सबको सन्मति दे भगवान


जो भूमि अमर हिमालय से घिरी हुई और गंगा की स्वास्थ्यप्रद धाराओं से सिंचित होती है, क्या वह हिंसा से अपना नाश कर लेगी? मैं अंतःकरण से आशा करता हूं कि बड़ी-बड़ी फौजें रखने का ख्याल हम अपने दिल से निकाल डालेंगे. इन फौजों से हमारा कुछ भी भला नहीं होने वाला है और उनके रहते हमारी आजादी की कोई कीमत न होगी.

मंगलवार 8 अप्रैल 1947मैं देखता हूं कि अब आपने इतनी शांति अपना ली है कि रोज-रोज धन्यवाद देने की आवश्यकता नहीं रहती. आज मैं अपनी दुर्दशा पर ही बोलना चाहता हूं और मुझे उम्मीद है कि आपके कानों तक इसका एक-एक शब्द पहुंचेगा तथा इसकी एक-एक बात आपके हृदय का भेदन करेगी यानी हृदय की गहराई में पहुंचकर वह अपना असर डालेगी.

कल अखबार में आपने सतीश बाबू और हरेन बाबू के तार देखे ही होंगे. में जो तार भेजा है उसमें वह लिखते हैं कि आज सतीश बाबू ने प्रत्युत्तर जीवनसिंहजी, प्यारेलालजी और दूसरे जो आपके साथी यहां आकर काम कर रहे हैं, उन सबने मरते दम तक यहीं पर बने रहने का निश्चय किया है और सभी यह बात मंजूर करते हैं कि आपका कहना सही है. यहां के हिंदू ऐसा कर सकते हैं जैसा आपने लिखा है. खतरा तो पूरा है, मारे जाने का डर बढ़ता जा रहा है. अब डर के मारे भाग जाना वे पसंद नहीं करते. वे सोचते हैं कि अगर मौत आने ही वाली है तो उसे ईश्वर का प्रसाद समझकर मंजूर कर लेना ही अच्छा है. यह खुशी से मरने की बात है, मारकर मरने की बात नहीं है. यह सब आज तक किए गए काम का नतीजा है.

मैंने उन लोगों से पूछवाया था कि आप यह तो नहीं चाहते कि मैं यहां का काम छोड़कर आपके पास चला आऊं ? मुझे दूसरे जरूरी काम हैं. मुझे बिहार जाना है. फिर पंजाब भी पड़ा है. उन लोगों ने मुझे लिखा है कि ‘तुम यहां आने का जरा भी खयाल न करो. ‘

वे सारे लोग अलग-अलग जगह फैले हुए हैं. सतीश बाबू एक ओर हैं तो हरेन बाबू दूसरी ओर चौमुहानी में बड़ा भारी काम कर रहे हैं. अम्तुस्सलाम, प्यारेलाल, कनु और आभा – जैसेहरेक ने एक-एक गांव चुना लिया है. मुझे भरोसा है कि सभी लोग मेरी उम्मीद के मुताबिक भलीभांति काम करेंगे. मेरी वह उम्मीद क्या है? मेरी उम्मीद तो है कि भगवान से सबको सुमति मिलेगी, जैसा कि यह लड़की रामधुन में सुनाती है ‘सबको सन्मति दे भगवान’. मैं यह उम्मीद करता ही रहूंगा कि वे समझ लेंगे कि जबरदस्ती और मारपीट से कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है. अगर किसी से मारपीट कर कुछ ले लिया या दूसरे से कुछ करवा लिया तो वह टिकने वाली बात नहीं होगी. ऐसा तो चोर – डाकू करते हैं. दूसरे लोग डाका डालें तो क्या हम भी डाकू बन जाएंगे? नहीं, हम उनके रास्ते पर नहीं चलेंगे. वे हमें मारना चाहते हैं तो हम मर जाएंगे.हमारे बीच इस तरह मरने वाले बहादुर लोग मौजूद हैं, यह देखकर अच्छा लगता है. उनकी बहादुरी से उनका और देश का भला होगा. वे मरते-मरते भी मारने वालों की शिकायत नहीं करेंगे. न उन्हें सजा दिलवाने की बातमैं तो कहता हूं कि ईश्वर के चालीस करोड़ नाम हैं. इसलिए क्या वजह है कि मैं केवल राम ही कहूं या रहीम ही कहूं?

