स्वदेशी, स्वावलंबन और राजव्यवस्था में गाँधी का चिंतन और व्यक्तित्व : श्री रामबहादुर राय

विभाजन और गाँधी जी —

मुझे ऐसा लगता है कि महात्मा गांधी जिन परिस्थितियों में यहाँ आए वह बहुत भीषण थीं, दुःखदायी थीं और बापू कई मोर्चे पर काम कर रहे थे. विभाजन ने ऐसी त्रासदी पैदा कर दी थी जो राजनीतिक भी थी, सामाजिक भी थी, आर्थिक भी थी. उस समय उनका यहाँ आना और जो लोग पाकिस्तान से उठकर के घरबार छोड़कर के शरणार्थी के रूप में आये थे. तो जो अभी कुछ उस पर साहित्य आया है, उसको देखने से ऐसा लगता है कि वह बहुत मर्मान्तक समय था जिसमे लोग उजड़ कर के आ रहे हैं. उनको जीवन की सुरक्षा नहीं है. ऐसे समय में बापू का संदेश उनके लिए बहुत बड़ा आश्वासन था. इस बात का आश्वासन था कि ठीक है, अभी आप शरणार्थी हैं. लेकिन जल्दी ही आप बसाए जाएँगे. और मै ऐसा समझता हू कि उन्हीं के संदेश का यह परिणाम रहा होगा कि उन शरणर्थियों को जगह-जगह बसाया गया. चाहे फरीदाबाद में बसाया गया हो और दूसरी जगह बसाया गया हो. तो 12 नवम्बर एक बहुत यादगार दिन है और बापू के तमाम प्रयासों में यह बात गुम सी हो गयी है. बापू स्टूडियो उसे याद दिलाता है .

मन की बात
मन की बात जब शुरू हुई थी तो मेरे मन में यह प्रश्न था कि आज के जमाने में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने क्यों रेडियो को चुना और ये मन की बात कब तक चलेगी? लेकिन जब सौ एपिसोड उनका पूरा हुआ और मैंने उसको सुना. पहले भी सुना था तो यह राय सामने आया कि दरअसल वे लोगों से जुड़ना चाहते थे. अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ये एक मैं कहूँगा कि यह एक विलक्षण स्वरुप है जो दुसरे प्रधानमंत्रियो से उन्हें भिन्न और श्रेष्ठ बनाता है . दुसरे लोग भी जनता से जुड़ रहने की कोशिश करते थे, जुड़ते भी थे. लेकिन कोई प्रधानमंत्री एक समाज कि शक्ति को जगाएगा प्रेरित करेगा और अच्छे कामों के लिए उनका नाम लेगा और उनको प्रोत्साहित करेगा, ये काम पहले नहीं हुआ है. मन की बात कि एक और विशेषता है जो मुझे लगा कि यह एक सांस्कृतिक जागरण का स्वरुप है. सामाजिक जागरण का स्वरुप है और इससे एक नई चेतना पैदा होती है कि हाँ, हम अपने बलबूते पर भी कुछ काम कर सकते है. हर काम सरकार के जिम्मे नहीं छोड़ा जा सकता है. जिसका कुछ असर भी हुआ है . मुझे याद है कि कुछ बड़े नेता हुए हैं जो अपने भाषणों में अपने सहयोगियों का नाम ले लेते थे तब उस दल में या उस संगठन में उन लोगों की चर्चा होती थी. आज प्रधानमंत्री किसी व्यक्ति का जो अच्छा काम कर रहा है, उसका नाम लेते हैं तो वह रातों-रात विख्यात हो जाता है. यह अपने आप में किसी बड़े पुरस्कार से, बड़े सम्मान से ज्यादा बड़ा सम्मान है कि प्रधानमंत्री किसी के काम की सराहना करते है. मन की बात कि ये भी उपलब्धि है और अब समय पड़ाव पर पहुँच कर के मन की बात तो एक जनांदोलन बन गया है .
