इक्कसवीं सदी की महामारी कोरोना से कराहती दुनिया

बनवारी

चीन से संक्रमित हुए कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया में उथल पुथल मचा दी है। दुनियाभर में कामकाज ठप्प है, स्कूल कॉलेज बंद हैं, आवाजाही रोक या सीमित कर दी गई है, लोग अपने घरों में बंद हैं। तीन महीने में कोराना वायरस का संक्रमण दुनिया के दो सौ देशों में हो चुका है। दुनियाभर के अब तक सत्रह लाख लोग इस वायरस से संक्रमित हो चुके हैं और एक लाख से अधिक की मृत्यु हो चुकी है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगले दो सप्ताह में यह महामारी अपना शिखर छू लेगी फिर उसका अवसान आरंभ होगा। वह कितना समय लेगा, यह ठीक-ठीक बताना कठिन है। पर संसार की अन्य सब चीजों की तरह उसकी कालावधि निश्चित है। उसका भी अंत होगा। पर इस उथल पुथल के बाद दुनिया पहली जैसी नहीं रह जाएगी। उसमें अनेक राजनैतिक और आर्थिक परिवर्तन होंगे। वे क्या होंगे यह इस बात पर निर्भर है कि यह महामारी विदा होने में अभी कितना समय लेगी।

यह महामारी चीन के हूबे प्रांत से आरंभ हुई थी। उसका मुख्य केंद्र 6 करोड़ आबादी वाले इस प्रांत का वुहान शहर था। मध्य चीन का यह शहर चीन में यातायाता का बड़ा केंद्र है। यहां से बड़ी संख्या में लोग देश-विदेश की यात्रा पर निकलते हैं। 25 जनवरी को चीन का नया वर्ष शुरू हो रहा था। 25 जनवरी से 4 फरवरी तक चीन में नये वर्ष का उत्सव मनाया जाना था। इसलिए बड़ी संख्या में लोग यात्राओं पर निकलने वाले थे। चीन में सम्पन्नता के साथ-साथ विदेश यात्राओं का चलन भी बढ़ा है। सामान्य दिनों में वुहान से प्रति दिन 20 हजार लोग विदेशों के लिए उड़ान भरते हैं। नये वर्ष के उत्सव से पहले तो उनकी संख्या बढ़नी ही थी। जनवरी के अंतिम दो सप्ताह में ही कई लाख लोग विदेश यात्रा पर गए। उनमें काफी संख्या अमेरिका जाने वाले लोगों की थी। इसलिए वुहान में महामारी फैलने का अर्थ था कि सावधानी न बरती जाने पर उसका दुनियाभर में फैल जाना।

वुहान शहर में इस बीमारी का पहला मामला पिछले साल सत्रह नवंबर को पहले आया था। जिसका कारण अज्ञात दिख रहा था। पर चीन ने अधिकारिक तौर पर 1 दिसंबर को ऐसा पहला मामला आना स्वीकार किया है। जिसमें किसी नये वायरस की आशंका दिखाई दी थी। नये वायरस का अर्थ है कि लोगों में अभी तक उसकी प्रतिरोधक क्षमता विकसित नहीं हुई और न ही उसकी कोई दवा खोजी जा सकी है। उसके बाद 26 दिसंबर को हूबे प्रांत के अस्पताल में इस नये रोग का लक्षण अनेक रोगियों में दिखाई दिए। 30 दिवंबर को वुहान के मुख्य अस्पताल के आठ डाक्टरों ने जिनमें ई वेग लियांग भी थे। अपने सहयोगियों को एक नये वायरस-कोरोना वायरस की सूचना दी। पर चीनी अधिकारियों के कहने पर वुहान पुलिस ने डॉक्टर वेंग लियांग और अन्य डॉक्टरों को झूठी अफवाह फैलाने के आरोप में काफी धमकाया। इसके बावजूद 31 दिसंबर को वुहान नगर के स्वास्थ्य आयोग ने इसकी सार्वजनिक सूचना जारी कर दी और विश्व स्वास्थ्य संगठन को भी उसकी जानकारी भेज दी।