सोचेंगे. मारने वाले सजा में से छूटने वाले नहीं हैं. ईश्वर उन्हें सजा देगा, हम सजा देने वाले कौन होते हैं? हम ईश्वर से भी नहीं कहेंगे कि हे भगवान, उन्हें सजा दे, क्योंकि ईश्वर तो दयावान है. हम तो उससे अपने लिए और दुश्मन के लिए भी रहम ही मांगेंगे और अंत तक सबका, मारने वालों का भी भला चाहने की कोशिश करते हुए मरेंगे. इतने पर भी भगवान जो करेगा उसमें दया ही भरी होगी. लेकिन ऐसों में कोई वहां मर जाए तो क्या मैं यह कहूंगा. ‘हाय क्या हुआ ! ‘ मैं ऐसा नहीं कहूंगा. मैं तो कहूंगा, अच्छा ही किया जो उन्होंने इतनी बड़ी सेवा की. मुसलमानों की भी सेवा की है और ऐसा करके ईश्वर का काम किया है.लेकिन जो मरने को तैयार हो जाते हैं, बहादुर बनते हैं, उनसे मौत हट जाती है. हम उम्मीद करें कि उन्हें मरना नहीं पड़ेगा. वहां सुहरावर्दी साहब हैं, छोटे-मोटे अफसर हैं. जो डाके डालने वाले भी हैं उनको ईश्वर सुमति देगा और डाका डालने वाले भी चेत जाएंगे तथा दूसरों को मजबूर करने की बात छोड़ देंगे. मैं तो यहां तक उम्मीद करता हूं कि वहां के सब मुसलमान भाई इकट्ठे होकर अपने हिंदू भाइयों की रखवाली अपने जिम्मे ले लेंगे और जगह-जगह से मुसलमान भाइयों के मिलकर तार मेरे पास आएंगे कि ‘आप फिकर न करें, हमारे यहां खतरे की कोई बात नहीं है.’ और तब मैं नाचूंगा. एक भाई ने पूछा है कि ‘मैं क्यों कहता हूं कि मैं हिंदू हूं इसलिए मुसलमान हूं?” यह तो साफ बात है. यह मैंने गीता से सीखा है. गीता में बताया है:

यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति.

तस्याहं न प्रणश्यामि सच मे न प्रणश्यति..

यानी जो मुझे हर जगह देखता है, उसका मैं नाश नहीं करता और वह मेरा नाश नहीं करता. गोया कुरान में, गेंदावस्ता में, बाइबल में, सबमें राम है और ईसाई, पारसी, सिख, मुसलमान जिस गॉड को, जिस हुरमस को और जिस खुदा को भजते हैं वह ईश्वर ही है और मैं इस धर्म का मानने वाला सच्चा हिंदू हूं, इसीलिए मैं मुसलमान हूं और ईसाई भी हूं. यह सिर्फ दिमागकी या कहने की बात नहीं है. यह हकीकत है. ईशोपनिषद् में भी ऐसा ही लिखा है कि ‘मैं सब चीज में हूं और सारा मुझमें ही है.’ और फिर लिखा है कि ‘वह दौड़ती भी है, वह स्थिर भी है.’ ईश्वर के बारे में इस प्रकार कई तरह की बातें गीता-उपनिषद् में कही गई हैं.

दूसरे पत्र में कहा है कि ‘अगर आप अपने को खिदमतगार कहते हैं और रहीम तो दो में से एक को क्यों चुन लेते? इस बात का खुलासा दीजिए.’ मैं खिदमतगार हूं, इसलिए यह खुलासा देता हूं. विष्णु के सहस्त्र नाम हैं. पर ईश्वर के केवल हजार ही नाम नहीं हैं, एक लाख भी हैं. मैं तो कहता हूं कि ईश्वर के चालीस करोड़ नाम हैं. इसलिए क्या वजह है कि मैं केवल राम ही कहूं या रहीम ही कहूं? और फिर किसी ने पूछा है, क्या मैं मुसलमानों की खुशामद के लिए ऐसा कहता हूं ?तो मेरा उत्तर है- नहीं ! मैंने कोई सोच-समझकर प्रार्थना नहीं बनाई है. अब्बास तैयबजी की लड़की रेहाना, जो पक्की मुसलमान भी है और हिंदू भी है, उसने मुझसे कहा ‘ओज अबिल्ला’ सिखा दूं? मैंने कहा, ठीक है, सिखा दे; चाहे तो मुझे मुसलमान भी बना दे. तो वह बोली, नहीं, आप मेरे पिता हैं, मैं आपकी लड़की हूं. आप अच्छे हिंदू हैं, आपको मुसलमान बनाने की कोई जरूरत नहीं. पर उसने मुझे यह ‘ओज अबिल्ला’ सिखा दिया और वह तब से चल रहा है. उसी तरह मेरे उपवास के बाद डॉ. गिल्डर ने एक पारसी मंत्र सिखा दिया. वह भी चल रहा है. मैं तो राम नाम का भूखा हूं. उसे हजार तरीके से कहूंगा और कोई मजबूर करने आएंगे कि फलां नाम लो, फलां मत लो तो एक भी नाम न लूंगा.