गाँधी जी की पत्रकारिता—
गांधी जी जब लंदन में पढ़ने के लिए गए अखबार से उनका परिचय लंदन में ही हुआ. और वही पर उन्होंने सिखा कि कैसे अपनी बात लोगों तक पहुंचाई जाये. जहाँ तक मुझे याद है, जो मैंने पढ़ा है, गांधी जी ने वही पर शाकाहार आंदोलन से जुड़ने के पहले भी संपादक के नाम चिठ्ठियों से उन्होंने सिलसिला शुरू किया. संपादक के नाम वो पत्र लिखते थे, अपनी बात कहते थे और धीरे – धीरे उनको ये समझ में आया कि अगर मुझे अपनी बात लोगों तक पहुंचानी है तो अखबार माध्यम है. और फिर उसको उन्होंने अपने जीवन में अपनाया भी. जितना अधिक संपादक के नाम पत्र वाले कालम का उपयोग गांधी जी ने किया है, मुझे नहीं लगता है कि कोई दूसरा राजनीतिक पुरुष या दूसरा कोई स्वाधीनता सेनानी ऐसा  किया होगा. फिर उन्होंने अपना अखबार भी निकलना शुरू किया. दक्षिण अफ्रीका में, यहाँ भी आने पर, उनका प्रभाव बहुत अधिक था. और प्रभाव उनका अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर था. गांधीजी ने अपने हरिजन में क्या लिखा है? यंग इंडिया में क्या लिखा? और एक बात और मैने पाया कि जिस आंदोलन को वो अपने हाथ में लेते थे, उसके लिए अपना मीडिया भी बना लिया. यानि एक अखबार उन्होंने निकाल लिया. जब छुआछूत के विरोध में आंदोलन उन्होंने छेड़ा या अभियान चलाया. और वो एक सामाजिक आंदोलन था तो उन्होंने हरिजन निकाला. उससे पहले अपनी बात कहने के लिए, कांग्रेस के लोगों को समझाने के लिए, सुधारने के लिए , राजनीतिक चेतना पैदा करने के लिए उन्होंने यंग इंडिया निकाला. तो मैं ये समझता हूं कि गांधी जी के व्यक्तित्व का एक मुख्य हिस्सा उनका पत्रकार होना भी है. और इस रूप में पत्रकार होना है कि उन्होंने, कैसे पत्रकारिता की जाती है. और आज अगर कोई पत्रकारिता सिखाना चाहे तो गांधी जी से सीख सकता है.  जब १९०८ में माधव स्प्रे के खिलाफ देशद्रोह का मुक़दमा अंग्रेजों ने कायम किया. माधवराव  स्प्रे ने बहुत छोटी जगह से पत्रकारिता शुरू की थी. परन्तु सच्चाई के साथ खड़े थे. और उनपर जब देशद्रोह का मुक़दमा चला, तो  उनको सजा भी हुई.उसी तरह से गांधी जी पर भी मुक़दमा चला और दोनों ने गांधीजी भी माफ़ी मांगने के बजाय जेल जाना पसंद किया और इसलिए अदालत में उनका दिया गया बयान जो  कि एक एतिहासिक दस्तावेज है और उसमे वे स्वीकार करते हैं कि अगर आप किसी अपराध को गुनाह मानते हैं इसको अपराध मानते हैं और आगर यह अपराध मैंने किया है . मुझे ऐसा लगता है कि जो लोग सच के साथ खड़ा होना चाहते हैं और पत्रकारिता तो यही है कि सच के साथ खड़ा होना है तो गांधी जी से सिख सकते हैं कि कानून अगर आपने तोड़ा है और वह अपराध है तो कोई दूसरा रास्ता खोजने के बजाए सजा को भुगतें.
