अरूणाचल में अमित शाह की धमक

भारत के गृहमंत्री अमित शाह की यात्रा से अरूणाचल प्रदेश पुनः अखबारों की सुर्खियों में है। वे दो दिवसीय अपनी यात्रा पूरी कर चुके हैं। इस यात्रा का समय और संदेश अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसे पड़ोसी चीन को एक सीधा संदेश मिला है l संदेश तो कई हैं, लेकिन कम से कम तीन बातें ऐसी हैं जिन्हें देश-दुनिया ने जाना और समझा है। पहली बात का संबंध चीन के विस्तारवादी नीति से है। उसे गृहमंत्री अमित शाह ने उस जगह से संदेश दिया है जो भारत का पहला गांव है। उसका नाम है, किबिथू। यह वह गांव है जो आमतौर पर भारत के आखिरी गांव के रूप में पहचाना जाता था। अमित शाह ने चीन की सीमा से बिल्कुल सटे हुए इस गांव को नया नाम दिया। नई पहचान दी। और कहा कि यह भारत का आखिरी नहीं, पहला गांव है। वे एक राजनेता के रूप में खासकर भारत के गृहमंत्री के बतौर वहां पहुंचने वाले अमित शाह पहले ऐसे व्यक्ति हैं। लेकिन हमें यह भी जानना चाहिए कि ऐसे अनूठे काम करना उनके स्वभाव का अंग है। सच कहें, तो यह दूसरों के लिए अनूठा लगेगा लेकिन अमित शाह का  यह  स्वभाव ही है।
इसके बहुत सारे उदाहरण गिनाए जा सकते हैं। जैसे कि ताजा उदाहरण नगालैंड विधानसभा चुनाव का है। जिसमें वे एक ऐसे गांव में रात को रूके जहां कोई गृहमंत्री पहले नहीं रूका था। इसका जो परिणाम हुआ वह किसी चमत्कार से कम नहीं है। ऐसे ही 2019 के लोकसभा चुनाव प्रचार की जब उन्होंने पश्चिम बंगाल में शुरूआत की तो वे नक्सलबाड़ी इलाके में एक परिवार में रूके। उनके रूकने का असर हुआ कि माओवादियों और ममतावादियों के हौसले पस्त हो गए। इसी तरह अपनी अरूणाचल यात्रा में उन्होंने एक इतिहास बनाया। जिसे उस क्षेत्र के लोग जन्म-जन्मांतर तक याद रखेंगे। उन्हें एक भरोसा भी मिला होगा कि भारत ने हमको भुलाया नहीं है, बल्कि अपनाया है।
किबिथू मात्र एक गांव नहीं है। वह भारत की आन और स्वाभिमान का प्रतीक है। उस पर चीन की नजर है। उसे चुनौती देते हुए गृहमंत्री ने रात वहीं गुजारी। जिन्होंने वह दृश्य देखा नहीं, वे कल्पना करें तो समझ सकते हैं कि यह अपने आप में कितनी बड़ी बात थी। उन्होंने सिर्फ दौरा नहीं किया, वहां का मनोबल ही सिर्फ नहीं बढ़ाया, बल्कि उस सीमावर्ती इलाके में खुशहाली लौटे और लोग एक सुख-सुविधा का जीवन जीए, इसका एक उपहार भी दिया। किबिथू सहित पांच गांवों में स्वावलंबी जीवन के लिए विभिन्न सुविधाओं का विकास कार्यक्रम की शुरूआत कर उसे बल दिया। भारत सरकार ने अरूणाचल, सिक्किम, उत्तराखंड, हिमाचल और लद्दाख के करीब तीन हजार गांवों को इस तरह के विकास कार्यक्रमों के लिए चुना है। इनमें 455 गांव अरूणाचल प्रदेश के हैं। वहां पन बिजली पहुंचेगी।
