सुकून है कश्मीर में ! विकास की गति तेज !!

 इस महाशिवरात्रि (शनिवार, 18 फरवरी 2023) पर श्रीनगर (कश्मीर) के गोपाद्रि पर्वत शृंखला के ज्येष्ठेश्वर (शंकराचार्य) मंदिर में श्रद्धावान उपासकों का अपार जनसमूह दिखा। भोलेनाथ के उत्सव पर दर्शकों की कतारें विराट थीं। स्वाभाविक है इन्हीं संकेतों से कि मोदी सरकार इस हिमालय घाटी से सेना को कम करने की योजना बना रही है। बड़ी सहजता से जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल श्री मनोज सिन्हा ने आज फोन पर इस संवाददाता से कहा कि कश्मीर का जमीनी नजारा बदल रहा है। राज्य अब प्रगति तथा विकास पथ पर अग्रसर है।
     अर्थात हर हिंदू, केवल शैव ही नहीं, आह्लादित है कि राजतरंगिनी के रचयिता कवि कल्हण का कश्मीर निखर रहा है। भले ही क्रमशः। मसलन गत वर्षांत तक 1.88 करोड़ पर्यटक इस हिमालयी वादी में घूमने आए थे। इनमें 91 लाख विदेशी सैलानी थे। उसके पूर्व (2018 में) केवल साढ़े आठ लाख पर्यटक ही आए थे। इस दफा श्री मनोज सिन्हा ने करीब एक सौ पर्यटन केंद्रों को भी विकसित कर आकर्षक बनाया। फारुख-महबूब हुकूमत में वे सब उपेक्षित थे। जवाहरलाल नेहरू द्वारा थोपी गई धारा 370 और 35-A (5 अगस्त 2019) निरस्त होने के बाद से संख्या बढ़ती ही जा रही है। शीतकालीन “खेलो इंडिया” राष्ट्रीय क्रीड़ायों (हसीन गुलमर्ग की वादियों में) ने अपार सफलता पायी। खेल निदेशिका गुल नजहत आरा ने इसकी तस्दीक भी की विविध भारती के कार्यक्रम में।
     अत्यंत सुविधावान इस बार यह रहा कि “घर में टिको” वाली योजना के कारण हर नगर में पर्यटक लोग मुस्लिम नागरिकों के आवास में ठहराये गये। सस्ता भाड़ा देकर रहें। खर्चे मे बचत भी हुई, मेजबान को अतिरिक्त लाभ भी। रोम (इटली) में “पेंशनेयर” आवास की पद्धति पर यह आधारित है। कोकरनाग, पहलगाम, सोनमर्ग आदि स्थलों में तो यह योजना बहुत कारगर रही। अब तावी नदी तट (रिवर फ्रंट) को रम्य बनाकर जम्मू भी पर्यटकों के आकर्षण का सबब बन रहा है।
  शंकराचार्य पर्वत के मंदिर का धर्मशास्त्रों में विशेष उल्लेख रहा। करीब चार हजार किलोमीटर पर स्थित कलड़ी (केरल) ग्राम से आदि शंकराचार्य पैदल यहां आए थे। मां आर्यान्बु तथा शिवगुरु के यह युवा पुत्र अद्वैत वेदांत के प्रचारार्थ कश्मीर पधारे थे। इसी पर्वत माला पर निवास किया था। मंदिर का निर्माण कराया था। यहीं उनका तपस्या स्थली भी है।
     श्री मनोज सिन्हा ने इस संवाददाता को अद्भुत शिवालय शिव खोड़ी के जीर्णोद्धार के बारे में भी बताया। सदियों पूर्व सियालकोट (वर्तमान में पाकिस्तान में) के राजा सालवाहन ने शिव खोड़ी में शिवलिंग के दर्शन किए थे और इस क्षेत्र में कई मंदिर भी निर्माण करवाए थे, जो बाद में सालवाहन मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुए। यहां स्वयंभू शिव की मूर्ति है। गुफा की छत पर सर्पाकृति चित्रकला है, जहां से दूध-युक्त जल शिवलिंग पर टपकता रहता है। डुग्गर प्रांत की पवित्र गुफाओं में शिव खोड़ी का