चीन की दुखती रग

 

बनवारी

हांगकांग से लगाकर शिनजियांग तक सब मामलों में पश्चिमी देश ही आवाज उठाते दिखते हैं। इसके पीछे उनका राजनैतिक उद्देश्य भी है। वे नागरिक अधिकारों के हनन की इन घटनाओं को चीन पर दबाव डालने के लिए इस्तेमाल करना चाहते हैं।

चीन पर आंतरिक और बाह्य दबाव किस तरह बढ़ता जा रहा है, यह हाल की हांगकांग और शिनजियांग से संबंधित घटनाओं से समझा जा सकता है। हांगकांग में पिछले छह महीने से लोकतंत्र समर्थक आंदोलन चल रहा है। 75 लाख की आबादी वाले हांगकांग में अब तक लगभग दस लाख लोग सड़कों पर उतर चुके हैं। इस आंदोलन की गंभीरता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि 14 नवम्बर को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने आंदोलनकारियों को गंभीर धमकी दी थी। उन्होंने कहा था कि कुछ लोग हांगकांग को चीन से अलग करने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे लोगों के शरीर मसल दिए जाएंगे और उनकी हड्डियों का चूरा कर दिया जाएगा।

आंदोलनकारियों पर शी का यह आक्षेप अतिरंजित था। वे केवल हांगकांग के शासन को कुछ और लोकतांत्रिक बनाने की ही मांग कर रहे हैं। आंदोलनकारियों की विशाल संख्या के बावजूद हांगकांग की मुख्य प्रशासक कैरी लाम उसे कुछ उपद्रवियों तक सीमित बताती रही हैं। वे अनेक बार यह दावा कर चुकी है कि हांगकांग की विशाल शांत जनसंख्या इस आंदोलन की समर्थक नहीं है। लेकिन 24 नवंबर को हुए जिलापरिषद के चुनाव के परिणाम ने उनके दावे की धज्जियां उड़ा दी है। हांगकांग की जिलापरिषद सबसे निचले स्तर का निकाय है। वह अकेला ऐसा निकाय है, जिसके बहुलांश का सीधे चुनाव होता है।

हांगकांग के 18 जिलों में से जिलापरिषद के 452 सदस्य चुने जाते हैं। इन चुनावों में लगभग 30 लाख लोगों ने मतदान किया था और उन्होंने 389 लोकतंत्र समर्थक पार्षदों को जिताकर जिलापरिषद में भेज दिया। सीधे चुनाव में 90 प्रतिशत लोकतंत्र समर्थक पार्षदों का चुना जाना साधारण बात नहीं है। अब कोई नहीं कह सकता कि आंदोलनकारियों को जनसमर्थन प्राप्त नहीं है। यह आंदोलन मार्च में लाए गए एक विधेयक से शुरू हुआ था। उसका उद्देश्य एक ऐसा कानून बनाना था, जिसके अनुसार मुख्य चीन या ताइवान जैसे इलाकों से हांगकांग आए भगोड़े अपराधियों को मुख्य चीन के न्यायिक अधिकारियों को सौंपा जा सके। हांगकांग में इसका यह अर्थ निकाला गया कि इस कानून के द्वारा चीन समर्थक प्रशासन राजनीतिक विरोधियों और बाहर से आए लोगों को मुख्य चीन के दमनकारी तंत्र को सौंपने का अधिकार पा लेगा। आंदोलन इतना फैला कि लाखों लोग सड़कों पर उतर आए। 9 जून से यह आंदोलन चल रहा है। आंदोलनकारी उग्र होकर हिंसा पर उतारू होते रहे हैं।
इसके बाद 15 जून को विधेयक पर विचार करना स्थगित कर दिया गया। जब उससे भी आंदोलन नहीं थमा तो 9 जुलाई को विधेयक को मृत घोषित कर दिया गया। इसका भी असर न होते देख 23 अक्टूबर को उसे वापस ले लिए जाने की घोषणा कर दी गई। पर आंदोलनकारियों ने उसकी वापसी के अलावा कई और मांगें जोड़ दीं। वे आंदोलन के दौरान गिरμतार किए गए लोगों को छोड़ने, मुकदमे वापस लेने, मुख्य प्रशासक कैरी लाम को बर्खास्त करने और हांगकांग की विधायिका तथा मुख्य प्रशासक का चुनाव प्रत्यक्ष निर्वाचन के आधार पर करवाने की मांग पर अड़े हुए हैं। आंदोलन अभी जारी है। पुलिस और प्रशासन अब तक नरमी दिखाते रहे हैं कि कहीं चीन विरोधी शक्तियां इसे अंतरराष्ट्रीय मुद्दा न बना दें। आंदोलनकारी अमेरिकी हस्तक्षेप की मांग करते रहे हैं।

