जासूसी कांड में फँसे ईमानदार

 

देश में लंबे समय से ईमानदार राजनीति की उम्मीद की जाती है. दावे तो बहुत से दलों ने किये किंतु आधिकारिक दावा लेकर पहुंचने वाले नेता अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी थी. लेकिन ये सत्ता सुख और सत्ता में बने रहने का प्रलोभन क्या से क्या न का दे. कभी भी नैतिकता और ईमानदारी से पल्ला छुड़ाया जा सकता है. यही केजरीवाल और उनकी टीम के साथ हुआ है. ईमानदारी का नकाब उतरा है तो रोज नये कारनामें चर्चा में आ रहे हैं.
दिल्ली सरकार के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया पुनः कानूनी दिक्क़तों में घिरते नजर आ रहे हैं. फीडबैक यूनिट मामले में गृह मंत्रालय ने उन पर मुकदमा चलाने की अनुमति दे दी है. सिसोदिया पहले से आबकारी नीति घोटाले में आरोपी है और उन पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है.  फीडबैक यूनिट का मामला कुछ पुराना है. 2015 में भ्रष्टाचार को रोकने और सरकारी कर्मचारियों की गतिविधियों पर निगरानी के नाम पर इसका गठन हुआ था. यह अपनी रिपोर्ट सीधे मुख्यमंत्री कार्यालय को भेजती थी. सरकारी फंड से इसके लिए करोड़ों रूपये की व्यवस्था की गई थी. इस यूनिट के अंतर्गत पुलिस और ख़ुफ़िया सेवाओं के कई सेवानिवृत  अधिकारियों को शामिल किया गया था.
  2016 में ज़ब शुंगलु समिति ने जाँच-पड़ताल की तब जाकर यह मामला प्रकाश में आया. उस समय दिल्ली के उपराज्यपाल रहे नजीब जंग ने इसे अवैध कहकर सीबीआई जाँच के आदेश जारी कर दिये. उसी जाँच की रिपोर्ट के आधार पर सीबीआई ने मुकदमा चलाने की अनुमति माँगी थी. सिसोदिया के अतिरिक्त सीआइएसएफ के पूर्व महानिदेशक राकेश कुमार सिन्हा, सीआइएसएफ के सहायक कमांडेंट सतीश खेत्रपाल, तत्कालीन सतर्कता सचिव सुकेश जैन, आईबी के पूर्व संयुक्त उपसचिव प्रदीप कुमार पुंज के ऊपर भी मुकदमा दर्ज किया गया है.
सीबीआई द्वारा दिल्ली के उपराज्यपाल को भेजी गई रिपोर्ट के अनुसार इस मामले से जुड़ी कई अनियमिततायें प्रत्यक्ष हैं. जैसे कि फीडबैक यूनिट के गठन के प्रस्ताव के साथ कोई एजेंडा नोट जारी नहीं किया गया था. इसकी नियुक्तियां भी बगैर उपराज्यपाल के स्वीकृति के की गई थीं. इसके अतिरिक्त उस यूनिट के चालीस फीसदी रिपोर्ट राजनीतिक ख़ुफ़िया और ऐसे ही अन्य मामलों पर आधारित थे. केवल साठ प्रतिशत रिपोर्ट ही भ्रष्टाचार और सतर्कता से  सम्बंधित मुद्दों पर आधारित थी. स्पष्ट है कि ना सिर्फ सार्वजनिक धन का, बल्कि राज्य सरकार के संरक्षण में सत्ता का दुरूपयोग हुआ है.
  हालांकि अभी अरविंद केजरीवाल इससे बचे हैं लेकिन यदि जाँच की आंच उन तक पहुंची तो यह उनकी राजनीतिक महत्त्वकांक्षा के लिए बड़ी समस्या होगी. पंजाब विजय और गुजरात में अपनी दमदार उपस्थित दर्ज कराने के बाद आम आदमी पार्टी अपने लिए दूसरे अन्य राज्यों में भी जमीन तलाश रही है. परंतु उनकी सरकारों की कार्यशैली निरंतर नकारात्मक कार्यों के कारण ही चर्चा में है.
अब मनीष सिसोदिया और फीडबैक यूनिट का  मामला कब तक अदालती कटघरे में न्याय के लिए प्रतीक्षारत रहता है और कब तक इसका उचित निर्धारण होता है, यह तो भविष्य का विषय है. लेकिन दिल्ली और पंजाब में अपने कुशासन के लिए आलोचनाओं के घेरे में खड़ी आम आदमी पार्टी के लिए यह और मुश्किलें खड़ी करेगी.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Name *