अपनो पर नहीं बाहरियों पर है भाजपा को भरोसा

ओमप्रकाश तिवारी

लोकसभा चुनाव – 2024 में भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस, सपा, बसपा और आम आदमी पार्टी समेत अनेक क्षेत्रीय दलों से आए नेताओं को दिल खोलकर उम्मीदवार बनाया है। जितिन प्रसाद, ,नीरज शेखर, रीतेश पांडे, पंजाब के पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्नी परणीत कौर, केरल के पूर्व सीएम एके एंटनी और पूर्व कांग्रेस नेता कृपा शंकर सिंह आदि नेताओं के कंधों पर इस बार कमल खिलाने की जिम्मेदारी है। जानकारी के मुताबिक़ मार्च तक कांग्रेस समेत दूसरे दलों के अस्सी हजार से ज्यादा नेताओं और कार्यकर्ताओं को भाजपा में शामिल किया गया था। इससे मूल भाजपा कार्यकर्ताओं का असहज होना स्वाभाविक है।

बड़ी तादाद में दूसरे दलों से आये नेताओं को लोकसभा उम्मीदवार बनाये जाने से भाजपा कैडर के नेताओं की निश्चित ही उपेक्षा हुई है। उत्तर प्रदेश के कई लोकसभा सीटों पर पार्टी को अपने ही कार्यकर्ताओं की नाराजगी झेलनी पड़ रही है। तमाम जनाधार वाले भाजपा नेताओं, कार्यकर्ताओं और समर्थकों ने चुनाव के मौके पर उदासीनता की चादर ओढ़ ली है। लखनऊ की पूर्व विधानसभा सीट पर उपचुनाव हो रहा है। इस सीट से ओपी श्रीवास्तव को उम्मीदवार बनाने के बाद भाजपा में विरोध शुरू हो गया है। इस क्षेत्र के कई नेता और कार्यकर्ता घर बैठ गए हैं। इंडिया गठबंधन ने यहां से कांग्रेस पार्षद मुकेश सिंह चौहान को उम्मीदवार बनाया हैं।

बताते चलें कि इस सीट से मुख्य रूप से दिवंगत आशुतोष टंडन के छोटे भाई अमित टंडन, भाजपा नेता राजीव मिश्रा, प्रदेश भाजपा प्रवक्ता हीरो बाजपेई, मनीष शुक्ला, संतोष सिंह और भोजपुरी समाज के नेता प्रभुनाथ राय आदि नेता टिकट मांग रहे थे। इसी तरह प्रतापगढ़ लोकसभा सीट से अपना दाल के नेता और मौजूदा सांसद संगमलाल गुप्ता को उम्मीदवार बनाये जाने से जिले के ज्यादातर भाजपा नेता नाराज होकर खुद को अन्यत्र व्यस्त कर लिया है। इसी तरह भाजपा के समर्थक भी पशोपेश में नजर आ रहे हैं।

इसी तरह राजस्थान में चुरू से लगातार दो बार पार्टी के सांसद रहे राहुल कस्वां का टिकट काटने से भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ पूरी जाट बिरादरी भाजपा से नाराज हो गयी है। इसी तरह गुजरात के राजकोट से मोदी के खास परषोत्तम रुपाला का राजपूतों के खिलाफ अमर्यादित बयान गुजरात के साथ ही राजस्थान और उत्तर प्रदेश तक में भाजपा को बुरी तरह से झुलसा रहा है। गाजियाबाद लोकसभा सीट से जनरल वीके सिंह का टिकट काटने से राजपूत विरादरी की नाराजगी में इजाफा ही हुआ। उत्तर प्रदेश में राजपूत विरादरी ने कई पंचायतें कर भाजपा उम्मीदवारों को हराने का संकल्प लिया।

दो चरणों में कम मतदान के पीछे इसे भी अहम कारण माना जा रहा है। दरअसल, पहले भाजपा के बूथ स्तर के कार्यकर्ता मतदाताओं को बूथ तक पहुंचाते थे। इस बार तो अधिकाँश बूथों पर बूथ इंचार्ज और पन्ना प्रमुख नजर ही नहीं आ रहे हैं। कहा तो यहां तक जा रहा है कि उम्मीदवारों के चयन में बाहरियों को तरजीह देने से संघ परिवार भी नाराज है। भाजपा के रणनीतिकार कम मतदान के लिए गर्मी और लू को जिम्मेदार बता रहे हैं, लेकिन ये बात राजनीतिक विश्लेषकों को यही नहीं लग रही है। माना जा रहा है कि भाजपा कार्यकर्ताओं की नाराजगी का फायदा इंडिया गठबंधन को मिल रहा है। इससे भाजपा रणनीतिकारों में घबराहट नजर आ रही है। शायद यही वजह है कि पीएम मोदी समेत शीर्ष भाजपा नेता विकास के मुद्दे से सीधे हिंदुत्व के मुद्दे पर वापस आ गए हैं। चुनावी रैलियों अब पीएम मोदी अबकी बार चार सौ पार का नारा लगवाना बंद कर दिया है।

दूसरे दलों के नेताओं को पार्टी में शामिल करने और उन्हें उम्मीदवार बनाने पर भाजपा के रणनीतिकारों का मानना है कि इन नेताओं का कुछ न कुछ जनाधार या समर्थन होता ही है, इसका लाभ पार्टी को मिल सकता है। इसके अलावा दूसरी पार्टी के नेताओं को शामिल करना एक तरह से मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने का प्रयास भी माना जाता है। हालांकि अवसरवादियों के पार्टी में ज्यादा तरजीह देने से नुक्सान की संभावनाएं ज्यादा होती हैं। उत्तर प्रदेश में टिकट वितरण से नाराज एक भाजपा नेता का कहना है कि पार्टी अपने मूल उद्देश्य से भटक चुकी है। हम अपने समर्थकों को जवाब नहीं दे पा रहे हैं। लोकसभा चुनाव में इसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ सकता है।

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