अमेरिका जानता है कि चीन जब तक त्येनमान चौक जैसी कोई बड़ी दमनकारी कार्रवाई नहीं करता, तब तक हांगकांग के लोकतंत्रवादी आंदोलन को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा नहीं बनाया जा सकता।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प हांगकांग के लोगों के लोकतंत्री अधिकारों की दुहाई देते रहे हैं। वे चीन के नेताओं को यह नसीहत भी देते रहे हैं कि वह आंदोलनकारियों के विरुद्ध दमनात्मक कार्रवाई करने से बचे। पर अभी तक पश्चिमी जगत में इस आंदोलन को लेकर कोई बड़ी प्रतिक्रिया नहीं की गई। हांगकांग के आंदोलनकारी भी जानते हैं कि कोई बाहरी हस्तक्षेप तभी होगा, जब चीनी सेना या प्रशासन उनके आंदोलन को कुचलने के लिए कोई बड़ी कार्रवाई करें। ऐसी कार्रवाई करने के लिए वे प्रशासन को उकसाते रहते हैं। आंदोलन के दौरान बढ़ती जाने वाली हिंसा का यही उद्देश्य है। लेकिन अभी तक हांगकांग प्रशासन या चीन सरकार उनके उकसावे में नहीं आई है। नागरिक अधिकारों की झंडाबरदार संस्थाएं अवश्य हल्ला मचाती रही हैं। पर पश्चिम की शक्तियां प्रत्यक्ष दबाव बनाने की बजाय अप्रत्यक्ष दबाव ही बना रही हैं। चीनी नेता आंदोलनकारियों को चेताते, धमकाते अवश्य रहे हैं। शी जिनपिंग की 14 नवम्बर की धमकी उसी कड़ी में थी। लेकिन वे चाहते हैं कि आंदोलनकारियों को थकाकर आंदोलन को शांत कर दिया जाए।

उन्होंने न आंदोलनकारियों को जेल से रिहा किया है, न मुकदमे वापस लिए हैं और न कैरी लाम से इस्तीफा दिलवाया है। दोनों पक्ष इस प्रतीक्षा में हैं कि पहले कौन लक्ष्मण रेखा पार करता है। संयुक्त राष्ट्र के नागरिक अधिकारों की निगरानी करने वाले संगठन ने कुछ समय पहले अपनी रिपोर्ट में रहस्योद्घाटन किया था कि चीन के शिनजियांग में लगभग दस लाख उइगरों को जेलनुमा शिविरों में रखा हुआ है। चीन ने इस रिपोर्ट का विरोध करते हुए कहा था कि वह उइगर लोगों को केवल सुधार गृहों में भेजता है, जहां वे शिक्षा के अलावा जीविकोपार्जन से संबंधित कौशल भी सीखते हैं। अब अमेरिका के पत्रकारों के महासंघ को चीन सरकार का एक लीक दस्तावेज मिला है। इस दस्तावेज से यह सिद्ध हो जाता है कि चीन किस तरह के शिविरों में उइगरों को डालकर उनकी बुद्धि फेरने और हृदय परिवर्तन में लगा है। शिनजियांग में एक करोड़ से अधिक उइगर आबादी है। वे तुर्क मुसलमान हैं और चीनी जीवनशैली में ढलने और चीन के राजनैतिक तंत्र के प्रति निष्ठावान होने के लिए आसानी से तैयार नहीं होते। अपने नागरिकों पर निगरानी के लिए चीन ने आधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए एक व्यापक और विशाल तंत्र खड़ा कर लिया है। चप्पे-चप्पे पर निगरानी कैमरे लगे हैं, जिनसे सूचना निगरानी केंद्रों तक पहुंचती रहती है।