किसी जमाने में इसकी चर्चा होती थी कि अरूणाचल प्रदेश में पन बिजली की अपार संभावनाएं हैं। उसे साकार करने का बीड़ा नरेंद्र मोदी सरकार ने उठा लिया है। उसी लक्ष्य से प्रेरित छोटी पन बिजली योजनाएं बनाई गई हैं। अमित शाह ने उन कुछ योजनाओं की वहां शुरूआत कर दी। इससे जहां गांवों में बिजली पहुंचेगी वहीं सीमा पर तैनात आईटीबीपी और सेना के जवान भी उसका लाभ उठा सकेंगे। सीमा पर सतर्कता के साथ इस बात का भरोसा भी जरूरी है कि चीन ने अगर दुसाहस किया तो उसे माकूल जवाब दिया जाएगा।
यहां यह कहने की जरूरत नहीं है क्योंकि हर भारतीय उस चोट  को अब तक सहला रहा है जो 1962 में चीन ने पहुंचाया था। स्वाभाविक ही था कि वहां गृहमंत्री अमित शाह ने उस युद्ध को याद किया, जिसमें भारतीय सैनिकों ने गजब की हिम्मत और बहादुरी दिखाई। चीनी हमले में वह एक ऐसा रणक्षेत्र बना था जहां जबर्दस्त लड़ाई हुई थी। चीनी सैनिको ं को मात खानी पड़ी थी। वे बड़ी संख्या में मौत के घाट उतरे। भारतीय सैनिक थोड़े थे लेकिन इतनी बहादुरी से लड़े कि चीन के चार हजार से ज्यादा सैनिकों को मार गिराया। उस लड़ाई में भारत के सैनिकों की बहादुरी की यश पताका पूरी दुनिया में लहरायी। उस समय जिन पत्रकारों ने उस क्षेत्र की रिपोर्टिंग की  उन्होंने इसे दर्ज किया था। उसमें विदेशी पत्र-पत्रिकाएं भी थी।
वहां पहुंचकर गृहमंत्री अमित शाह का कवि भाव जागा। उन्होने कहा कि भारत में सूरज की पहली किरण यही पड़ती है। इसलिए यह किबिथू का इलाका भारत मां के मुकुट का चमकता गहना है । इसमें संदेह नहीं है कि भारत के उस हिस्से के लोग  देश भक्त है । इसे उन्होंने समय-समय पर अपने व्यवहार से सिद्ध किया है। गृहमंत्री अमित शाह ने जो दूसरी बात वहां की वह उनकी ललकार है। अखबारों में छपा है कि उन्होंने अपने भाषण में  कर दिया कि भारत की ओर बुरी नजर से देखने के दिन लद गए। अब कोई हमारी सुई की नोक जितनी जमीन पर भी अतिक्रमण नहीं कर सकता है। यह चीन को चेतावनी भी है और भारत के संकल्प का उद्घोष भी है। इसका असर अरूणाचल प्रदेश तक  सीमित नहीं रहेगा, दूर-दूर तक जाएगा। इसलिए जाएगा क्योंकि एक बार लापरवाही से अरूणाचल और उसके जरिए भारत का मन घायल हो चुका है।
तीसरी बात जो उन्होंने  की वह ज्यादा महत्वपूर्ण है। वह यह कि अरूणाचल प्रदेष भारत का अंग है और उसकी ऐतिहासिकता असंदिग्ध है। भारत सांस्कृतिक, राजनीतिक और सामरिक पहलुओ से अरूणाचल को अपना मानता है। अरूणाचल के नागरिक भी भारत को अपनी जन्मभूमि और कर्मभूमि मानते हैं। यह वही अनुभव कर सकेगा जो वहां जाकर लोगों से मिले  और उनसे संवाद करे। जहां तक ऐतिहासिकता और सांस्कृतिक संबंधों का प्रश्न है वहां कितने ऐसे स्थान हैं जिनका जुड़ाव हमारे इतिहास और पुराण से है। वह लोगों की स्मृति में है l ऐसे तो अरूणाचल प्रदेष मे 15 ऐतिहासिक स्थान प्रसिद्ध है। जिनमें एक है, मालिनीथान। यह वह स्थान है जो पौराणिक कथाओं में वर्णित है। उसे जो जानेंगे वे समझ सकेंगे कि यह वह स्थान है जहां श्रीकृश्ण ने युद्ध में जीतकर राजा भीष्मक की बेटी रुक्मणी को परास्त किया और विवाह किया।
