राम क्या हैं, राम क्यों हैं, राम कैसे हैं, राम कहां हैं। यह वह सवाल हैं जो मानव मन में कौंधतें हैं, मथते हैं, चलते हैं, प्रवाहित होते हैं। मन से आत्मा तक की यात्रा करने को तत्पर होते हैं। राम शीर्ष पर हैं। सवाल मूल पर। शीर्ष और मूल के बीच की दूरी नापते-नापते दिन, वर्ष, शताब्दियां जैसे बीत जाती हैं। उत्तर मिलता भी है और नहीं भी मिलता। उत्तर पाने वाला बताता नहीं, न पाने वाला खोजता रहता है। यह खोज सामान्य से अति विशिष्ट तक करते हैं। सामान्य वह है, जो जीवन के पुरुषार्थ चतुष्ट्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के बीच रहकर राम को खोजता है। चलता है और रुक जाता है। रुकने के पीछे भी राम की ही माया होती है। वह उद्देश्य की पृष्ठभूमि में ही भटकता है। लगता है कि आगे कुछ है, पर इच्छा के पर्दे के पीछे की इच्छा उसे पीछे खींच लेती है। आगे बढ़कर भी वह आगे नहीं बढ़ पाता। डूब नहीं पाता। मन से आत्मा की दूरी असंख्य मील हो जाती है। बालपन से जवानी, जवानी से बुढ़ापा और बुढ़ापे से पुनर्जन्म तक की कथा उसके साथ घटित होती है। वह चाहकर भी सामान्य से अति विशिष्ट नहीं बन पाता। सधुक्कड़ी भाषा में सामान्य से अति सामान्य नहीं हो पाता। अति सामान्य होने का तात्पर्य मन हो पर चंचलता नहीं। मन हो पर विह्वलता नहीं। मन हो पर संसार नहीं। संसार में रहते हुए भी संसार में न हो। जिम्मेदार है पर जिम्मेदारी नहीं। परोपकार है पर उपकार नहीं। दृष्टि में बाधा नहीं। दृष्टि सम है। घटकर भी उसके साथ कुछ घटता नहीं। चल कर भी वह स्थिर है। सबकुछ पाकर भी उसे कुछ भी नहीं मिलता। कुछ न मिलने पर भी वह सबकुछ पा जाता है। यह पहचान भी है और जीवन दर्शन भी।
राम जीवन हैं, राम उसका दर्शन हैं, राम परंपरा हैं, राम उसका पालन हैं। राम मर्यादा हैं, संस्कार हैं, ज्ञान हैं, लेकिन अभिमान नहीं हैं। राम जड़ हैं, चेतन हैं, राम जन्म हैं, मृत्यु हैं, चलायमान हैं, निश्चल हैं। राम दशरथनंदन हैं, राम दशरथनंदन राम के भी राम हैं। आकार हैं, निराकार हैं, वृहत्ताकार हैं, जिसने जो समझा राम वही हैं। सामान्य व्यक्ति के लिए, सामान्य श्रद्धालु के लिए राम एक मानव हैं। राम नाम के आगे श्री का संबोधन यही तो बताता है। राम अखंड हैं, निरंकार भी हैं। यह राम सामान्य से अति सामान्य के लिए हैं। मित्र हैं, शिष्य हैं, बालक हैं, परमात्मा भी हैं। भाव में हैं। भाव, बिंदु से समग्र ब्रह्मांड तक को समेट लेता है। राम ब्रह्मांड भी हैं, क्योंकि वह भाव में हैं। ब्रह्मांड में समाते नहीं, अति सामान्य के ह्रदय में बिंदु बन जाते हैं। यह विमर्श भर है, समग्र नहीं। समग्र को समेटने के लिए ह्रदय में बिंदु को समाने की जगह चाहिए।
राम चिंतन हैं, चिंतन में राम हैं। राम में तीन अक्षर हैं। र, अ और म। तीन अक्षरों में समा जाते हैं। अक्षर में नाद है, ध्वनि है। राम नाद भी हैं और ध्वनि भी हैं। ध्वनि सामान्य के लिए, नाद अति समान्य के लिए। राम नाद और ध्वनि में बसते हैं। राम मंत्र हैं, जीवन का तंत्र हैं, जीवन की सफलता का यंत्र हैं। राम अजुध्या हैं। अयोध्या राम है। अजुध्या है तो राम हैं। आदिकाल से हैं। राम श्रद्धा भी हैं। अब ज्यादा प्रासंगिक हैं। अयोध्या बोलती है। रामनाम गाती है। राम, मंत्र की ऊर्जा हैं। राम अजुध्या में सदैव वर्तमान रहे, पर लौकिक जगत में प्रासंगिकता बढ़ गई। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हुई। लोक में राम नाम की श्री वृद्धि हुई। यह अयोध्या का संदेश है। आम जन का योग है।
राम स्वीकारोक्ति हैं, व्यक्ति की, समाज की, देश की, विश्व की। राम मानवता का संदेश देते हैं। मानवता लोक कल्याण का मार्ग है। विश्व बंधुत्व इसमें निहित है। शांति इसका प्रतीक है। संस्कार और संस्कृति इसका मूल है। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हुई, यह नवसृजन का संदेश है। संदेश, जिज्ञासा और चिंतन में हैं। हम राम के आदर्श, मर्यादा, संस्कार और संस्कृति को आत्मसात कर रहे हैं या करने की राह पर हैं। कर रहे हैं तो रामलला की प्राण प्रतिष्ठा सार्थक हुई। करने की राह पर हैं तो नवसृजन का दौर है। जीवन में झंझावात हैं, परेशानी है, दु:ख है, समस्या है। समस्याओं से जूझना है। जूझने में राम का संबल है तो संस्कार सृजन होगा, संस्कार बढ़ेगा, पर रामलला का दर्शन अयोध्या का पर्यटन है तो सार्थकता पर सवाल होंगे। कुछ हासिल नहीं होगा। व्यक्ति को, समाज को और न ही देश को। ऐसे अति सामान्य जरूर हैं, जो इस नवधा भक्ति से जीवन में आगे निकल जाएंगे, लेकिन इनकी संख्या कम महसूस की जा रही है। चिंतन का विषय यही है। राम और अयोध्या की सार्थकता समाज के लिए बढ़ेगी, कैसे? प्राण प्रतिष्ठा के बाद की अयोध्या चिंतन के दायरे में है। अयोध्या की भक्ति, वैराग्य संरक्षित और सुरक्षित बनी रहेगी तो प्रभाव दूर तक जाएगा। राम के नाम की महिमा के गान की अंतर्धारा यही तो है। अयोध्या सृजन कर रही है। यह उसका नया पड़ाव है। संकेत कर रही है। समझने की जरूरत है। राम नाम की महत्ता को। इसके जरिए उत्पन्न हो रहे लोक कल्याण के भाव को। राम की भक्ति और आदर्श को अंगीकार करना होगा। मर्यादा को दिखाना होगा, दुनिया को संदेश देना होगा तभी अयोध्या का नवसृजन सार्थक और रुचिकर होगा।