वहां आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के जरिए कंप्यूटर हर दिन हजारों ऐसे लोगों को चिन्हित करते हैं, जिनकी गतिविधियां उन्हें असामान्य या संदेहास्पद लगती है। शिनजियांग में यह निगरानी व्यवस्था और कड़ी है। वहां लगभग दस लाख उइगरों को चीनी जीवनशैली में कड़ाई से ढालने और चीनी शासन के अनुरूप विचारों में दीक्षित करने के लिए पूरी तरह से नियंत्रित शिविरों में रखा जाता है। लीक हुई सरकारी रिपोर्ट से स्पष्ट है कि चीनी प्रशासन विशेष रूप से उइगर आबादी की युवा पीढ़ी को नियंत्रित करने में लगा है। उइगरों को अंकुश में रखने के लिए चीनी प्रशासन जिस तरह के तरीके अपना रहा है, उससे उनके मजहबी, सामाजिक और नागरिक सभी तरह के अधिकारों का हनन होता है। यह विचित्र बात है कि उइगर मुसलमानों की इस त्रासदी पर कोई मुस्लिम देश आवाज उठाने के लिए तैयार नहीं है। हांगकांग से लगाकर शिनजियांग तक सब मामलों में पश्चिमी देश ही आवाज उठाते दिखते हैं।

इसके पीछे उनका राजनैतिक उद्देश्य भी है। वे नागरिक अधिकारों के हनन की इन घटनाओं को चीन पर दबाव डालने के लिए इस्तेमाल करना चाहते हैं। अमेरिका और चीन के बीच जो व्यापारिक युद्ध चल रहा है, उसका उद्देश्य भी चीन पर अंकुश लगाना ही है। अब तक चीन हांगकांग और शिनजियांग को अपना आंतरिक मामला बताकर पश्चिमी दबाव को अनदेखा करने की कोशिश करता रहा है। पर चीन भी जानता है कि पश्चिमी देश अंतरराष्ट्रीय व्यापार और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रतिष्ठान को नियंत्रित करते हैं। अगर उन्हें चीन को घेरने का मौका मिल गया तो चीन काफी कठिनाई में पड़ जाएगा। इसलिए चीन हांगकांग या शिनजियांग की परिस्थितियों को इतना नहीं बिगड़ने देना चाहता कि पश्चिमी शक्तियों को उसे आर्थिक प्रतिबंधों से दंडित करने का मौका मिल जाए। वह कब तक अपने इस उद्देश्य में सफल रहेगा, कहा नहीं जा सकता।

हांगकांग और शिनजियांग की घटनाएं उसके लिए बाह्य चुनौती ही नहीं, आंतरिक चुनौती भी पैदा कर रही है। उनकी चिंगारी चीन की मुख्य आबादी को भी विद्रोह के लिए उकसा सकती है। हर नियंत्रित व्यवस्था कभी न कभी टूटती ही है। चीन यह बात जानता है। इसलिए वह हांगकांग और शिनजियांग की घटनाओं की खबर अपने नागरिकों तक पहुंचने नहीं देता। उसके समाचार माध्यमों पर सरकारी नियंत्रण है और वे वही समाचार छापते हैं, जिसकी चीनी सरकार इजाजत देती है। फिर भी चीन के नागरिकों को इन दोनों क्षेत्रों की घटनाओं की कुछ न कुछ भनक लगती रहती है। अभी चीन प्रगति के पथ पर है और अपने नागरिकों में राष्ट्रवाद की भावना कूट-कूट कर भर रहा है। इसलिए सब कुछ दबा-ढंका रहता है। पर किसी दिन चीनी लोग इस नियंत्रित शासन से उकताकर हांगकांग जैसे रास्ते पर उतर सकते हैं।

 

 

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