प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने जम्मू-कश्मीर की बैसरन घाटी (पहलगाम) में हुए घातक आतंकवादी हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ सख्त से सख्त कार्यवाई करने का निर्णय लिया है। इस हमले में 26 नागरिकों की मौत हो गई थी। पाकिस्तान स्थित प्रतिबंधित लश्कर-ए-तैयबा के सहयोगी संगठन द रेजिस्टेंस फ्रंट ने कथित तौर पर हमले की ज़िम्मेदारी ली है। द रेजिस्टेंस फ्रंट का वर्ष 2020 में उदय हुआ। इसे गृह मंत्रालय द्वारा वर्ष 2023 में विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप (निवारण) अधिनियम, 1967 के तहत आतंकवादी संगठन घोषित किया गया था।
भारत ने वर्ष 1960 की सिन्धु जल संधि को तब तक के लिये निलंबित कर दिया है जब तक कि पाकिस्तान सीमापार आतंकवाद को विश्वसनीय रूप से समर्थन देना बंद नहीं कर देता है। भारत ने पंजाब के अटारी में एकीकृत चेक पोस्ट को बंद कर दिया है जिससे लोगों और वस्तुओं की आवाजाही निलंबित हो गई है। केवल वैध दस्तावेज़ो के साथ सीमा पार करने वाले व्यक्तियों को ही 1 मई 2025 तक लौटने की अनुमति दी जाएगी। भारत ने पाकिस्तानी नागरिकों के लिये दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन वीज़ा छूट योजना को रद्द कर दिया है। पहले से जारी सभी वीज़ा निरस्त माने जाएंगे ।
नई दिल्ली में पाकिस्तान के रक्षा, नौसेना और वायु सलाहकारों को अवांछित व्यक्ति घोषित कर दिया गया है और उन्हें भारत से बाहर जाना होगा। भारत इस्लामाबाद से अपने सलाहकारों को भी वापस बुलाएगा। भारत 1 मई 2025 तक इस्लामाबाद स्थित अपने उच्चायोग में कर्मचारियों की संख्या को 55 से घटाकर 30 कर देगा यह कूटनीतिक भागीदारी में स्पष्ट गिरावट का संकेतक है जिसका उद्देश्य आधिकारिक स्तर पर द्विपक्षीय वार्ता को रोकना है।
पाकिस्तान के पारंपरिक सहयोगी जैसे अमेरिका, खाड़ी देश और यहाँ तक कि चीन भी इस्लामाबाद की घटती विश्वसनीयता और लाभ के कारण उससे दूरी बना रहे हैं। इसके अतिरिक्त वर्ष 2021 में अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी के बाद, अमेरिका के लिये पाकिस्तान का रणनीतिक महत्त्व काफी कम हो गया है, जिससे वह कूटनीतिक रूप से अलग-थलग पड़ गया है। गिरती अर्थव्यवस्था, बढ़ती मुद्रास्फीति और कमज़ोर सरकारी संस्थाओं ने पाकिस्तान को तेजी से अस्थिर बना दिया है। पाकिस्तान के पश्चिमी सीमा पर बढ़ते बलूच विद्रोह और निरंतर आतंकवादी गतिविधियों के कारण विदेशी निवेश भी आना बंद हो गया है।, जिससे इसकी आर्थिक परेशानियाँ बढ़ गई हैं और सुधार की संभावनाएँ बाधित हो गई हैं।
पहलगाम हमले के समय,प्रधानमंत्री मोदी सऊदी यात्रा पर थे ,और अमेरिकी उपराष्ट्रपति भी भारत यात्रा पर थे , यह दर्शाता है कि पाकिस्तान अपनी क्षेत्रीय शक्ति का प्रदर्शन कर रहा है और दक्षिण एशिया में अपने प्रभाव को जारी रखने का संकेत दे रहा है।
भारत और पाकिस्तान के बीच नौ वर्षों की बातचीत के बाद 1960 में कराची में हस्ताक्षरित सिंधु जल संधि की मध्यस्थता विश्व बैंक ने की थी। संधि के तहत सिंधु नदी प्रणाली की “पूर्वी नदियों” (रावी, व्यास और सतलुज) को भारत को अप्रतिबंधित उपयोग के लिये आवंटित किया गया है, जबकि “पश्चिमी नदियों” (सिंधु, झेलम और चिनाब) को पाकिस्तान के लिये आरक्षित किया गया है, जिससे पाकिस्तान को कुल जल के लगभग 80% तक पहुँच प्राप्त हो जाती है। भारत को संधि के तहत डिजाइन और परिचालन शर्तों के अधीन नेविगेशन, कृषि और जलविद्युत जैसे पश्चिमी नदियों के सीमित गैर-उपभोग्य उपयोग की अनुमति है।
सिंधु जल संधि ने वार्षिक वार्ता और सहयोग सुनिश्चित करने के लिये एक स्थायी सिन्धु आयोग की स्थापना की, तथा एक त्रिस्तरीय विवाद समाधान तंत्र की स्थापना की, जिसमें तटस्थ विशेषज्ञ (विश्व बैंक द्वारा या भारत और पाकिस्तान द्वारा संयुक्त रूप से नियुक्त) या यदि आवश्यक हो तो मध्यथता न्यायलय के माध्यम से समाधान शामिल है। वर्ष 2023 में भारत ने सिंधु जल संधि के अंतर्गत अपना पहला नोटिस जारी किया, जिसमें किशनगंगा और रतले जलविद्युत परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए संधि में संशोधन का अनुरोध किया गया ।