जनवरी में इस बीमारी का लक्षण न केवल वुहान के बाहर हूबे प्रांत के अन्य शहरों में दिखाई देने लगे, बल्कि चीन के अन्य प्रांतों के बड़े शहरों में भी उसके रोगी सामने आये। इस बीच ताईवान, दक्षिण कोरिया और थाईलैंड में भी इस रोग का एक-एक मरीज दिखाई दिया। इस आरंभिक दौर में चीन लगातार इसकी संक्रमण्ण की आशंका को नकारता रहा। उसके कहने पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी विश्वास कर लिया कि इस वायरस के एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संक्रमण का खतरा नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के वर्तमान अध्यक्ष ते द्रोस के थोपियाई हैं और इस पद पर उनका चुनाव चीन के पूरजोर समर्थन के कारण ही हुआ था। इसलिए अमेरिका समेत अनेक देशों का आरोप है कि उन्होंने आंख मंूद कर चीन की बातों पर विश्वास किया और समय रहते इस महामारी के बारे में नहीं चेताया। यह आरोप हद तक काफी सही दिखाई देता है।
जनवरी के तीसरे सप्ताह तक इस वायरस का संक्रमण अमेरिका और यूरोप के अनेक देशों में हो चुका था। तब तक भी चीन इस महामारी की जानकारी अन्य देशों के साथ साझा नहीं कर रहा था। इस बीच वुहान से हजारों लोग दुनियाभर के शहरों के लिए रोज उड़ान भर रहे थे। चीन को इस बात की चिंता नहीं हुई, चीन में बहुत सारे लोग इस नये वायरस से संक्रमित हो सकते हैं और इस नये रोग को महामारी में परिवर्तित कर सकते हैं। हूबे प्रांत में इस बीमारी के फैलने के बाद 23 जनवरी को चीन में वुहान से चीन के अन्य स्थानों पर जाने पर रोक लगा दी। उसके बाद यातायात पर लगी यह रोक हूबे प्रांत के अन्य 15 शहर-कस्बों पर भी लगा दी गई और अंत में पूरा हूबे प्रांत सील कर दिया गया। इस सब के बाद भी विदेश यात्रा जारी रही, लोग आते-जाते रहे और इस वायरस का संक्रमण होता रहा। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 30 जनवरी को इसे सार्वजनिक स्वास्थ्य से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय आपात स्थिति घोषित किया। इसे विश्व स्तर की महामारी घोषित करने में उसे और लंबा समय लगा। 11 मार्च 2020 को ही इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा विश्व स्तरीय महामारी घोषित किया गया।

चीन ने इस महामारी की विभिषीका स्वीकार करने में काफी देर की थी। इसलिए इसके बाद वे उसे हुबे प्रांत से बाहर फैलने से रोकने में युद्ध स्तर पर जुट गए। अपने इस अभियान को उन्होंने साम्यवादी भाषा में जनयुद्ध घोषित कर दिया। सब को घर में बंद रहने के लिए निर्देश दिए गए। रोगियों के उपचार की बड़ी व्यवस्था तत्परता पूर्वक खड़ी कर दी गई। शुरू में राष्ट्रपति शी पृष्ठभूमि में चले गए। जब यह महामारी अवसान की ओर बढ़ी तब ही वे प्रकट हुए। इस बीच 27 दिसंबर को इस नयी बीमारी के बारे में आगाह करने वाले डॉक्टर की भी इस बीमारी से मृत्यु हो गई। राष्ट्रपति शी ने अपने प्रशासन की आरंभिक भूल स्वीकार की। डॉक्टर की मृत्यु पर शोक व्यक्त किया लेकिन इस बीमारी के विश्व स्तर की महामारी में बदलने में चीन की भूमिका नहीं स्वीकारी। पर इस बीच अमेरिका और अनेक यूरोपिया देशों में चीन की भूमिका पर गंभीर प्रश्न उठाए जाने लगे। मार्च के अंत तक चीन ने हूबे प्रांत में इस महामारी पर काबू पा लिया। अप्रैल के आरंभ में वुहान समेत हुबे प्रांत के सभी शहरों में यातायात सामान्य कर दिया गया और अन्य प्रतिबंध हटा दिए गए। हालांकि इस बीच भी चीन के अन्य क्षेत्रों से 30-60 नये मामले रोज सामने आते रहे। अब चीन में इस महामारी की दूसरी लहर की आशंका जताई जाने लगी है।

