जीवन से बढ़कर नहीं हैं परीक्षाएँ

राजस्थान के  लालसोट कस्बे में पढ़ाई के दबाव में दसवीं कक्षा की एक छात्रा ने आत्महत्या कर ली है।  फांसी लगाकर जान देने वाली छात्रा के पास मिला सुसाइड नोट  बताता है कि पढ़ाई के बढ़ते मानसिक दबाव और अंकों की दौड़ में पिछड़ने का डर  उसके जीवन पर भारी पड़ गया |  सुसाइड नोट में लिखा है कि वह 95 प्रतिशत से ज्यादा नंबर नहीं ला सकती और बेहद परेशान हो गई है। गौरतलब है कि राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की परीक्षा 16 मार्च से शुरू होने वाली हैं | आगामी परीक्षाओं में ज्यादा अंक लाने का दबाव ना झेल पाने के कारण ही उसने यह अतिवादी कदम उठा लिया | परिजनों के मुताबिक भी वह पिछले कुछ समय से पढ़ाई को लेकर दबाव महसूस कर रही थी।  साथी छात्राओं के परीक्षा में ज्यादा अंक लाने को लेकर आपस में बातचीत करने और  स्कूल के शिक्षक द्वारा 90 से 95 प्रतिशत अंक लाने के लिए कहने की बात  को लेकर छात्रा तनाव  में थी |

दरअसल, परीक्षा के दिनों में  हमारा पूरा परिवेश ही तनावपूर्ण बन जाता है |  बच्चों पर पढ़ाई के साथ-साथ अंकों की दौड़ में अव्वल आने का दबाव भी होता है |  अकादमिक प्रदर्शन की  दौड़ में बहुत से  बच्चों का मन इस दबाव को नहीं झेल पाता |  तकलीफदेह  यह भी है कि अंकों की  इस रेस  में हर बच्चे से समान गति से दौड़ने की आशा रखी जाती है |  हर हाल में अंक तालिका में अव्वल रहने की अपेक्षाएँ बच्चों को तनाव और अवसाद का  शिकार बना देती हैं |  प्रतिस्पर्धा के इस दौर में अभिभावक भी अपने बच्चे के पीछे रह जाने के का डर झेलते हैं |  नतीजतन बड़ों की उम्मीदों का अनकहा सा दबाव बच्चों को अवसाद  ही नहीं भय के घेरे में भी ला देता है | यही वजह है कि देश एक कोने कोने से ऐसी अप्रिय घटनाओं के समाचार आने लगते हैं | परिणाम के डर से  बच्चों का टूटता-बिखरता मन  ख़ुदकुशी जैसा कदम उठाने का कारण बन जाता है | लालसोट की इस घटना में भी छात्रा ने  सुसाइड नोट में अभिभावकों के माफी माँगते हुए लिखा है कि  आई एम सॉरी पापा- मम्मी, मेरे से नहीं हो पाएगा। मैं नहीं बना पाती शायद 95 प्लस प्रतिशत। मैं परेशान हो गई हूं इस 10वीं क्लास से… मेरे से अब और नहीं सहा जाता |

चिंतनीय है कि आखिर क्यों और कैसे बच्चों के लिए परीक्षाएँ और परिणाम के अंकों का प्रतिशत  यों  फिक्र की वजह  बन गए ? क्यों  परिवार से लेकर परिवेश तक बहुत सी बातें और  बर्ताव बच्चों के लिए  असहनीय मानसिक दबाव को बढ़ाने वाली बन जाती हैं | विशेषकर किशोरवय बच्चों के लिए तो पढ़ाई का तनाव, परीक्षा का दबाव, सहपाठियों से प्रतिस्पर्धा और अपनों की अपेक्षाएँ बहुत ज्यादा मानसिक दबाव पैदा करती हैं | आंकड़े  बताते हैं कि 15-19 वर्ष के लोगों में आत्महत्या मृत्यु का चौथा प्रमुख कारण है |  समझना मुश्किल नहीं कि इस आयु वर्ग के बच्चों में जीवन से हारने का अहम कारण अंकों दौड़ ही है |  एसोचैम के सर्वे के अनुसार  पढ़ाई के कारण तनाव और अवसाद का शिकार होने वाले 72 फीसदी विद्यार्थी स्वयं इस तनाव से उबरने के तरीकों से अनजान होते हैं। पारिवारिक माहौल और अपनों का साथ ही इसमें उनकी मदद कर पाता है।  ऐसे में भावनात्मक सम्बल और सहज परिवेश दोनों जरूरी हैं | विशेषकर माता-पिता का तो  परीक्षाओं के तनाव और परिणाम की चिंता में घिरते बच्चों  के उत्साह और आत्मविश्वास को बनाए रखने के लिए कई मोर्चों पर सजग रहना जरूरी है | शिक्षक हों या अभिभावक, इस समय  बच्चों  को अपेक्षाओं की बात करने के बजाय  सुझावों और समझाइशों की जरूरत होती है।  माता-पिता के  साथ का आत्मीय सहारा और शिक्षकों का सम्बलदायी मार्गदर्शन हर मामले में बच्चों का मददगार बन सकता है |

