वंदे मातरम‘ के 150 साल पूरे होने के मौक़े पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में सोमवार को इस पर चर्चा की शुरुआत की. साथ ही राज्यसभा में भी इस मुद्दे पर मंगलवार से बहस शुरू होने की संभावना है.“जब वंदे मातरम के पचास वर्ष हुए तब देश गुलामी में जीने के लिए मजबूर था. जब इसके 100 साल हुए देश आपातकाल की जंजीरों में जकड़ा हुआ था. तब भारत के संविधान का गला घोंट दिया गया था.” उन्होंने कहा, “इसके 150 वर्ष उस महान अध्याय को उस गौरव को पुनःस्थापित करने का अवसर है.
यह गीत ऐसे समय पर लिखा गया जब 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेज़ सल्तनत बौखलाई हुई थी. भारत पर भांति-भांति का दबाव था, भांति-भांति के जुल्म कर रही थी और भारत के लोगों को अंग्रेज़ों के द्वारा मजबूर किया जा रहा थायह गीत बंकिम चंद्र चटर्जी ने 1875 में लिखा जो बांग्ला और संस्कृत में था. यह गीत बाद में बंकिम चंद्र चटर्जी ने ने अपनी प्रसिद्ध लेकिन विवादस्पद कृति ‘आनंदमठ’ (1885) में जोड़ दिया.
बाद में रबीन्द्रनाथ टैगोर ने इसके लिए एक धुन भी बनाई.7 नवंबर को ‘वंदे मातरम’ की डेढ़ सौवीं वर्षगांठ से जुड़े कार्यक्रमों की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आरोप लगाया था कि, कांग्रेस ने 1937 के फ़ैज़ाबाद अधिवेशन से
पहले ‘वंदे मातरम के कुछ अहम हिस्सों को हटा दिया था. 1937 में वंदे मातरम के कुछ अहम पदों को, उसकी आत्मा के एक हिस्से को हटा दिया गया था. वंदे मातरम को तोड़ दिया गया था. ये अन्याय क्यों किया गया. इसी ने विभाजन के बीज बोए.
वंदे मातरम’ की रचना बंकिम चंद्र चटर्जी ने 1875 में की थ.बंकिम चंद्र चटर्जी (1838-1894) पहले हिंदुस्तानी थे जिन्हें इंग्लैंड की रानी ने भारतीय उपनिवेश को अपने अधीन में लेने के बाद 1858 में डिप्टी कलेक्टर के पद पर नियुक्त किया था. वे 1891 में रिटायर हुए और अंग्रे़ज शासकों ने उन्हें ‘राय बहादुर’ समेत कई उपाधियों से सम्मानित किया. यह गीत उन्होंने 1875 में लिखा जो बांग्ला और संस्कृत में था. यह गीत बाद में बंकिम ने अपनी प्रसिद्ध लेकिन विवादस्पद कृति ‘आनंदमठ’ (1885) में जोड़ दिया.
इस गीत से जुड़ा एक रोचक सच यह है कि इसमें जिन प्रतीकों और जिन दृश्यों का ज़िक्र है वे सब बंगाल की धरती से संबंधित हैं. इस गीत में बंकिम चंद्र चटर्जी ने सात करोड़ जनता का भी उल्लेख किया है जो उस समय बंगाल प्रांत (जिस में ओडिशा-बिहार शामिल थे) की कुल आबादी थी. इसी तरह जब अरबिंदो घोष ने इसका अनुवाद किया तो इसे ‘बंगाल का राष्ट्रगीत’ का टाइटल दिया. रबीन्द्रनाथ टैगोर ने इस गीत के लिए एक ख़ूबसूरत धुन भी बनाई थी. बंगाल के बंटवारे ने इस गीत को बंगाल का राष्ट्रगीत बना दिया. 1905 में अंग्रेज़ सरकार की ओर से बंगाल के विभाजन के विरुद्ध उठे जनआक्रोश ने इस गीत को अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ एक हथियार में बदल दिया. तब स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में हिस्सा ले रहे लोगों ने अंग्रेज़ी शासन के ख़िलाफ़ अपने प्रदर्शन में इस गाने का भरपूर इस्तेमाल किया. इसमें हिंदू और मुसलमान दोनों ही शामिल थे.
वंदे मातरम का नारा उस समय सारे बंगाल में आग की तरह फैल गया जब बारीसाल (अब बांग्लादेश में) में किसान नेता एम रसूल की अध्यक्षता में हो रहे बंगाल कांग्रेस के प्रांतीय अधिवेशन पर अंग्रेज़ सेना ने ‘वंदे मातरम’ गाने के लिए बर्बर हमला किया. रातों रात यह बंगाल ही नहीं बल्कि सारे देश में गूंजने लगा. भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, रामप्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ान जैसे स्वतंत्रता सेनानियों ने भी वंदे मातरम गाया. यह नारा साझे राष्ट्रवाद का मंत्र बन गया बिल्कुल वैसे ही जैसे इंक़लाब ज़िंदाबाद. 20वीं शताब्दी का दूसरा दशक आते-आते अंग्रेज़ विरोधी राष्ट्रीय आंदोलन देशव्यापी रूप ले चुका था.कांग्रेस, ने गाँधी, नेहरू, अबुल कलाम आज़ाद और सुभाष चंद्र बोस को लेकर 1937 में एक समिति बनाई जिस ने इस गीत पर आपत्तियां आमंत्रित कीं.