गाँधी जी का व्यक्तित्त्व —
गांधी जी का आवाज कैसी थी गांधी जी का जो शारीरिक शौष्ठव जो कहते हैं व्यक्तित्व जो बाहरी है वो कैसा है वह ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं था बल्कि गांधीजी जैसा जीवन जीते थे वह उनके जीवन में वक्तित्व में केंद्रीय तत्व था ऐसा मुझे लगता है इसको ठीक से समझने के लिए इस पर मैंने गौर किया है और मुझको याद भी है कि कृपलानी जी ने इसका बहुत ढंग से वर्णन किया है जब १९१५ के फरवरी में गांधीजी शांति निकेतन आने वाले थे तो कृपलानी जी को काका कालेकर ने पत्र लिखा तो कृपलानी जी गए और फिर गांधी जी से मिले और कृपलानी जी ने लिखा है कि गांधी जी अपनी पैनी नजर से मुझे तौल रहे थे और देख रहे थे कि यह व्यक्ति किस तरह का है और यही काम कृपलानी जी भी गांधी जी को देख कर कर रहे थे क्योंकि दोनों के दो तरह के रास्ते थे तब और उसके बाद कृपलानी जी गांधी जी के साथ जुड़े और जुड़े ही नहीं और कहा कि गांधी जी के साथ मेरा राजनीतिक रिश्ता है . गांधी जी के विचारों को पसंद करके जुड़े जबकि वो क्रांतिकारी थे लेकिन गांधी जी के कारण अहिंसक मार्ग को अपनाए . इसलिए अपनाए कि गांधी जी के भारत आने के बाद दुसरे नेताओं से अलग केवल अलग ही नहीं बल्कि बेहतर या उत्तम साबित किया और इसका एक उदहारण चंपारण है .
चंपारण में गांधी जी को नजदीक से देखने के बाद गांधी जी के बारे में लोगों की दृष्टि बनी की यह व्यक्ति है जो भारत को आजादी दिला सकता है . इसलिए कृपलानी जी जैसे लोगों ने १९२० तक कांग्रेस में गांधी जी के शरण में अपने आपको उपस्थित कर दिया . १९२० वह साल है जिसमे कांग्रेस के दो अधिवेशन होते हैं …एक कलकत्ता का होता है दूसरा नागपुर का अधिवेशन . नागपुर में कांग्रेस का जो अधिवेशन हुआ वहां से गांधीजी कांग्रेस का नेतृत्व संभालते हैं . कांग्रेस का विधान बदलते हैं और इस तरह से कांग्रेस जनता से जुड़ती है और फिर गांधी जी उसका नेतृत्व करते हैं . तो मैं  ये कहूँगा कि गांधी जी के व्यक्तित्व में एक चुम्बक था . गांधी जी अकेले ऐसे महापुरुष हुए हैं जिन्हें महात्मा तो कहा ही गया वास्तव में वे महात्मा थे .ऐसे महात्मा थे जो अपना शिष्य परंपरा नहीं चलाना चाहते थे .ऐसे महात्मा थे जो विपरीत स्वभाव वाले लोगों को भी अपने साथ जोड़ने में समर्थ थे इसी लिए जहां जवाहरलाल नेहरू उनके साथ जुड़े हुए हैं वही जवाहरलाल नेहरू के ठीक विपरीत सवभाव वाले व्यक्ति कुमारप्पा जैसे व्यक्ति भी जुड़े हुए हैं . एक अध्यात्मिक व्यक्ति काका कालेकर जैसे व्यक्ति भी जुड़े हुए हैं .जब गांधीजी उपवास पर बैठते है तो जो व्यक्ति सबसे पहले चिंतित होते हैं उनका नाम रविन्द्र नाथ ठाकुर है .या जब गांधी जी पूना में जेल पर अनशन पर बैठते हैं तो मदन मोहन मालवीय जो अपने विदेश यात्रा से जो साथ विदेश राउंड टेबल कांफ्रेंस से साथ ही गए थे .