गौरतलब है कि हालिया बरसों में  बच्चों, अभिभावकों एवं  शिक्षकों के साथ आयोजित ‘परीक्षा पे चर्चा’  कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी भी  बच्चों के बिखरते मन को थामने की बात  कहते रहे हैं | बीते दिनों ‘परीक्षा पे चर्चा-2023’  के छठे संस्करण में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा  बच्चों के समग्र विकास को लेकर संवाद  किया गया था |   बच्चों के मन जीवन से जुड़े विचार विमर्श को लिए इस कार्यक्रम में  हर वर्ष देश-विदेश के छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों की भागीदारी  होती है | इस वर्ष बच्चों को डिजिटल फास्टिंग की सलाह देते हुए किसी भी तरह के दबाव में ना आने की बात कही थी |  साल 2022 में प्रधानमन्त्री मोदी ने भी अभिभावकों और शिक्षकों की संबोधित करते हुए कहा था कि ‘आप अपने  अधूरे सपनों को पूरा करने का माध्यम बच्चों को ना बनाएँ | हर बच्चे में उसकी  कुछ विशेष स्ट्रेंथ होती है | आपकी कमी है कि आप उस स्ट्रेंथ को पहचान या समझ  नहीं पा रहे | ‘ समझना  जरूरी है कि  भविष्य बनाने और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने के लिए शिक्षा, कौशल और कला, सभी कुछ अहम हैं |  सही और सधे दृष्टिकोण से सोचा जाए तो आज कितने ही नए क्षेत्र,नई-नई संभावनाएं लिए हैं |  जरूरत है तो इन संभावनाओं को तलाशने और अंकों की दौड़ से निकलने  के लिए  जागरूकता और  खुले संवाद की |  ताकि नई पीढ़ी के मन को दूसरों से पीछे छूट जाने के भय के बजाय संबल और सही मार्गदर्शन  मिल सके | यही वजह है कि एनसीइआरटी द्वारा परिवार के दबाव, तनाव प्रबंधन,  स्वास्थ्य  और फिट कैसे रहें और करिअर के चुनाव  जैसे विभिन्न प्रश्नों को इस चर्चा के लिए चुना किया गया था | पीएम ने बच्चों से तनाव मुक्त और प्रफुल्लित रहकर अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश करने को  कहा था |  देखा जाए तो यह  इम्तिहानों को लेकर यही भाव सबसे जरूरी भी है |

दुखद है कि अंकों की दौड़ में बच्चों का जीवन ही पीछे छूट रहा है |  यही वजह है कि ‘परीक्षा पे चर्चा’  कार्यक्रम  में प्रधानमंत्री द्वारा भी मूल्यांकन के लिए एक तनाव मुक्त  व्यवस्था बनाने के साथ ही विद्यार्थियों, शिक्षकों और समाज को हर  विद्यार्थी की विशिष्टता को लेकर खुशी मनाने जैसी बातों पर संवाद किया गया था | बच्चों के समग्र विकास को संबोधित इस अभियान में  पढ़ाई के दबाव, अभिभावकों की अपेक्षाओं और शिक्षकों की भागीदारी से जुड़े विषयों पर होने वाली बातचीत कई मोर्चों पर समाज को जागरूक करने वाली है | जरूरी है कि ऐसी चर्चा हर घर में हो,  ताकि हर बच्चे को सम्बल भरा मार्गदर्शन मिल सके |  

 

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