चीन ने इस महामारी को मुख्यत: अपने हुबे प्रांत में सीमित रखकर उसे दुनियाभर में फैला दिया। इसने दुनियाभर में चीन के बारे में अनेक तरह की आशंकाएं पैदा की है। अमेरिका के कुछ विशेषज्ञों ने आशंका व्यक्त की कि यह विषाणु (वायरस) चीन के किसी प्रयोगशाला में तैयार हुआ हो सकता है, जिसका कोई उपचार भी उसके पास है। इसे उसने जैविक युद्ध के प्रयोग के रूप में फैलाया हो सकता है। कुछ अन्य विशेषज्ञों का मानना है कि यह विषाणु पैदा तो प्रयोगशाला में ही हुआ है, लेकिन उसे जानबूझकर नहीं छोड़ा गया। वह किसी दुर्घटनावश प्रयोगशाला से बाहर आ गया और वुहान में संक्रमित होकर पूरे हुबे प्रांत में फैल गया। उनका भी मानना है कि इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि चीन जैविक युद्ध की तैयारी कर रहा है। इन सभी आशंकाओं का जब तक कोई निश्चित साक्ष्य सामने न आ जाए, उनपर विश्वास नहीं किया जा सकता। पर इस पर कोई संदेह नहीं है कि चीन ने आरंभ में दुनियाभर को इस वायरस के बारे में अंधेरे में रखा, विदेश यात्रा पर रोक नहीं लगाई और इस तरह इस महामारी को दुनियाभर में फैला दिया।

इस महामारी को फैलाने में चीन की जो भूमिका रही है उसपर अब तक सबसे बड़ा हमला अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड टंकृप ने किया है। उन्होंने इस वायरस का नाम बदलकर चीनी वायरस घोषित कर दिया। चीन इससे इतना आहत हुआ कि उसने उसका कड़ा प्रतिवाद किया और दुनिया के सभी देशों से आग्रह किया कि वह चीन को बदनाम करने की इस कोशिश का विरोध करे। अभी अन्य सभी देश अमेरिका और चीन के बीच के इस वाक्य युद्ध में बिना पड़े इस महामारी से जूझ रहे हैं। लेकिन इस महामारी को फैलाने में चीन की जो भूमिका रही है उससे दुनियाभर में उसकी छवि एक खलनायक जैसी हो गई है। इस छवि से जल्दी उबरना चीन के लिए मुश्किल साबित होगा। उससे उबरने की कोशिश में चीन ने महामारी से ग्रसित देशों को हर संभव सहायता देने की पेशकश की। पर उसकी जो खलनायक की छवि बन गई है उसके कारण उसकी यह पेशकश भी फिर विवादग्रस्त हो गई। स्पेन और चकोस्लवासिया ने महामारी से लड़ने के लिए चीन द्वारा भेजा गया सामान यह कहकर लौटा दिया कि वह घटिया और दोषपूर्ण है। यह भी खबर आई कि चीन में महामारी फैलते समय इटली ने उसे जो सामग्री दान में दी थी उसी का उसने वापस इटली भेज दिया। यह खबर सच है या नहीं, पता नहीं। पर चीन महामारी के समय सहयोग करने के नाम पर अपनी सामग्री की ऊंची कीमत वसूल रहा है। इसलिए उस पर इस संकट के समय भी मुनाफाखोरी का आरोप लग रहा है। इस सबसे चीन की जो नकारात्मक छवि बन रही है उसके दूरगामी परिणाम होने वाले हैं।

इस महामारी का सबसे अधिक असर अमेरिका पर पड़ता दिख रहा है। कोरोना वायरस अब तक 5 लाख से अधिक अमेरिकियों को अपनी चपेट में ले चुका है। इस महामारी से मरने वालों की संख्या अभी अमेरिका में 16 हजार के आसपास है। पर आगे उसके तेजी से बढ़ने की आशंका है। स्वयं राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने स्वीकार किया है कि अमेरिका में इस महामारी से मरने वालों की संख्या 60 हजार तक पहुंच सकती है। अगर ऐसा हुआ तो आम अमेरकियों में चीन विरोधी भावनाएं इतनी बढ़ जाएंगे कि वे दोनों देशों को किसी भी तरह के टकराव तक ले जा सकती है। यूरोपीय देश अब तक अमेरिका और चीन के बीच छिड़े व्यापारी युद्ध में तटस्थ दिख रहे थे या चीन की वकालत कर रहे थे, आगे मध्य मार्गी नहीं रह पाएंगे। अभी से आशंका प्रकट की जाने लगी है कि महामारी के दौरान बंद हुए कामकाज के कारण जो यूरोपीय कंपनियां वित्तीय संकट में आ गई हैं उन्हें चीन हड़पने की कोशिश कर सकता है। उसके पास तीन हजार अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा का भंडार है। इस आशंका के कारण यूरोपीय देशों ने अपने यहां विदेशी निवेश के नियम कड़े करने आरंभ कर दिए हैं।

