विश्व बाजार में भारतीय कृषि उत्पाद

राकेश सिंह

पहली बार नरेन्द्र मोदी की सरकार ने अपनी योजनाएं गांव किसान को केन्द्र में रखकर बना रही है। जबकि आजादी के बाद सरकारों नें योजनाएं शहरों को केन्द्र में रखकर बनाई। जिसके कारण शहर तो जगमगा गए, गांव अंधेरे में खोते चले गए, यानि एक बिगड़े व्यापारी की तरह हमने मूलधन को खाना शुरू कर दिया। असर हमारे सामने है। शहरों मे बेकाबू भीड़, योजनाओं की फजीहत, गांवों से पलायन हुआ। साल 2014 में  नरेन्द्र मोदी सरकार आने के बाद उम्मीद जगी। शुरूआत भी हुई लेकिन अभी बहुत कुछ बाकी है।
इस चुनौती का हल गांवों में ही है। इस दिशा में नरेन्द्र मोदी सरकार ने ध्यान भी दिया। विरासत में मिली विविधता का सही आंकलन भी किया। उसे नई पहचान देने की कोशिश की है। साथ ही हमें इस धोखे से बाहर भी आना होगा कि हम कृषि प्रधान हैं और कृषि उन्नत नही है। हमारी खेती उन्नत है, हमारी जैविक तकनीक को विश्व अपना रहा है। एसे में किसानो को शिकाकाई, हल्दी और बेसन के लिए चने की खेती करने के लिए प्रेरित करने की भी जरूरत है।

देसी कपास और सोयाबीन के बीज का भंडार और उत्पादकता बढाने पर शोध करने की जरूरत है। बजाय जीएम तकनीकों को गले लगाने के, हमें बीटी काटन के परिणामों से सीख लेने की जरूरत है, क्योंकि अधिकतर किसानों की आत्महत्या का कारण यही जहरीला पौधा है। आज अमरीका जैसे देश नागरिक मांग आधारित कम्युनिटी खेती कर रहे हैं। हम क्यों पीछे रहे? हमारी तो विरासत ही यह है। हमें गांवों की ओर चलना होगा। हमने कदम बढ़ा भी दिए हैं। लेकिन गति तेज करनी पड़ेगी। हम उन्नत जैविक और पारंपरिक खेती से नया भारत गढे। विश्व भारत को महाशक्ति के रूप में यदि कर देखेगा तो उद्योगों व शहरों की बदौलत नही, बल्कि मेहनतकश किसानों की बदौलत।

कृषि जींसो की कीमतो में गिरावट के समय तत्काल हस्तक्षेप के लिए राज्यों को सक्षम बनाना होगा।चना अरहर तिलहन जैसी फसलों के दाम समर्थन मूल्य से अक्सर नीचे पहुंच जाते हैं। कीमतों में स्थिरता लाने को राज्यों को धन आवंटन करना होगा।फसल बीमा योजना को किसानो ने सराहा, लेकिन क्रियान्वयन को लेकर किसान परेशान है। इसके लिए सीधे तौर पर बीमा कंपनियां जिम्मेदार है। इस योजना को स्वैछिक किए जाने की जरूरत है।