वह बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय को जैसा स्वरुप देना चाहते थे उसको समझाने के लिए यूरोप के विश्वविद्यालयों को देखने गए थे उसको समझने के लिए उनको समय लगा . इसलिए वह बहुत बाद में भारत आए जिस दिन वह इलाहाबाद आए उसी दिन उनको पता चला कि गांधी जी आमरण अनशन पर बैठ गए हैं उन्होंने तत्क्षण निर्णय किया कि मैं मुंबई चलूँगा और वह गए और मुंबई में बिरला जी के यहाँ गए और बिरला जी के यहाँ सभी नेताओं को बुलवाया वहां उन नेताओं में भीमराव अंबेडकर भी थे , डी राजा थे और बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ और अंततः पूना पैक्ट हुआ .तो मैं   ये कहूँगा कि गांधी जी ही एक मात्र स्वाधीनता संग्राम के नेता हुए जिनको केवल एक तरह के लोगों ने अपना नेता नहीं माना बल्कि सारे देश के लोगों ने नेता माना
 इसका एक और उदहारण मैं  देना चाहता हूं कि जब मारकाट मची थी और गांधी जी बिरला हॉउस में थे तो इस इस हिंसा के खिलाफ आमरण अनसन पर बैठ गए तो दिल्ली में हिन्दू नेता मुसलिम नेता और दुसरे संगठनों के नेता ये सब इकठ्ठा हुए और 100 लोगों ने गांधी जी को लिख कर दिया कि हम सब मिलजुलकर रहेंगे और हिंसा नहीं होगी और शांति स्थापित होगी और 18 जनवरी को जहा तक मुझे याद है कि 18 जनवरी १९४८ को उन लोगो के आग्रह पर गांधी जी ने अपना उपवास तोड़ा तो गांधी जी एक व्यक्ति के तौर पर और एक नेता के तौर पर एक ऐसे व्यक्ति हैं जिनकी जनता में जो लोकप्रियता है वो किसी की थी ही नहीं .जब वो छुआछूत के खिलाफ  अश्पृश्यता खिलाफ पुरे देश में यात्रा करने लगे तो उस दौरान जो कांग्रेस में उनसे असहमत थे उन लोगों ने गांधी जी के रेल यात्रा को देखा और देखा कि रात को 2 बजे या ढाई बजे भी ट्रेन पहुँच रही है तो सैकड़ों लोग केवल गांधीजी को देखने के लिए दर्शन करने के लिए खड़े हैं . तो उन्होंने विपरीत स्वभाव के बहुत सारे कर्मठ लोगों को अपने साथ जोड़ा तथा देश की जनता के साथ सामान्य लोगों ने माना कि ये आदमी जो है मेरा उद्धार कर सकता है ये थी गांधी जी की विशेषता और वह मुझे लगता है कि उसका ये कारन बड़ा है कि गांधी जी सर्व साधारण लोगों की तरह बहुत साधारण रहते थे जीते थे और लोगों ने गांधी जी में अपने आपको पाया.
राजनीतिक गाँधी —
मैं ये समझता हूँ कि गांधी जी को 100 -150 साल बाद भी बल्कि २००० से २५०० सौ साल बाद भी गांधी जी याद किए जाएँगे गांधी जी को जानना चाहेंगे गांधी जी के काम को जानना चाहेंगे और गांधी जी के योगदान को जानना चाहेंगे कि गांधी जी किस बात के लिए जीते थे यह लोग जानना चाहेंगे और इस पर उत्सुकता बढती जाएगी आज जीतनी उत्सुकता है उतनी बढती जाएगी .मैंने गांधी जी को पढ़ने समझने के बाद और गांधी जी से जुड़े हुए लोगों की संगति में रहने के बाद मैंने एक दिन यह अनुभव किया कि राजनीतिक गांधी को प्रकाश में लाना चाहिए मैं  ये दावा नहीं कर सकता हूँ कि मैंने ये काम कर दिया है क्योकि ये काम बड़ा है लेकिन मैं  ये काम कर सकता हु कि विचार के तौर पर देश समाज तथा  नई पीढ़ी   जाने इसकी जरुरत है राजनीतिक गांधी को क्यों जाने ये प्रश्न है या वास्तव में गांधी जी राजनीतिक व्यक्ति थे या नहीं दूसरा प्रश्न है जब मैं  गांधी जी को पढ़ता हूँ और देखता हूँ कि गांधी जी ने कांग्रेस का नेतृत्व किया .
