गज्वाए-हिन्द खत्म हो ! हर नेक मुसलमान का काम !!

के .विक्रम रावउन इस्लामी प्रबुद्धजनों का साथ हर देशप्रेमी भारतीय को देना चाहिए जिन्होंने  (4 मार्च 2024) को एक जन-अभियान चलाया। इसमें अतिघातक और मूढ़तापूर्ण “गजवा ए हिंद” की अवधारणा की तीव्र भर्त्सना की गई है। उसके प्रवर्तकों के विरुद्ध कड़े कदम उठाने की मांग की गई। इस संघर्ष का आह्वान मंच से अमीर खुसरो फाउंडेशन (नई दिल्ली) ने किया। अमीर खुसरो हिंदी के प्रथम कवि माने जाते हैं। उर्दू-फारसी के भी। इस फाउंडेशन का लक्ष्य है सर्वधर्म समभाव और भारतीयता को दृढ़ बनाना।
विशिष्ट संदर्भ दिल्ली-समारोह का यही था कि चंद सिरफिरे मुसलमानों द्वारा प्रसारित “गजवा ए हिंद” वाले भारत-द्रोही तथा जहरीले प्रयास को निर्मूल किया जाए। इस समारोह में एक विस्तृत जानकारीपूर्ण पुस्तक “गजवा ए हिंद की असलियत” का विमोचन किया गया। हिंदी, उर्दू तथा अंग्रेजी में प्रकाशित इस पुस्तक में इस फरेबी विचार की खिल्ली उड़ाई गई है।
इस समारोह में लब्ध प्रतिष्ठित संपादक एमजे अकबर ने सावधान किया कि : “चंद मुसलमानों की हठधर्मिता और विवेकहीनता के लिए इस्लाम की आलोचना न करें।” पत्रकार अकबर ने आग्रह किया कि गजवा ए हिंद का ख्याल फर्जी तथा जाली ही नहीं, शैतानीभरा भी है।” अकबर की स्पष्टवादिता जानीमानी है। वे सांसद रहे। मोदी सरकार में विदेश मंत्री थे। मशहूर संपादक रहे। आपातकाल (जब मैं और कई श्रमजीवी पत्रकार जेल में गए थे) अकबर और पत्नी मल्लिका जोसेफ ने पत्रकारों की रक्षा के लिए इंदिरा गांधी सरकार का सामना किया था। वे “टाइम्स आफ इंडिया” में प्रशिक्षणार्थी पत्रकार के रूप में बाद में भर्ती हुए थे। मैं प्रथम बैच का प्रशिक्षु (1962) रहा। “गजवा ए हिंद” की देशद्रोही साजिश का अकबर ने खुलकर और जमकर उपहास किया। हमला किया। मसलन आज कोई पागल ही गजवा-ए-हिंद सरीखी वाहियात बात पर यकीन कर सकता है, लेकिन कट्टर मानसिकता कुछ भी करा सकती है। पीएफआइ, आइएस, अलकायदा जैसे आतंकी संगठन इसी सनक से ग्रस्त हैं कि सारी दुनिया में इस्लामी राज कायम करने की जरूरत है। इन देशद्रोहियों की सच्चाई ये है कि वे समझते हैं कि पूरे भारत पर मुस्लिमों के कब्जे का सपना अधूरा ही रहा है। इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा ही बतायी जाती है। 
   
“गज़वा-ए-हिन्द” की उत्पत्ति कहाँ से हुई ? इस्लाम की शुरुआत में ही इसका जिक्र मिलता है। ‘हदीस’ में इसके बारे में बताया गया है। हालाँकि, कई मुस्लिम ‘विद्वानों’ और संगठनों का ये भी कहना है कि ‘गज़वा-ए-हिन्द’ का गलत मतलब निकाला गया है। भारतीय इतिहास में “गजवा ए हिंद” का शीर्ष प्रेरक आलमगीर औरंगजेब को माना जाता है। वह संपूर्ण भारत को इस्लामी बनाना चाहता था। वह ताउम्र दक्षिण भारत में युद्धरत था। पर विफल रहा। इतिहास गवाह है जब उजबेकी डाकू जहीरूद्दीन बाबर ने दिल्ली का तख्त कब्जियाया तो उसने आश्चर्य व्यक्त किया कि “कुतुबुद्दीन से लोदी तक इतने इस्लामी बादशाह रहे फिर भी भारत में हिंदू बहुसंख्या में क्यों रहे ?”
आज पाकिस्तान भी ‘गज़वा-ए-हिन्द’ वाली सोच से ही चलता है। वहाँ का इस्लामी विशेषज्ञ सैयद जैद जमान हामिद कई बार इसका जिक्र कर चुका है। वह मानता है कि भारत ‘गजवा-ए-हिन्द’ से डरता है।
इन लोगों का साथ देने के लिए ‘The Print’ जैसे मीडिया संस्थान सक्रिय हैं। उसने एक लंबे-चौड़े लेख में पूरे भारत के इस्लामी शासन के अंतर्गत आने के इतिहास का जिक्र करते हुए कहता है कि हिन्दुओं को ‘गजवा-ए-हिन्द’ से डरने की जरूरत नहीं है। उसने लिख दिया कि ‘हिन्द’ का आशय हदीथ में भारत है ही नहीं। फिर सिंध के साथ इसका नाम क्यों लिया जाता ? कश्मीर में तो अलकायदा की यूनिट का नाम ही है ‘अंसार गजवातुल हिन्द’। हिन्दू भले क्यों न इससे लड़ने के लिए तैयार रहे? क्यों न चर्चा करे ?
 फाउंडेशन का माध्यम बड़ा उपयुक्त हैं। कवि अमीर खुसरो जिनकी माता हिन्दू थी और पिता तुर्की थे। वे न केवल भारत की महानता के गीत गाते हैं, बल्कि इस मिट्टी का हिस्सा बनना चाहते हैं। मानों यह मिट्टी ही सब कुछ है जिससे उनका रिश्ता और प्यार है। हरियाणा के कवि अल्ताफ हुसैन हाली ने कहा कि जन्नत मिलने पर मैं तुम्हारी एक मुट्ठी धूल ही लूंगा।
   
 गजवा-ए-हिन्द या गज़वा-ए-हिंद इस्लाम के कुछ व्याख्यान में की गई एक भविष्यवाणी है जो मुसलमानों और काफिरों के बीच भारत में एक युद्ध का पूर्वकथन करती है। इसके परिणामस्वरूप मुसलमानों की जीत होती है और एकेश्वरवाद तथा शरिया कानून लागू होगा। “गजवा-ए-हिंद” का मतलब भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वाले काफिरों को जीतने से है। यहां रहने वाले बाशिदों के साथ युद्ध से है। गजवा-ए-हिंद में ‘गजवा’ का मतलब इस्लाम को फैलाने के लिए लड़ी जाने वाली जंग से है। आसान भाषा में समझें तो गजवा-ए-हिंद का मतलब जंग में भारत को जीतकर इसका इस्लामीकरण करने से है। ऐसे भ्रामक विचारों का विरोध खुसरो के लोग कर रहे हैं। उनका साथ दीजिये।

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