इस महामारी को फैलाने में चीन की भूमिका पर तो सवाल उठ रही रहे हैं लेकिन उसे फैलने से रोकने में अमेरिका व यूरोपिय देशों में जो लापरवाही बरती गई उस पर भी सवाल उठने शुरू हो गए हैं। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप स्वयं इस महामारी को अधिक गंभीरता से नहीं ले रहे थे। अमेरिका ने जनवरी के अंत में चीन से आने जाने वाली उड़ानों पर प्रतिबंध लगा दिए थे। लेकिन देश के भीतर व्यापक प्रतिबंध लगाने में वे हिचकिचा रहे थे। उनका मानना था कि प्रतिबंध लगाने पर कामकाज ठप्प होगा, बेरोजगारी बढ़ेगी और लोगों की आर्थिक परेशानियां बढ़ जाएगी। वे इस महामारी के बारे में तभी गंभीर हुए जब विशेषज्ञों ने कहा कि महामारी से मरने वालों की संख्या दो से दस लाख के बीच हो सकती है। यूरोपीय देश भी चीन से आने जाने वाली उड़ानों पर पाबंदी लगाने में देर करते रहे, यह सोचकर कि इससे उन्हें आर्थिक नुकसान होगा। इटली पर तो यह आरोप भी लगा कि वहां मरने वालों में बड़ी संख्या पेंशनधारी वृद्ध लोगों की है, इसलिए उन्हें यह सोचकर मरने दिया जा रहा है कि इससे राज्य की देनदारी घटेगी। इटली वैसे भी गंभीर वित्तीय संकट में है। स्पष्ट है कि यह आरोप अतिरंजित ही था।

इस महामारी के दौरान इस तरह के आरोप प्रत्यारोप लगना और अनेक तरह की आशंकाएं व्यक्त किया जाना स्वाभाविक भी है। यह वायरस ब्रिटेन के प्रधानमंत्री से लेकर अनेक प्रभावशाली लोगों और धन कुबेरों को संक्रमित कर चुका है। इसलिए उसका डर भी व्यापक है और उससे पैदा होने वाली चिंता भी। दुनियाभर की प्रयोगशालाएं उसकी दवा खोजने में लगी हैं,पर दवा खोज भी ली जाए तो परीक्षण की प्रक्रिया से गुजरकर उसके बाजार में आने में काफी समय लग जाएगा। तब तक यह महामारी अपने आप अपनी तिव्रता खोकर विदा हो जाएगी। उसकी विभीषिका कम करने के लिए दुनिया के अधिकांश देश वायरस का संक्रमण रोकने में लगे हैं। उसका एकमात्र उपाय यही है कि संक्रमित लोग अन्य लोगों से अलग रखें जाएं। पर कौन संक्रमित है इसका पता तत्काल नहीं चलता। इसलिए सभी लोगों को एक दूसरे से दूरी बनाये रखने के लिए प्रेरित और बाध्य किया जा रहा है। इस बीच यह समझना भी आवश्यक है कि यह वायरस कैसे पैदा हुआ और वह किन कारणों से तेजी से दुनियाभर में फैल गया।