तो इस दौरान उन्होंने भारत की राजव्यवस्था के बारे में भारत की राजनीतिक प्रणाली के बारे में भी कुछ कहा है , बोला है सोचा है और उस तरह लोगों को काम करने के लिए प्रेरित किया है .जैसे की जे . सी .कुमारप्पा की एक छोटी सी किताब है ग्राम आंदोलन क्यों ? उस किताब ग्राम आंदोलन की प्रस्तावना है वह गाँधी जी ने लिखा है .गाँधी जी के साहित्य में और गाँधी जी के लेखन में और साहित्य में ये बार बार आता है की गावों को अंग्रेजों  ने बर्बाद कर दिया है और ये अब सत्य भी साबित हो गया है जब लुई फिशर ने गाँधी जी के साथ एक सप्ताह बिताया और जिसकी व्यवस्था जवाहरलाल नेहरू ने की थी , और लुई फिशर की वो किताब भी है गाँधी के साथ एक सप्ताह .उसमे लुई फिशर एक सवाल पूछते हैं कि अगर आजादी आ जाती है तो आप पहला काम कौन सा करेंगे.
और गाँधी जी कहते हैं कि भारत सरकार की जो सत्ता है वह महानगरों तक सिमित है ,राजधानी और महानगरों तक सिमित है मैं उसे साढ़े सात लाख गावों में बांट दूंगा . ये जो सूत्र है वो राजनीतिक गांधी ही बोल सकते हैं .और अगर इस सूत्र का भाष्य करें और समझने का प्रयास करे तो गांधी जी कहना चाहते हैं कि आज जो राज्यव्यवस्था है वह ग्राम केन्द्रित होना चाहिए और जब भारत का संविधान बन रहा था अभी संविधान सभा बैठी भी नहीं थी उस समय भी श्रीमान नारायण ने गांधी जी से पूछ पाछ कर किस तरह की राज्यव्यवस्था बननी चाहिए उसका एक खाका अपनी पुस्तक में जो सामानांतर संविधान बनाकर के दिया उसमे थोडा सा है . और आज जब प्रधान मंत्री मोदी पंचायत दिवस पर बोलते हैं तो वो गांधी जी से प्रेरित होकर बोलते हैं . और चाहते हैं कि पंचायत स्वावलंबी हो . मैं आपको एक और बात बताना चाहता हूँ कि हिंद स्वराज का जब सौ साल हुआ था तो दिल्ली विश्वविद्यालय में एक गोष्ठी हुआ था , मैं उस गोष्ठी में प्रभाष जी के साथ गया था और उसमें एंथोनी परेल जिसने हिंद स्वराज पर काम किया है मैं ये मनता हूँ कि एंथोनी परेल एक मात्र ऐसा व्यक्ति है जिसने हिंद स्वराज को नए तरह से परिभाषित किया है और उस गोष्ठी में एंथोनी परेल ने कहा है कि गाँधी जी के हिंद स्वराज में भारत की जो प्राचीन राजनीति थी राज्यव्यवस्था थी जो प्राचीन राजनीतिक चिंतन थी वो हिंद स्वराज में है और वो कहा कि धर्म ,अर्थ ,काम और मोक्ष ये चारो भारत के राजनीतिक चिंतन का आधार है और इसको आप हिंद स्वराज में खोजिए और पढ़िए इसको समझने की कोशिस करिए . गांधी जी के राजनीतिक चिंतन को पढ़ाने के लिए जरुरी है कि हम राजनीतिक गांधी को समझें जाने और समझने का प्रयास करें .मैं ये समझता हूँ कि उनका राजनीतिक चिंतन स्वदेशी , स्वावलंबन और राज्यव्यवस्था की पुनर्रचना है ये तीन शब्दों में समाया हुआ है .
[आकाशवाणी से साभार ]

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