नाम अत्यंत प्रसिद्ध है। यह गुफा तहसील रियासी के अंतर्गत पौनी भारख क्षेत्र के रणसू स्थान (जम्मू) के नजदीक है। यह भगवान शिव के प्रमुख पूजनीय स्थलों में से एक है। इस गुफा के बारे में कहा जाता है कि यहां भगवान शिव साक्षात विराजमान हैं। इस का दूसरा छोर अमरनाथ गुफा में खुलता है। पवित्र गुफा शिव खोड़ी की लंबाई 150 मीटर बताई जाती है। इस गुफा के अंदर भगवान शिव शंकर का चार फीट ऊंचा शिवलिंग है। शिवलिंग के साथ ही इस गुफा में पिण्डियां विराजित हैं। इन पिण्डियों को शिव, माता पार्वती, भगवान कार्तिकेय और गणपति के रूप में पूजा जाता है। इस गुफा को बनाने का कारण भस्मासुर को सबक सिखाना था। भगवान शिव और भसमासुर के बीच भीषण युद्ध छिड़ा। इस रण के कारण ही इस क्षेत्र का नाम रणसु पड़ा।
     एक बड़ी निंदनीय और ढोंगभरी बात। विगत वर्षों में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने शंकराचार्य हिल का नाम बदलकर ‘तख्त-ए-सुलेमान’ कर दिया | एएसआई ने पर्यटक सूचना पट्टिका पर शंकराचार्य हिल के इतिहास की एक बेतुकी और भ्रामक प्रस्तुति की है । इसमें बताया गया है कि इस पहाडी पर कभी यहूदियों का कब्जा था इसलिए इसका नाम ‘तख्त ए सुलेमान’ या ‘सुलैमान का सिंहासन’ किया गया है । जबकि वस्तुस्थिति यह है कि शंकराचार्य पहाड़ी पर स्थित संरचना का निर्माण भारत में इस्लाम के आने से भी सदियों पहले का है | 
     शंकराचार्य मंदिर की बाबत एक निजी संदर्भ का भी मैं उल्लेख कर दूं। बात करीब 1970 की है। पहली बार हम परिवारजन अमृतसर और कश्मीर गए थे। शंकराचार्य मंदिर के दर्शनार्थ बने। वहां बॉर्डर रोड संगठन के आला अधिकारी (और मेरे बहनोई कर्नल के. राजगोपालन के मित्र) लखनऊ (नरही) के कर्नल एनपी भटनागर तैनात थे। उनके साले थे हरीकृष्ण गौड जो “नेशनल हेरल्ड” के समाचार संपादक थे। कर्नल भटनागर की बात सुनकर हृदय प्रफुल्लित हो गया। उस पर्वत पर रक्षा सड़क का निर्माण हो रहा था। मंदिर से करीब सौ फिट हटकर बन रहा था। मंदिर के पुजारी ने कर्नल भटनागर से निवेदन किया कि यदि मंदिर के द्वार को मुख्य भाग से जोड़ दिया जाए तो वृद्ध और दिव्यांग आराधक भी शिवलिंग के सरलता से दर्शन कर पाएंगे। कर्नल भटनागर ने इंजीनियरिंग विभाग को तर्क दिया कि दूसरी ओर के पोली चट्टान के कारण मंदिर से सटी हुई शिलाओं पर सड़क बनाओ। आज लाखों हिंदू आराधको की दुआयें स्व. कर्नल भटनागर को मिल रही होंगी। भटनागरजी के कारण हमें कोकरनाग, वेरीनाग, गुलमर्ग, पहलगाम आदि देखने का मौका मिला। बाद में अपना कर्तव्य समझकर मैं ने 1986 में लगभग पांच सौ श्रमजीवी पत्रकारों को कश्मीर और वैष्णो देवी के दर्शन कराए। अवसर था IFWJ की राष्ट्रीय परिषद के अधिवेशन का जिसका उद्घाटन राज्यपाल श्री जगमोहन ने किया था। आज फिर आशा बंधी है कि हम हमारे IFWJ के साथियों के लिये दूसरी बार शंकराचार्य मंदिर और पहलगाम जाने का संयोग बनेगा। इंशा अल्लाह ।

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