू है क्योंकि बीबीसी वित्तीय अनियमितता की जाँच का सामना कर रहीं है. क्या सूचना वैसी ही हैं जैसी प्रदर्शित हो रही हैं? इसके पहले बीबीसी को समझें, फिर इन आरोपों की बात की जानी चाहिए.

दुनिया भर में मशहूर मीडिया समूह ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन यानी बीबीसी जम्मू कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग नहीं मानता. उसका कहना है कि यह भारत शासित कश्मीर है. इसी तरह से बीबीसी जम्मू कश्मीर में आतंक फैला रहे आतंकियों को आतंकी नहीं मानता. उनको आतंकी या आतंकवादी नहीं लिखता. उसका कहना है कि यह दरअसल विद्रोही हैं. बीबीसी उन्हें फ्रीडम फाइटर्स भी मानता है. एक लेख में बीबीसी ने हुरिर्यत कॉन्फ्रेंस के प्रमुख को कश्मीर के लिए संघर्ष करने वाला यानी कश्मीर की आजादी के लिए संघर्ष करने वाला यानी स्वतंत्रता सेनानी बताया है. उनके लिखने का मकसद यही था कि वह जम्मू-कश्मीर की स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे हैं.

इसी तरह बीबीसी का मानना है कि भारत में खून खराबे के अलावा कुछ होता ही नहीं. उनके कई पत्रकार भी मानते हैं कि उनसे अपेक्षा की जाती है कि वह भारत में जो खून खराबा होता है, उन्हीं की रिपोर्ट भेजें, उन्हीं को प्राथमिकता दें. बीबीसी की रिपोर्टो से लगता है कि वह भारत को अभी भी सपेरों का देश मानने की मानसिकता के साथ काम करता है. बीबीसी हर उस खबर को प्राथमिकता देते देता है जिसमें भारत की छवि धूमिल होती है.

धार्मिक मामले में बीबीसी की कोशिश होती है कि वह भारत को धार्मिक आजादी ना देने वाले देशों के तौर पर दिखाएं जहाँ दूसरे धर्मों के लोगों के साथ अत्याचार होता है. बीबीसी डॉक्यूमेंट्री में भारत और भारत के नेताओं को नफरती और धार्मिक उन्माद फैलाने वाला दिखाता है.बीबीसी भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर नकारात्मक खबरें फैलाता है. ऐसा लगता है कि भारत तरक्की कर ही नहीं सकता, भारत की अर्थव्यवस्था नकली है.

अगर गौर से बीबीसी कि डॉक्यूमेंट्री देखें या खबरों को पढ़ें तो आपको सहज इन सब बातों का अनुमान हो जाएगा. शायद यही कारण रहा होगा कि 1970 में कांग्रेस पार्टी की सरकार की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री ना पर सिर्फ बैन लगाया था, बल्कि बीबीसी पर ही बैन लगा दिया था. बैन 2 साल बाद जाकर समाप्त हुआ. जिस इंदिरा जी ने इस पर बैन लगाया था, आज उन्हीं की पार्टी बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री पर रोक लगाने को गलत बता रही है. आज वही कांग्रेस सरकार पर प्रश्नचिन्ह खड़े कर रही है. और अब जबकि आयकर विभाग ने बीबीसी के खिलाफ अनियमितताओं की शिकायतों पर एक सर्वे किया है तो कांग्रेसी इसे लोकतंत्र की हत्या करार दे रहें हैं. समझ नहीं आता है कि कांग्रेस जब कोई कदम उठाए तो सही, पर जब वही कदम दूसरी पार्टी की सरकार उठाए तो गलत कैसे?

ब्रिटेन की सरकार ने बीबीसी की गलत रिपोर्टिंग से आजिज आकर, बीबीसी की फंडिंग पर रोक लगा रखी है और आने वाले दिनों में जो सरकारी फंडिंग होती थी, उसे भी खत्म करने  की दिशा में बढ़ चली है. संभव है कि वर्ष 2027 तक ब्रिटेन की सरकार बीबीसी को अपनी तरफ से की जाने वाली फंडिंग पूरी तरह खत्म कर देगी. ब्रिटेन ही नहीं, दुनिया के अनेक देशों का मानना है की बीबीसी वामपंथी मानसिकता के लोगों से भरा पड़ा है और वह उन्हीं के प्रभाव में कार्य करता दिख रहा है. ऐसे में पैसे के लिए परेशान बीबीसी पर आरोप है कि वह ऐसे जगहों से फंडिंग ले रही है जो भारत विरोध के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है.आज बीबीसी की फंडिंग उस चीन की कंपनियां कर रही है जिनके यहां बीबीसी पर पहले से ही ढेर सारे प्रतिबंध लगे हुए हैं. आखिर बीबीसी उस चीन की कंपनियों से फंडिंग क्यों लेता है? यह सवाल बड़ा  वाजिब है क्योंकि चीन वास्तव में भारत के लिए एक बड़ा सिरदर्द है और सीमा पर हमारे और उसके बीच रिश्ते बहुत अच्छे नहीं हैं. आर्थिक मुद्दों पर भी चीन के साथ हमारी टकराहट जारी है. तो सवाल पैदा होता है की बीबीसी के बारे में भारत समाचार कैसे आंख मूंदकर बैठी रहे?

