चरखाः एक अद्वितीय उद्योग

 

प्रज्ञा संस्थानमैंने यह जो इतनी परीक्षा ली, इसका कारण यह है कि आपकी प्रशंसा मैंने बहुत सुनी थी और अब मैं जो कुछ कहने जा रहा हूं, वह आलोचना के रूप में नहीं, बल्कि आपकी कोशिशों की कद्र करते हुए, आपकी मदद करने के ख्याल से, कह रहा हूं। मुझे आपसे यह कहना ही चाहिए कि यदि आपका सबसे तेजस्वी बालक ऐसा है, तो मुझे संतोष नहीं हुआ। उसके (संस्कृत शब्दों के) उच्चारण से मुझे संतोष नहीं हुआ और अनुवाद से भी नहीं। उसका अंग्रेजी उच्चारण भी खराब था। संस्कृत हो या अंग्रेजी हमें ऐसे ही शिक्षक रखने चाहिए, जो इन भाषाओं को ठीक-ठीक सिखा सकें। यदि ऐसा शिक्षक उपलब्ध न हो तो विषय सिखाना ही नहीं चाहिए। परंतु हमने तो सत्याग्रह छोड़ दिया है, इसलिए हम जनता को येन-केन रिझाने की दृष्टि से अपने कार्यक्रम बना लेते हैं। हमें अपनी शिक्षा प्रणाली में सत्य का ही अनुसरण करना चाहिए।

अब मैं चरखे के बारे में आप लोगों की जो धारणा है, उसमें किचिंत परिवर्तन करने का सुझाव देना चाहता हूं। आप लोग अनेक उद्योगों की तालीम देते हैं। आपने चरखे को, अपने उन अनेक उद्योगों में से एक के रूप में स्थान दिया है। परंतु चरखा तो एक अद्वितीय उद्योग है। इसलिए उसको अनेक चीजों में से एक मान लेना, न तो शोभाजनक है और न व्यावहारिक। चरखा अन्य उद्योगों का सजातीय उद्योग नहीं है, चरखे का तो अपना अनोखा स्थान है। उद्योग तो आजीविका के निमित्त सिखाए जाते हैं।

यदि चरखा जीविका के लिए सिखाया जा रहा है तो उसका स्थान कनिष्ठ हो जाएगा, जब वह दूसरे धंधों जैसा ही, एक धंधा बन जाता है। और उस हालत में उसकी तालीम न दी जाए तो भी काम चल सकता है। मुझे एक अनाथश्रम में ले जाया गया था। वहां मुझे बताया गया कि वे लोग कताई का काम भी शुरू करने का इरादा रखते हैं। मैंने कहा कि आप से यह न होगा। क्योंकि आप तो अनेक उद्योग सिखाने के इच्छुक हैं। मैं इस मनोवृत्ति को व्यभिचार मानता हूं। हमारे जीवन में से एकनिष्ठता विदा हो गई है।

सच्चा ग्रहा्रचारी तो वही है जो एकनिष्ठ हो और ब्रहा्रनिष्ठ हो। आप यदि चरखे को स्थान देना ही चाहते हैं तो उसका स्थान निराला ही होना चाहिए। हमारी राष्ट्रीय सस्थाओं की विशेषता यह होनी चाहिए कि हम चरखा चलाने को महायज्ञ मानें और जिस प्रकार महायज्ञ की तैयारी करते हैं, उसी तरह इसकी भी तैयारी करें।

चरखे के प्रचार के लिए अंग्रेजी के ज्ञान की आवश्यकता कहां पड़ती है, चरखे को ‘गीता’ से कितना समर्थन मिलता है, बढ़ई और लुहार का काम सीख लेने पर चरखे में कितना सुधार किया जा सकता है-इन सब बातों पर आपको विचार करना चाहिए। क्या आप जानते हैं कि हमारे यहां आज एक भी ऐसी संस्था नहीं है, जिसमें हमारी जरूरत के योग्य तकुए पर्याप्त संख्या में मिल सकते हों। एक भी संस्था में चरखे का अध्ययन शास्त्रयीय पद्धति से नहीं किया जा रहा है। आप यह विशेषता प्राप्त कीजिए। आपका कारीगर यह सोचे कि वह आदर्श चरखा कैसे बना सकता है। उसे आदर्श चरखे के पहिए की परीधि, वनज, रफ्तार, चमरखों की स्थिति इत्यादि बातें पूर्ण रूप से जानने का प्रयत्न करना चाहिए। आपका बढ़ई अच्छे किवाड़ या संदूक बनाने की बात न सोचे; उसे तो अच्छे-से-अच्छे चरखे बनाने का इरादा रखना चाहिए। आपके अध्ययन का केंद्र चरखा ही हो। आप चरखे को धार्मिक और पारमार्थिक दृष्टि से देखें, इसके शास्त्र को जानकर इसका प्रचार करने के लिए तैयार हो जाएं। क्योंकि आप लोग यहां समाज के सेवक बनने की तैयार कर रहे हैं।

(गुजराती से)

नवजीवन, 20.2.1927

 (राष्ट्रीय पाठशाला, खामगांव में 8 फरवरी, 1927 को प्रस्तुत भाषण)

 

 

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