(इसके बाद गांधीजी ने कुछ लिखित प्रश्नों के उत्तर दिए.)

प्रश्नः आपने कहा, जिनमें मरने की ताकत नहीं है और मरना नहीं चाहते वे हिजरत करें तो वे कहां जाएं ?

वे मुट्ठी भर आदमी इतने लंबे-चौड़े भारत देश में कहीं भी समा सकते हैं. अव्वल तो पंजाब में ही वे अपने लिए जगह कर सकते हैं पर यदि नहीं कर सकते तो इतना बड़ा देश पड़ा है, वे जगह ढूंढ़ लें. मुझे बताने की आवश्यकता  नहीं है. इतना ध्यान रखें कि किसी से भिक्षा न मांगें, हाथ न फैलावें, बल्कि अपने-अपने बूते पर सब कुछ करें ।

अहिंसा हिंदू-धर्म का असली सार है. आपकी गीता ने अहिंसा सिखाई. मैं तो कहता हूं कि मुसलमान धर्म का सार भी अहिंसा है और ईसाई धर्म भी अहिंसा सिखाता है

( अंग्रेजी में लिखकर भेजे कुछ पत्रों पर व्यंग्य करते हुए गांधीजी ने यह भी कहा कि मैं जो अंग्रेजी ठीक-ठीक नहीं जानता और जिसकी ‘ऊजड़ गांव में अरंड पेड़’ जैसी हालत है उसे ही इसमें गलती मिलती है तो अंग्रेजीदां कितनी गलती बता देंगे ! अंग्रेजी व टाइपराइटर की क्या जरूरत थी ? )

प्रश्नः अपनी प्रार्थना में पुलिस बुलाते हुए आपको शरम नहीं आती?

शरम तो बहुत आती है और जब- जब पुलिस ने प्रार्थना में अमन करने की कोशिश की है तब-तब मैंने प्रार्थना रोकी है. फिर मैंने सरदार पटेल से याचना तो नहीं की कि आप मेरी रक्षा के लिए पुलिस भेज दें. इस पर भी पुलिस आती है तो मुमकिन है वह भी राम नाम व प्रार्थना से दो-एक भली बातें सीख जाएगी. उसका द्वेष क्यों ?

प्रश्नः हिंदू-धर्म में आप अहिंसा कहां से ले आए? अहिंसा से तो आप हिंदुओं को बुजदिल बना रहे हैं ?

मेरी वजह से कोई बुजदिल हुआ है, ऐसा मेरे ख्वाब में भी नहीं है. वह छोटी लड़की आभा, जो पहले कुछ डरती थी वह भी मेरे पास रहकर बहादुर बन गई है. मैंने उसे कह दिया, तेरा पति तेरे साथ नहीं जाएगा. वह अब अकेली ही खतरे की सब जगह पर चली जाती है. तो क्या वह बुजदिल है ? वह निहत्थी जाती है. यह भी नहीं कहती कि मुझे खंजर दिलवाओ तब जाऊंगी. उस बेचारी के पास तो सब्जी काटने की छुरी भी मुश्किल से रहती है. मैंने यह कभी नहीं कहा कि आप लोग खतरे की सीटी सुनते ही सब भाग निकलें. हमें मरना है, और मारकर नहीं मरना है. अहिंसा हिंदू-धर्म का असली सार है. आपकी गीता ने अहिंसा सिखाई. मैं तो कहता हूं कि मुसलमान धर्म का सार भी अहिंसा है और ईसाई धर्म भी अहिंसा सिखाता है.

 

 

 

 

 

 

 

 

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