इसी तरह एक स्थान ऐसा भी है जहां हर मकर संक्रांति को मेला लगता है। दूर-दूर से लोग आते हैं और परशुराम  कुंड की तीर्थ यात्रा का पुण्य कमाते है। ऐसे ही विजय नगर स्तूप, इटानगर का किला, ताम्रेष्वरी देवी का मंदिर, शिवलिंग गुफा आदि स्थान इस बात की याद दिलाते हैं कि चीन के दावे का कोई आधार नहीं है। सिवाय इसके कि वह झूठे दावे कर अपनी विस्तारवादी नीति का दंभ पाले हुए है। उसी नीति के तहत चीन ने पिछले दिनों दो  बातें की। पहली कि इसी महीने 3 अप्रैल को चीन ने अरूणाचल प्रदेश  11 स्थानों के नाम चीनी भाषा  में जारी किए। इससे वह बताना चाहता है कि वे स्थान भारत के नहीं, चीनी क्षेत्र में आते हैं। इस तरह वह एक झूठा दावा पेश  कर रहा है। इसी तरह उसने दूसरा काम किया कि भारत के चीन में कार्य रत दो पत्रकारो को सूचना दी कि उनका वीजा रोक लिया गया है लिहाजा वे चीन वापस नहीं आ सकते हैं। खास बात यह  है कि दोनों  पत्रकार छुट्टियों  भारत आए हुए थे
ऐसे समय में गृहमंत्री अमित शाह  का अरूणाचल प्रदेश  में पहुंचना और सीधा संदेश  देना कितना सामयिक है और सरकार की सतर्कता का कितना सटीक उदाहरण है, यह सभी लोग अनुभव कर रहे हैं। इस अनुभव के साथ अतीत की यादे ताजा हो जाती हैं। एक समय ऐसा भी था जब अरूणाचल प्रदेश उपेक्षित  था। इसकी ओर गृहमंत्री अमित शाह ने अपने भाषण  में संकेत भी किया। उनका कहना उसी लापरवाही को चिहिंत करना जैसा है। सरदार पटेल ने एक लंबा  पत्र पंडित नेहरू को लिखा था। उसे आज पढ़ने पर चकित हो जाना पड़ जाता है। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री को चेतावनी दी थी कि चीन तिब्बत को हड़पने जा रहा है, सावधान हो जाइए। लेकिन  नेहरू   विश्व नेता बनने  के सपने में खोए हुए थे। इसी का परिणाम हुआ  कि तिब्बत हाथ से निकला। चीन ने भारत पर हमला करने की जुर्रत की।
गृहमंत्री अमित शाह की अरूणाचल यात्रा का संदेश  सही ठिकाने पर पहुंचा है। इसका एक परिणाम स्वय चीन है। उसकी प्रतिक्रिया  है। वह झुझलाहट में प्रकट हुई है । लेकिन भारत सरकार ने तुरंत उसे जवाब भी दे दिया। चीन की आपत्ति को निराधार कह कर खारिज कर दिया है। एक तस्बीर अखबारों में छपी है । वह वालोंग युद्ध स्मारक का है। तस्बीरों में अमित शाह उन वीर शहीद  सैनिकों की मूर्तियों के बीच खड़े है । तस्बीर वहां की है जहां हिमालय की पहाडियां कभी युद्ध स्थल बनी थी। अरूणाचल प्रदेष के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने भी चीन को सीधा ललकारा और कहा कि यह 1962 का भारत नहीं है, बल्कि ऐसा भारत है जिसका नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह  कर रहे हैं। बार-बार 1962 इसलिए भी याद किया जाता है क्योंकि तब अरूणाचल प्रदेश ‘नेफा’ कहलाता था। अंग्रेज इसे नेफा कहते थे और आजादी के बाद 1962 तक यह उसी नाम से पुकारा  जाता था। आज वह अपने स्वरूप में है।

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