हिंदू मानसिकता

प्रज्ञा संस्थानउस समय जैसे आज भी हैं। उस समय एक चर्चा थी कि हिंदुओं का जागरण करने का रास्ता क्या है? आप जानते हैं कि हिंदू सभा के लोग बहुत जोशीले भाषण देते थे। गांधी जी की नीति हिंदुत्व विरोधी थी। जब मैं गांधी जी के बारे में बोलता हूं तो लोग कहते हैं आप क्या विचित्र बोल रहे हैं? हम कहते हैं कि गांधी जी सांस्कृतिक दृष्टि से श्रेष्ठ हिंदुओं में से एक थे। हिंतु राजनैतिक दृष्टि से हिंदुओं के सबसे बड़े दुश्मन गांधी जी थे। लोग कहते हैं यह परस्पर विरोधी वक्तव्य हैं। हम कहते हैं वास्तविकता यही है। सांस्कृतिक दृष्टि से गांधी जी हिंदुओं में सबसे श्रेष्ठ थे किंतु राजनैतिक दृष्टि से हिंदुत्व के और हिंदू राष्ट्र के सबसे बड़े विरोधी। उनकी इसी दृष्टि के कारण पाकिस्तान निर्माण हो सका। दोनों बातें सत्य हैं। जब गांधी जी ने मुस्लिम-तुष्टिकरण शुरू कर दिया तो भी बहुत से हिंदू गांधी जी के साथ गए।

सावरकर जी जेल से छूटकर आए। उनका प्रभावी व्यक्तित्व था। बंगाल, तमिलनाडु पंजाब सब जगह के दौरे हुए। हजारों लाखों की संख्या में लोगों ने भाग लिया, तालियां बजाई लेकिन हिंदू गांधी जी को समर्थन देते रहे। सावरकर जी को, हिंदू सभा वालों को समर्थन नहीं मिला। कट्टर हिंदू थे हिंदू सभा वाले। भाषणों में जोशीले, ओजस्वी, तेजस्वी आदि। उनको हिंदू समाज का समर्थन नहीं मिला।

वास्तव में जिनकी गलत नीतियों के कारण हिंदुस्तान का विभाजन हुआ, उन्हीं गांधी जी को हिंदू समाज का समर्थन मिलता गया। लेकिन हिंदू समाज के ओजस्वी नेताओं ने इसका भी कभी विचार नहीं किया। यह हिंदू मानसिकता क्या है? मैं समझता हूं कि हमारे लिए भी यह सोचने की बात है कि हिंदू मानसिकता क्या है? यहां बहुत लोग गलती करते हैं। अभी राम जन्मभूमि के कारण एक बड़ी विजय प्राप्त हुई। यह ऐतिहासिक क्षण का दिन है। हिंदू समाज में अब तक जो नीचे जाने वाली बात थी किंतु वह अब ऊपर जाना शुरू हो गया है। अब इसके कारण आनंदित होना भी स्वाभाविक है। लेकिन हिंदू मानसिकता क्या है?

एक छोटी सी बात मैं आपको बताऊं। नवंबर की सात तारीख को, दिल्ली के बोट क्लब पर बड़ी मीटिंग हुई। रज्जू भैया और मैं, हम दोनों आर.एस.एस. की ओर से बोलने वाले थे। सबसे कम प्रभावशाली भाषण हम दोनों का था। और सबसे प्रभावशाली भाषण एक अन्य नेता का था। लोग कहने लगे साहब नेता चाहिए तो ऐसा चाहिए। उन्होंने भाषण में कहा कि अब हिंदू मरेगा नहीं मारेगा। अब हम बलिदान देने वाले नहीं हैं, बलिदान लेने वाले हैं। तालियां बजीं। मैं उनको पहचानता नहीं था। बाद में मैंने पूछा कि क्यों भाई ये कौन हैं? बोले कि ये फलानी-फलानी एक संस्था है उसके नेता हैं। हमने कहा कि मालूम होता है कि वह अयोध्या पहुंचे हुए हैं। बोले ना। मालूम होता है उत्तर प्रदेश में गए थे, बोले ना। शायद हो सकता है कि जो दिल्ली के नेता दिल्ली के बार्डर पर, गाजियाबाद पर ही अरेस्ट हो गए उस ग्रुप में ये थे? बोले ना-ना ये घर के बाहर गए ही नहीं। यहां तक कि चंदा इकट्ठा करना था उसके लिए भी कभी किसी के यहां नहीं गए। आराम से घर बैठे थे। हमने कहा कि भाषण तो जोशीला करते हैं, काम नहीं करते। लेकिन लोगों ने हमको बताया कि साहब नेता चाहिए तो ऐसा चाहिए। हम मरेंगे नहीं मारेंगे। हम नहीं कह सकते, मैं नहीं कह सकता। इसके कारण हमको तालियां नहीं मिलेंगी उनको बहुत तालियां मिलेंगी। डा. जी के साथ ऐसा नहीं था। वे जो बोलते थे अनुभव पर आधारित होता था।

कोई उथल-पुथल नहीं, वही कलकल करने वाला। संघ द्वारा ऐसा ही चलता था। और यहां ओजस्वी, तेजस्वी भाषण होते थे। लेकिन हिंदू मानसिकता का पता नहीं। जैसे मैंने कहा यह जो प्रभावी भाषण हुआ 7 तारीख का। उसके बाद कुछ ओजस्वी लोग हमको मिले। मैंने उनको कहा कि भई हिंदू मन को तुमने समझ लिया है क्या? बोले, क्या है? अब तो हिंदुत्व की लहर है। हम सबके साथ मिलते हैं। बोले हां-हां सारा हिंदुस्तान अब हिंदुत्व मय हो गया। हमने कहा ऐसा मत समझो तुम हवा में छलांगें मत लगाओ।

 

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