संस्कृति की सतरंगी छटा में निखरती सद्भाव की अयोध्या

अयोध्या ऐसी भूमि है, जहां सभी धर्मों के बहुरंगी फूल खिलते हैं। हिंदू, जैन, बौद्ध, सिक्ख सबके सब इसके आंगन में पलते हैं, पुसते हैं, बड़े होते हैं। ऐसी पवित्र भूमि है, जिसने सबको रिझाया। 

जैन धर्म में कुल २४ तीर्थंकर हुए। इनमें से पांच तीर्थंकरों ऋषभदेव, अजितनाथ, अभिनंदन नाथ, सुमित नाथ, अनंतनाथ की जन्मभूमि अयोध्या और छठवें तीर्थंकर धर्मनाथ की जन्मभूमि अयोध्या से लगभग २० किलोमीटर दूर रत्नपुरी (रौनाही) है। मान्यता तो यह भी है कि २४ तीर्थंकरों में से २२ इच्छवाकु वंश के थे। प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव अयोध्या के राज परिवार के बताए जाते हैं। वह बसंत के सन्यासी थे। ऋषभदेव का चिंह्न बैल, अजितनाथ का चिंह्न हाथी, अभिनंदन नाथ का चिंह्न बंदर, सुनितनाथ का चिंह्न चकवा और धर्मनाथ का चिंह्न बज्रदंड है जो अयोध्या के जैन मंदिरों में विद्यमान है। 

रायगंज में ऋषभदेव का जन्मस्थान माना जाता है। यहां पर उनकी ३१ फिट उतुंग प्रतिमा स्थापित है, जो अयोध्या में बड़ी मूर्ति के रूप में मानी जाती है। बक्सरिया टोला बेगमपुरा में अजितनाथ टोंक है। रामकोट में जैन मंदिर बना हुआ है। अयोध्या का राजघाट से भी जैनियों का गहरा रिश्ता रहा है। 

बैद्ध धर्म में भी अयोध्या का विशेष स्थान है। बौद्ध मतावलंबियों में ऐसी मान्यता है कि महात्मा बुद्ध ने यहां पर अपने जीवनकाल के सर्वाधिक चतुर्मास यहीं पर बिताए थे। बौद्ध ग्रंथ दीपवंश में चतुर्मास के बारे में वर्णन किया गया है। बौद्ध की महायान शाखा के आचार्य अश्वघोष का गहरा रिश्ता अयोध्या से रहा है। चीनी यात्री ह्वेनसांग जब अयोध्या आए थे तब उन्होंने अयोध्या की समृद्धि का सुंदर वर्णन किया है। ह्वेनसांग के अनुसार यहां पर कई बौद्ध मठ थे, जिसमें भिक्षु रहते थे। 

सिक्खों की चर्चा के बिना अयोध्या के संस्कृति की सतरंगी छटा अधूरी रह जाएगी। सिक्खों के प्रथम, नवम व दशवें गुरु अयोध्या आए थे। सिक्खों के प्रथम गुरु गुरुनानक देव हरिद्वार से जगन्नाथपुरी यात्रा के समय संवत् १५५७ में ब्रह्मकुंड में धूनी रमाई थी, जहां आज कर ब्रह्मकुंड गुरुद्वारा है। नवम् गुरु तेग बहादुर आसाम से आनंदपुर साहब (पंजाब) जाते समय अयोध्या के ब्रह्मकुंड पर ४८ घंटे तक अखंड तप किया था। उन्होंने अपने चरण-कमल की निशानी चरण पादुका (खड़ाऊं) यहां के सेवक को प्रदान किया था, जिसका दर्शन ब्रह्मकुंड गुरुद्वारे में होता था। अयोध्या के नजरबाग मोहल्ले में दशम गुरुगोविंद सिंह जी आए। इस स्थान पर एक छोटी बीड़ (ग्रुग्रंथ साहब हस्तलिखित प्राप्त हुई थी), जो नानकपुरा फैजाबाद शहर स्थित गुरुद्वारे में संग्रहित है। वर्तमान में नजरबाग में उस स्थल पर गुरुद्वारा स्थित है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Name *