बीमा कंपनियां अंतिम समय में विज्ञापन जारी करती है। इस वजह से भी किसानों को लाभ नही मिल पाता।कृषि उत्पादो के निर्यात पर रोक हटाई जाए ताकि किसानो को वैश्विक स्तर पर लाभ मिल सके|निर्यातोन्मुखी कृषि सामाग्री के हवाई परिवहन पर जीएसटी दर 18 फीसदी से कम कर 5 फीसदी की जानी चाहिए।देश में उत्पादन का मात्र 10 फीसदी हिस्सा प्रसंस्कृत होता है। इसे बढाकर 15 फीसदी किया जाए।किसानो की आय बढाने के लिए कच्चे माल के मूल्य उत्पाद के विपणन जमीन के प्रबंध पर विशेष ध्यान देना होगा |
देश भर में किसानो को समर्थन मूल्य का वास्तविक लाभ दिलाने के लिए मध्य प्रदेश सरकार की मुख्यमंत्री भावांतर योजना जैसी किसान  योजना पर विचार करना होगा |उत्तर प्रदेश के एक जिला एक उत्पाद योजना को देश भर में लागू करना चाहिए। इससे गांवों से पलायन रूकेगा। जिला स्तर पर रोजगार सृजन होगा और किसानों को उनके करीब ही फसलों के सही दाम मिलेंगे।फलों और सब्जियों को किसान से सीधे सरकारी कैंटीनों खरीदें। इससे किसानों को उनके फलों और सब्जियों का उचित मूल्य मिल सकेगा।

आज किसानों के सामने बहुत बड़ी समस्या अवारा पशुओं की है। इन आवारा पशुओं की वजह से किसानो का बहुत नुकसान हो रहा है। जिले स्तर पर इनकी व्यवस्था जरूरी है। गोबर और मूत्र आदि को उपयोग में लाया जा सकता है। जिससे इनके रखरखाव का खर्च भी निकल सकेगा। इससे गोबरधन योजना को जोडने से समस्या का हल निकल सकता है। लोगों को जैविक उत्पादों से अवगत कराने की जरूरत है। साथ ही इसके फायदे बताने के लिए ग्राहकों और किसानों के बीच सेतु बनने की जरूरत है। किसान को ग्राहक की जरूरत है। किसान को ग्राहक और बाजार मिल सके इसके लिए रारू इंदौर में जैविक सेतु यही काम कर रहा है।

हम अर्थव्यवस्था को स्मार्ट बनाने में जुटे है। इस बीच अर्थव्यवस्था की रीढ़ कृषि विश्व बाजार में नई डिमांड बना रही है। कृषि क्षेत्र में देश क्षमताओं को देखे तो 58 प्रतिशत से अधिक परिवार कृषि पर निर्भर है। आधे से अधिक लोगों को इससे रोजगार मिल रहा है। अनुमान के मुताबिक देश की जीडीपी में 17.5 प्रतिशत का योगदान है। 157.35 मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि के साथ भारत दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा देश है। दुनिया के 20 कृषि जलवायु क्षेत्रों में 15 प्रमुख मौसम भारत में मौजूद हैं। 60 प्रकार की मिट्टी में 46 प्रकार की मिट्टी हमारे पास है, जिससे हम तरह तरह कृषि उत्पाद पैदा कर सकते हैं। हमारी ग्रोथ भी अच्छी है। अब हमें विश्व बाजार में अपनी धाक जमाने की तैयारी करनी होगी।

खेती को सिर्फ किसानी से नहीं, अर्थ के साथ मिलाकर देखने की जरूरत है। हम साधन जुटाने में, योजनाएं बनाने में रहे हैं। दिक्कत प्रति एकड़ उत्पादन बढ़ाने और उत्पादित माल को व्यवस्थित मार्केट देने की है। जिससे किसानों को उत्पाद का बेहतर मूल्य मिल सके और कृषि उत्पादों को बाजार मिल सके।

सरकार की योजनाओं की वजह से ही आज हमने इस दिशा में चलना शुरू किया है। आज दूध उत्पादन में भारत दुनिया का सबसे बड़ा देश है, विश्व में हमारी भागीदारी19 प्रतिशत है। इंस्टेंट काफी के क्षेत्र में भारत बड़े निर्यातक के रूप में उभर रहा है। हमारी जलीय मछली की मांग में 130 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। भारत 287 लाख टन फल उत्पादन कर दुनिया का दूसरा बड़ा देश बना। फिर भी रफ्तार धीमी हैं। इस रफ्तार को तेज करने की दिशा मे कुछ कारगर उपाय करने होंगे।

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