भारत का संतुलित विदेश नीति

प्रज्ञा संस्थानप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को यूक्रेन पहुंचे. वो यहां यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदोमीर ज़ेलेंस्की से गर्मजोशी से मिले. पीएम मोदी और ज़ेलेंस्की ने इस दौरान एक दूसरे को गले लगाया.ये वैसा ही नज़ारा था जैसा पीएम मोदी ने छह हफ्ते पहले रूस के दौरे के दौरान राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को गले लगाया था. इसको लेकर ज़ेलेंस्की ने आपत्ति जताई थी.ज़ेलेंस्की ने कहा था, ”आज रूस के मिसाइल हमले में 37 लोग मारे गए. इसमें तीन बच्चे भी शामिल थे. रूस ने यूक्रेन में बच्चों के सबसे बड़े अस्पताल पर हमला किया. एक ऐसे दिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नेता का दुनिया के सबसे ख़ूनी अपराधी से मॉस्को में गले लगाना शांति स्थापित करने की कोशिशों के लिए बड़ी निराशा की बात है.”

ऐसे में पीएम मोदी की इस यूक्रेन यात्रा को संतुलन साधने के तौर पर देखा जा रहा है. इसके बाद चर्चा हो रही है कि यूक्रेन और रूस के बीच जारी संघर्ष को लेकर मोदी और ज़ेलेंस्की में क्या बात हुई? इससे क्या हासिल हुआ?कृषि, प्रौद्योगिकी, फ़ार्मा और ऐसे अन्य क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देने के तरीक़ों पर चर्चा कीभारत ने मानवीय दृष्टिकोण को केंद्र में रखते हुए इसे पूरा करने का प्रयास किया है.”

मोदी का ये सांकेतिक दौरा था या इसके गहन मायने भी थे क्योंकि मोदी इसी साल मॉस्को भी गए थे.  “ये पश्चिमी देशों के लिए एक संकेत ज़रूर है कि भारत एक संतुलित विदेश नीति रखता है. ये एक साहस से भरा कूटनीतिक क़दम है.”

”जब से यूक्रेन एक स्वतंत्र देश बना है, उसके बाद से यह इस स्तर की पहली यात्रा है. ये वक्त भी ऐसा है जब युद्ध के दौरान, कुछ इलाक़ों पर यूक्रेन के कब्ज़े का दावा है. ऐसा दूसरे विश्वयुद्ध के बाद, पहली बार हुआ है. मोदी पहले रूस गए थे जिसके बाद, पश्चिमी देश नाराज़ हो गए थे.”इस यात्रा से एक तरह से यह बताने की कोशिश है कि भारत की विदेश नीति संतुलित है. ये एक तरफ़ संतुलन का प्रयास है तो दूसरी तरफ़ ‘पुल बांधने’ का प्रयास है, यानी ‘ब्रिजिंग रोल’ है.

पहला प्रयास कि रूस और यूक्रेन को कैसे जोड़ें और दूसरा प्रयास कि कैसे भारत ‘ग्लोबल साउथ’ यानी ‘वैश्विक दक्षिण’ के प्रतिनिधि के रूप में, यूक्रेन को ग्लोबल साउथ से जोड़ सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि युद्ध का बड़ा प्रभाव ग्लोबल साउथ पर हुआ है. साथ ही प्रधानमंत्री ने इस दौरे पर भी यह भी कहा है कि यह ‘युद्ध का नहीं बुद्ध का समय है’, यानी यह दौरा कहीं ना कहीं शांति की कोशिश है.रूस और यूक्रेन के बीच भारत की भूमिका क्या देखते हैं शीत युद्ध के बाद से यानी 1991 के बाद से अब तक भारत की ऐसी कोशिश नहीं रही कि वो मध्यस्थता की बात करे चाहे वो अफ़ग़ानिस्तान हो, सीरिया हो या इराक़ हो.भारत अगर दोनों पक्षों को सामने लाने की बात कर रहा है तो हम कह सकते हैं कि भारत की विदेश नीति में एक अहम परिवर्तन देख रहे हैं. जहां तक अभी की बात है… न तो अमेरिका और न ही रूस अभी युद्धविराम की बात कर रहा है.”

राजनीतिक माहौल भी अभी इस ढंग का नहीं है कि युद्धविराम की बात की जाए. भारत ने चीन या तुर्की की तरह न तो शांति प्रस्ताव की बात की है और न ही कोई प्लेटफॉर्म दिया है. अभी ये स्पष्ट नहीं है कि अगर मध्यस्थता की बात हो तो भारत किस तरह की भूमिका निभाएगा.”यूक्रेन के 1991 में स्वतंत्र होने के बाद यह भारतीय प्रधानमंत्री की देश की पहली यात्रा है. रूस ने 24 फरवरी, 2022 को यूक्रेन पर हमला किया था. तब से लेकर अभी तक दोनों देशों के बीच युद्ध जारी है.फरवरी 2022 से जारी ये लड़ाई कब थमती है यह तो आने वाले समय ही बताएगा, लेकिन पीएम मोदी ज़ेलेंस्की और पुतिन दोनों से बोल चुके हैं कि शांति ही समाधान है.

 

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