कांग्रेसी घुड़की से सोशलिस्ट डरेगा नहीं ! कमल पोला है.

के .विक्रम रावसोनिया-कांग्रेस के नेतृत्ववाले गठजोड़ के नौ महीने भी पूरे नहीं हुए, भ्रूण-निधन के आसार दिख रहे हैं। सर्जरी कमलनाथ ने कर डाली। वर्ना अखिलेश यादव ने तो (20 अगस्त 2023 को) कहा था कि कांग्रेस से सीटों का बंटवारा कोई मसला नहीं है। लक्ष्य केवल भाजपा की पराजय है। फिर क्या माजरा रहा ? पूरे पांच वर्ष तक बड़े प्रदेश के निर्बाध मुख्यमंत्री रहे अखिलेश यादव को केवल पंद्रह माह तक सीएम रहे कमलनाथ ने “वखिलेश” कह दिया। अगड़म-बगड़म अथवा काठ-कबाड़ का बेरतरतीब ढेर लगा दिया कांग्रेसियों ने। अखिलेश ने भी अपने सैफई अंदाज में सोनिया-कांग्रेस को चिरकुट कह दिया। धोखेबाजी का आरोप लगा दिया। मगर इस समाजवादी नेता की आलोचना में दम है, भार है, सार भी। अखिलेश ने इन मध्य प्रदेश कांग्रेसियों दिग्विजय सिंह और कमलनाथ से चर्चा की थी। भरोसा मिला था कि छः सीटों पर विचार करेंगे। फिर सपा को एक भी सीट नहीं दी। हमारे गठबंधन पर कहा गया कि “अगर यह सिर्फ लोकसभा में है, तो इस पर विचार किया जाएगा। कांग्रेस जैसा व्यवहार सपा के साथ करेगी, उनके साथ वैसा ही किया जाएगा।” 
अखिलेश यादव नई पौध हैं। नयी पीढ़ी के हैं। खुर्रांट कांग्रेसियों को इसका आभास होना बाकी है। उन्हें याद रखना होगा कि समाजवादी कर्णधार, लड़ाकू लोहियावादी मुलायम सिंह यादव को जब इंदिरा गांधी सरकार ने इमरजेंसी (जून 1975) इटावा में कैद किया था तो अखिलेश बीस माह के दुधमुंहे थे। जब मैंने एक भेंट में मुलायम सिंह जी से जेल-यातना के विषय में पूछा था तो उनका जवाब बड़ा मर्मदर्शी था : “टीपू की याद सताती है।” अखिलेश से करीब बीस माह बड़ी तो प्रियंका थीं तब। याद रहे 2017 में राहुल गांधी और अखिलेश में साझेदारी हो गई थी। युवजनों की। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के इस निर्णय से गैरकांग्रेसवाद पर पले लोहियावादी बहुत परेशान हुए। दिल जलाने वाला नजारा था, जब कांग्रेस के पंजे निशान और सपा की साइकिल के लिए संयुक्त अभियान चला था। दर्दवाला दृश्य था जब राहुल गांधी और राममनोहर लोहिया की फोटो एक साथ पोस्टरों पर दिखाई देते थे। लोहिया की इतनी अवमानना मैंने सात दशकों के पत्रकारी जीवन में कभी नहीं देखा था। लोहिया और एक अनजाना युवा ? सिवाय अपने परदादा (नेहरू) के नाती का पुत्र होने के अलावा क्या अहर्ता है राहुल गांधी की ? फिर भी वोट और सत्ता के खातिर अखिलेश ने सौदे किये। त्रासदी सर्जायी।
 अब एक प्रश्न जरूर उठना है। बल्कि इस बिंदु का उल्लेख हमारे प्रिय और निपुण साथी स्वर्गीय राज बहादुर सिंह ने अपनी विवेचना में (पायोनियर : 14 मार्च 2023) ने उठाई थी। उनकी राय थी : “तीन चुनाव, तीन प्रयोग और तीन असफलताएं। इसके बाद अब चौथा चुनाव 2024 का लोकसभा चुनाव होगा जिसके लिए अखिलेश की रणनीति क्या होगी ? क्या वह फिर से कोई नया प्रयोग करेंगे या किसी पहले दिए गए प्रयोग को कुछ संशोधनों के लिए आजमाएंगे ? 
 मगर अपेक्षित गांभीर्य, मर्यादा, शालीनता और संयम दिखा रहे अखिलेश ने बड़ा सटीक और तीखा जवाब दिया। वे बोले : “जिसके नाम में ही कमल हो, उससे क्या आशा है ?” फिलहाल इस सपा पुरोधा को मायावती से तो समूची दूरी बनाए ही रखनी चाहिए। पुराना मैनपुरी वाला प्रयोग अब नहीं होना चाहिए। तब अपने पिता के प्रति कर्तव्य निभाते आज्ञाकारी पुत्र ने मायावती को बुवा बनाया था। मुलायम सिंह यादव की विजय नतीजन बंपर वोटों से हुई। फिर उनकी पतोहू डिंपल ने भी उस कीर्तिमान को बरकरार रखा।
 यूं राष्ट्रीय पैमाने पर अखिलेश ने अपने सभी पत्ते बड़े करीने से फेंटे हैं। तेलंगाना के के. चंद्रशेखर राव से अखिलेश हैदराबाद में (3 जुलाई 2023) मिले थे। उसी सप्ताह राहुल ने इस भारत राष्ट्रीय समिति के नेता की भर्त्सना की थी। तब तक राहुल गांधी धमका चुके थे कि कांग्रेस पटना में गठबंधन की बैठक में नहीं हिस्सा लेंगे यदि चंद्रशेखर राव आमंत्रित किए गए तो। निखलिस भयादोहन था। अब जहां समीकरणों की सियासत हो रही हो वहां ऐसा ब्लैकमेल संभव है। कांग्रेस मध्य प्रदेश में मजबूत है तो वहां अखिलेश को “वखिलेश” बना देगी। फिर यूपी में कमल को कमाल कैसे करने दिया जाए ? 
     
कमलनाथ को भूलना नहीं चाहिए कि अमेठी और रायबरेली में केवल सपा की दया पर ही राहुल और सोनिया अपनी जमानत बचा सकते हैं। अखिलेश यादव ने इन नेताओं के सामने अपना पार्टी प्रत्याशी कभी नहीं उतारा। सोनिया तो हारते-हारते जीतीं थीं। राहुल का तो सूपड़ा ही साफ हो गया था। कमलनाथ को सपा सांसद जावेद अली की उक्ति याद रखनी चाहिए कि गत चुनाव में कमलनाथ ने ही 30 में से 29 सीटों पर कमल को विजयी बनवाया था।
 इस बीच शिवपाल सिंह यादव ने संतुलित राय व्यक्त की। वे बोले “कांग्रेस को मध्य प्रदेश में किए गए वादे पर कायम रहना चाहिए था। तभी इंडिया गठबंधन मजबूत होगा और भाजपा हारेगी।” फिलवक्त इन अहंकारी सोनिया-कांग्रेसी को नरमी और सहृदयता से काम करना चाहिए। अखिलेश यादव ने (23 सितंबर 2023) कहा था : “भाजपा को हराने के लिए सपा ने पहले भी त्याग किया है और आगे भी करने को तैयार है। यूपी में समाजवादी पार्टी सीटें मांग नहीं रही है बल्कि दे रही है।”

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