इन परियोजनाओं को “रन-ऑफ-द-रिवर” के रूप में वर्गीकृत किया गया है तथा इनका उद्देश्य नदी के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित किये बिना विद्युत् उत्पन्न करना है, इसके बावजूद पाकिस्तान ने चिंता जताई है तथा दावा किया है कि ये परियोजनाएँ सिंधु जल संधि की शर्तों का उल्लंघन करती हैं। भारत ने वर्ष 2024 में एक और नोटिस जारी कर सिंधु जल संधि की समीक्षा और संशोधन की मांग की। सिंधु जल संधि का अनुच्छेद XII (3) दोनों सरकारों के बीच विधिवत अनुमोदित समझौते के माध्यम से संधि में संशोधन की अनुमति देता है।
भारत द्वारा सिंधु जल संधि को निलंबित करना: भारत द्वारा संधि को निलंबित करना इसकी स्थापना के बाद से पहली बार है, जो सीमा पार आतंकवाद से जुड़ी जल कूटनीति में बदलाव का संकेत है। वियान संधि के अनुच्छेद 62 किसी देश को किसी संधि से पीछे हटने या अस्वीकार करने की अनुमति देता है यदि परिस्थितियों में कोई मौलिक परिवर्तन होता है जो संधि की निरंतरता को अस्थिर बनाता है।
भारत: सिंधु जल संधि के निलंबन से भारत को सिंधु नदी प्रणाली के प्रबंधन में अधिक लाभ प्राप्त होगा। भारत अब किशनगंगा (झेलम) जैसी परियोजनाओं पर जलाशयों की सफाई का काम मानसून का इंतजार किये बिना कर सकता है, जैसा कि संधि में पहले अनिवार्य था। इससे किशनगंगा बाँध की जीवन अवधि बढ़ाने में मदद मिलेगी भारत पश्चिमी नदियों पर जलविद्युत परियोजनाओं को तेज़ी से आगे बढ़ा सकता है, डिजाइन और परिचालन प्रतिबंधों को दरकिनार कर सकता है, तथा किशनगंगा और रतले (चिनाब पर) जैसी चल रही परियोजनाओं पर पाकिस्तानी निरीक्षण को रोक सकता है। हालाँकि, इस रोक से पाकिस्तान की जल आपूर्ति पर तत्काल प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि भारत के पास इस स्तर पर प्रवाह को पूरी तरह से नियंत्रित करने या मोड़ने के लिये बुनियादी ढाँचे का अभाव है। पाकिस्तान: सिंधु जल संधि के निलंबन से पाकिस्तान की जल सुरक्षा को खतरा है, क्योंकि इसकी 80% कृषि भूमि इन नदियों पर निर्भर है।
इस व्यवधान से खाद्य सुरक्षा, नगरीय जल आपूर्ति और विद्युत् उत्पादन पर प्रभाव पड़ सकता है और साथ ही पाकिस्तान के सकल घरेलू उत्पाद में सिंधु नदी तंत्र के 25% योगदान के कारण आर्थिक अस्थिरता भी उत्पन्न हो सकती है। नदी प्रवाह डेटा को रोकने की भारत की क्षमता से पाकिस्तान की सुभेद्यता और बढ़ जाएगी तथा बाढ़ तत्परता और जल संसाधन प्रबंधन में बाधा उत्पन्न होगी।
पाकिस्तान मध्यस्थता का प्रयास कर सकता है, विश्व बैंक से सहायता मांग सकता है, तथा भारत के साथ अनुकूल शर्तों पर वार्ता करने हेतु चीन जैसे सहयोगियों से सहायता की मांग कर सकता है, लेकिन आर्थिक बाधाओं के कारण वह कड़ी जवाबी कार्रवाई नहीं कर सकेगा। किशनगंगा (किशनगंगा नदी, झेलम नदी की एक सहायक नदी): वर्ष 2018 से क्रियाशील, यह पाकिस्तान के मंगला बांध की एक प्रमुख सहायक नदी के जल मार्ग में परिवर्तन करता है।
रतले (चिनाब): यह निर्माणाधीन है और इससे पाकिस्तान के पंजाब क्षेत्र में प्रवाह को और कम किया जा सकता है।शाहपुरकंडी (रावी): इससे रावी नदी का जल भारतीय नहरों की ओर मुड़ता है, जिससे पाकिस्तान की पहुँच सीमित हो जाती है।
उझ (रावी): एक नियोजित बाँध जिससे पाकिस्तान की जल की उपलब्धता को सीमित किया जा सकेगा। प्रतिरोधक क्षमता का सुदृढ़ीकरण: भारत को उच्च तकनीक सीमा निगरानी प्रणाली और स्मार्ट फेसिंग के साथ अपने बलों का आधुनिकीकरण करते हुए सीमा पर सुदृढ़ सैन्य उपस्थिति बनाए रखनी चाहिये। सुदृढ़ सीमा सुरक्षा सहित एक विश्वसनीय निवारक उपाय से विशेष रूप से कश्मीर में तनाव बढ़ाने अथवा संभावित सैन्य घुसपैठ को लेकर पाकिस्तान के प्रयासों इ रोकथाम की जा सकती है।
भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में आतंकवादी समूहों के लिये पाकिस्तान के समर्थन को उजागर करना चाहिये तथा इसकी वैश्विक निंदा पर ज़ोर देना चाहिये। भारत को संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 51 का उपयोग करना चाहिये, जिसमें आतंकवाद के खिलाफ सामूहिक कार्रवाई का आह्वान किया गया है, ताकि पाकिस्तान पर अधिक प्रतिबंध लगाने के लिये वैश्विक समर्थन जुटाया जा सके। इसके अतिरिक्त, भारत को आतंकवाद के वित्तपोषण में संलिप्तता के कारण पाकिस्तान को fatf की ब्लैक सूची में शामिल किये जाने की मांग करनी चाहिये, ताकि पाकिस्तान पर दबाव बनाया जा सके।