कोराना वायरस कहां से पैदा हुआ इसका ठीक कारण अभी किसी को पता नहीं है। विशेषज्ञों के बीच चीन से निकली इस धारणा को आरंभिक स्वीकृति मिली हुई है कि वह एक पशु जनित विषाणु है। चीन विशेषज्ञों की मान्यता है कि वह वुहान शहर के जानवरों का मांस बेचने वाले बाजार से संक्रमित हुआ। आरंभ में एक तस्वीर प्रचारित हुई कि जिसमें दो चीनी लड़कियां इस बाजार में चमगादड़ की मांस खाती दिख रही थीं। वुहान का यह बाजार 100 से अधिक जानवरों के मांस के लिए प्रसिद्ध है। इस बाजार में सब तरह के जंगली पशु-पक्षियों का मांस मिलता है। जिनसे पैदा होने वाले विषाणु की प्रतिरोधक क्षमता मनुष्य में अभी पैदा नहीं हुई। इस बाजार में यह मांस खुला मिलता है, उसके कारण चारों तरफ गंदगी फैली रहती है और वायरस के संक्रमण का खतरा सदा बना रहता है। यह याद रखना आवश्यक है कि अब तक की अधिकांश महामारियां पशु जनित विषाणुओं से ही फैली हैं। चीन में वह इस लिए भी फैलती हैं कि चीन में खाद्य-अखाद्य का विवेक सबसे कम है। चीनी लोग सांप-विच्छू, कुता-बिल्ली सब खा जाते हैं। भारत के बाहर खाद्य-अखाद्य का यह विवेक वैसे भी कम ही है। आधुनिक काल में यह अविवेक बढ़ा है क्योंकि दुनियाभर में भोजन का मुख्य अंग अन्न की जगह मांस हो गया है। यूरोप में चीन जैसा विवेक न हो, लेकिन वहां मांस उद्योग पशुओं को जिन भीषण परिस्थितियों में रखता है, अधिक प्रोटीन के लिए शाकाहारी इन पशुओं को मांसाहारी आहार खिलाता है, उससे विषाणु पैदा होने का खतरा काफी बढ़ जाता है।

पिछले 120 वर्ष पश्चिमी विज्ञान और प्रौद्योगिकी के उत्सकर्ष के वर्ष रहे हैं। उसका उपयोग सभी उत्पादन प्रक्रियाओं को मनुष्य के विवेक से अलग करके तार्किक नियमों पर आस्रित कर दिया गया है। उद्योग तंत्र की मुख्य चिंता अपना मुनाफा होती है, इसलिए अधिक उत्पादन और अधिक उपभेग के दुष्चक्र में प्रकृति भी पीस रही और हमारा स्वास्थ्य भी खतरे में पड़ता जा रहा है। विज्ञान और प्रोद्योगिकी के इस तर्क ने यह अंधविश्वास पैदा किया है कि प्रौद्योगिकी द्वारा प्रकृति से कोई भी खिलवाड़ किया जा सकता है। इसके कारण मनुष्य लापरवाह हुआ है। कोराना वायरस को यूरोप और अमेरिका में तेजी से फैलने में इसलिए भी सफलता मिली कि वहां की सरकारों के लिए आर्थिक हित लोगों के स्वास्थ्य से ऊपर थे और लोग यह सोचकर लापरवाह बने हए थे कि यह बिमारी यूरोप-अमेरिका से आधुकिन चिकित्सा तंत्र के लिए असाध्य नहीं है। जब सरकारों ने कड़े प्रतिबंध लागू कर दिए तब भी नौजवान कोरोना पार्टियां करते घूमत रहे।

चीन के बाद अमेरिका और यूरोप के बाहर इस वायरस का सबसे अधिक संक्रमण ईरान में हुआ है। ईरान में 1979 की क्रांति के बाद से इस्लामी शासन है। जब चीन-अमेरिका और यूरोपिय देशों से महामारी की खबरें आ रही थी, ईरान के नेता उसे रोकने के व्यापक प्रबंध करने के बजाय अल्लाह की दुहाई दे रहे थे। 3 मार्च को ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खमैनी ने कहा कि कोरोना वायरस कोई ही बड़ा संकट नहीं है। ईरान ने उससे अधिक गंभीर संकटों का सामना किया है। इस तरह की महामारी रोकने में पाक लोगों द्वारा की गई प्रार्थनाएं ही काफी हैं। जब कोरोना वायरस का संक्रमण सरकार के उस अफसरों में होना शुरू हुआ तो ईरान ने इस महामारी के लिए अमेरिका को कोसना शुरू कर दिया। अल्लाह की दुहाई देने की यह प्रवृति पाकिस्तान के नेता भी काफी समय तक दिखाते रहे। भारत में तबलीगी जमाती के हमीर मौलाना साद ने भी इसी तरह की बातें की। हालांकि सउदी अरब समेत अधिकांश देशों ने मस्जिदें बंद रखीं। मक्का और मदीना को भी बंद रखा गया। दुनियाभर के अधिकांश मुस्लिम देशों और मुस्लिम उलेमाओं ने महामारी को रोकने का व्यावहारिक रास्ता ही अपनाया। विचित्र बात है कि इक्कसवीं सदी इस महामारी को फैलने से रोक नहीं पाई। इसका कारण यह है कि इक्कसवीं सदी में भी मनुष्य के नये पुराने अंधविश्वास बने हुए हैं।

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