अब एक बार भारत में बीबीसी की आयकर सर्वे की बात करें. अगर आपने कोई गलत काम नहीं किया है तो फिर आपको ईडी, सीबीआई या फिर इनकम टैक्स के छापे से डरने की जरूरत ही नहीं है.लेकिन देखने में आ रहा है कि अकसर ज़ब भी छापे पड़ते हैं तो ये राष्ट्रविरोधी वर्ग इसको लोकतंत्र पर हमला या प्रेस की आज़ादी पर अतिक्रमण करार देते हैं. विपक्ष के किसी नेता पर अगर इनकम टैक्स, ईडी या सीबीआई का छापा पड़ गया तो वह उसे लोकतंत्र का गला घोंटना कहा जाने लगता है. किसी बिजनेसमैन के यहां छापा पड़ गया तो उसे भी किसी पार्टी से जोड़कर उस पार्टी को डराने धमकाने की साजिश बताई जाने लगती है. या फिर इसी क्रम में अगर किसी मीडिया समूह पर छापा पड़ गया तो इसे प्रेस की आजादी पर हमला करार दिया जाता है. 

प्रश्न यह है कि अगर आपने कुछ गलत किया ही नहीं है तो फिर ईडी के छापों से क्या अंतर पड़ता है? यदि कोई वित्तीय अनियमितता नहीं हैं, अथवा आपके  दस्तावेज मुकम्मल है, तो यह एजेंसियां कैसे आप को गलत साबित कर देंगी? दरअसल सच यह है कि चोर की दाढ़ी में तिनका होता है. ज़ब भी इन संस्थानों की जाँच होती है, तब ऐसे में इससे बचने का रास्ता तलाशने के लिए यह लोग एजेंसियों और सरकार पर उंगली उठाते हैं, उनकी मंशा पर सवाल उठाने लगते हैं और इसे लोकतंत्र की हत्या, प्रेस की आजादी पर हमला बताने लगते हैं.

यह एक तथ्य है कि अनेक समाचार पत्र या मीडिया समूह आज की तारीख में सिर्फ और सिर्फ पत्रकारिता के लिए काम नहीं कर रहे हैं. उनके अपने निहित स्वार्थ होते हैं. किसी को इसके माध्यम से पैसे कमाने हैं तो किसी को रुतबा हासिल करना है. किसी को इसके माध्यम से अपनी राजनीतिक आकांक्षाओं की पूर्ति करना है, तो किसी को इसके माध्यम से अपने विरोधी का कद को छोटा करना है. राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मीडिया समूह भी इस धंधे में लिप्त हैं. स्पष्ट तौर पर कहें तो ज्यादातर विदेशी मीडिया समूह अपने देशों के हितों के अनुकूल अपने छिपे एजेंडे के तहत कार्य करते हैं और उसी हिसाब से दूसरे देशों की छवि खराब करने, उनके यहां अशांति पैदा करने या उनकी अर्थव्यवस्था पर परोक्ष रूप से हमला कर उसको नुकसान पहुंचाने के लिए कार्य करते हैं. इन्हीं में से एक है ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन यानी बीबीसी. जो सदैव भारत विरोधी कार्यों में लिप्त रहता है. 

जहाँ तक बीबीसी और भारत के सम्बन्धों का सवाल है, बीबीसी आज भी अपनी साम्राज्यवादी  मानसिकता से नहीं उबर पाया है. उसे अब भी समझ नहीं है कि भारत अब एक आजाद मुल्क है और यहां की सार्वभौमिक सरकार अपने हिसाब से चीजों को देखती और निर्णय लेती है.  बीबीसी आज भी यह मानने को तैयार नहीं है कि भारत की अर्थव्यवस्था ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को पछाड़ चुकी है. जहां ब्रिटेन में आर्थिक हालात डावांडोल हो रहे हैं वहीं भारत में आर्थिक स्थिरता  है.

बीबीसी पर आरोप है कि उसके द्वारा ट्रांसफर प्राइसिंग नियमों के तहत गैर-अनुपालन किया, हस्तांतरण मूल्य निर्धारण मानदंडों का लगातार और जानबूझकर उल्लंघन किया गया और मुनाफे की महत्वपूर्ण राशि को जानबूझकर डायवर्ट किया और लाभ के आवंटन के मामले में सहमति की व्यवस्था का पालन नहीं किया है. ऐसे में अगर उसकी जाँच हो रही है तो यह गलत कैसे है? काहे का यह हाय तौबा?

एक तथ्य यह भी है कि आज भारत नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में विकास की नई ऊंचाइयों को छू रहा है और कुछ वर्गों को यह विकास पसंद नहीं आ रहा है. बीबीसी भी इनमें शामिल है. उसे भारत में पत्रकारिता करने का पूरा अधिकार है, लेकिन साथ ही देश के कानूनों का पालन भी करना होगा. बीबीसी यदि आर्थिक अपराध में लिप्त होगा तो कार्रवाई भी होगी.और वैसे भी वह जाँच एजेंसियों की कार्रवाई से सिर्फ इसलिए नहीं बच सकता कि उसने मीडिया का चोला पहन रखा है.

 

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