विश्व व्यापार संगठन  और भारतीय कृषि

 

164 सदस्य देशों वाले विश्व व्यापार संगठन का 11वां मंत्रिस्तरीय सम्मेलन अर्जेंटीना के ब्यूनेस आयर्स में 13 दिसंबर 2017 को संपन्न हुआ था |इस सम्मेलन के नतीजों का आकलन करें तो इस विश्व संस्था के भविष्य पर सवालिया निशान लग जाते हैं |

विश्व व्यापार संगठन के आलोचकों ने 1995 में इसके गठन और प्रारंभिक वार्ताओं के दौरान ही इसके भविष्य को लेकर निराशा व्यक्त की थी |उनका तर्क था कि यह संगठन मुख्य रूप से विकसित देशों की विकासशील देशों के उभरते बाजारों पर कब्ज़ा करने की सोची समझी रणनीति है | विकसित तथा विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था तकनीक ,समाज ,शासन प्रणाली खान –पान ,संस्कृतियों में इतनी भिन्नता है कि एक जैसे कानूनों के बल पर इतनी विभिन्नताओं को समायोजित नहीं किया जा सकता |

ब्यूनस आयर्स में भारत और दूसरे विकासशील देशों की खाद्दय सुरक्षा नीति पर भी विकसित अर्थव्यस्थाओं विशेषकर अमेरिका की तिरछी नजर रही है | भारत और उसके साथ खरे दुसरे विकासशील देश चाहते थे कि सार्वजनिक भण्डारण ,न्यूनतम समर्थन मूल्य तथा खाद्य सुरक्षा पर उन संकल्पों का पालन किया जाये जो 2013 में बाली सम्मेलन तथा 2015 में नैरोबी में मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में व्यक्त किये गए थे |बाली सम्मेलन में शामिल किये गए ‘ शांति अनुच्छेद ’ के तहत यह प्रावधान था कि अगली बैठक तक इस अस्थायी अनुच्छेद पर यदि कोई आम राय नहीं बनती और कोई देश तय सीमा से ज्यादा भण्डारण करता या सब्सिडी देता है तो उस पर कोई कार्यवाही नहीं की जा सकेगी | खाद्दय सुरक्षा कानून के पारित हो जाने के बाद भारत की यह सीमा बढ़ सकती है |अफ्रीका महाद्वीप के कुच्छ देश तो इस कृषि समझौते में खाद्यान के अलावा अन्य खाद्य पदर्थों के खरीद की छूट भी चाहते हैं |अमेरिका व अन्य विकसित देश अपने एजेंडे पर अड़े हुए हैं पर भारत खाद्य सुरक्षा अधिनियम को ध्यान रख कर कृषि समझौते का स्थायी समाधान चाहता है | इस मुद्दे पर दूसरे विकासशील देश भारत के साथ सहमत है |

एक अन्य मसला आयात शुल्क को लेकर है जो ‘ स्पेसल सेफगार्ड मैकेनिज्म ‘ कहलाता है |इसमें प्रावधान है कि अगर किसी विकसित देश की सब्सिडी के कारण किसी विकासशील देश में उसके कृषि उत्पादों का आयात बढ़ता है तो विकासशील देश की घरेलू बाजार में कीमतें ज्यादा गिर जाएगी |इससे बचने के लिए वह आयात शुल्क लगा सकता है |यह प्रावधान भी भारत के लिए महत्वपूर्ण है |लेकिन विकसित देश अपने किसानों को इतनी सब्सिडी देते है कि भारत द्वारा अधिकतम आयात शुल्क लगाकर भी मकसद हल नहीं होता |

कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था तथा 40 करोड़ किसानों का हित भारत के लिए सर्वोपरि है |न्यूनतम समर्थन मूल्य तथा खाद्य सुरक्षा के मुद्दे को लेकर कभी भी समझौता नहीं किया जा सकता है |अरुण जेटली,सीतारमण तथा वर्तमान में सुरेश प्रभु जितने भी वाणिज्य मंत्री मंत्रिस्तरीय बैठकों में हिस्सा लेने गये सभी ने भारत के पक्ष को मजबूती से रखा है |

अमेरिका तथा अन्य विकसित देश कृषि समझौतों के स्थायी समाधान पर ध्यान न देकर ई-कामर्स ,निवेश सुगमता ,मत्स्य पालन जैसे नए मुद्दे को वार्ता के एजेंडे में शामिल करवाना चाहते थे |भारत को यह अनुभव है कि आयात शुल्क कम करने से घरेलू उद्दोगों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है |अगर निवेश सुगमता का मुद्दा मान लिया जायेगा तो स्थानीय सरकारें पंगु हो जाएगी |निवेश एक द्विपक्षीय मुद्दा है जिसे विश्व व्यापार संगठन जैसी बहुपक्षीय संस्था तय नहीं कर सकती |

भारत ने इन वार्ताओं में नये मुद्दों का दृढ़ता से विरोध किया क्योंकि नये मुद्दों को वार्ता के लिए आगे बढाने से पहले खाद्य सुरक्षा ,कृषि सब्सिडी ,भंडारण,सरकारी खरीद जैसे मुद्दों पर आम राय के साथ स्थायी समाधान जरुरी है उसके बाद ही नए मुद्दों को हाथ में लिया जाये |

अमेरिका ,यूरोपीय यूनियन के विभिन्न देश तथा आस्ट्रेलिया पैतरेबाजी से अपने यहां किसानों को दी जा रही ज्यादातर सब्सिडी को हरे और नीले बाक्स के अंतर्गत अधिसूचित करावा चूके हैं |भारत और दूसरे विकासशील देशों में कृषि उत्पादन को प्रोत्साहन देनेवाली सब्सिडी अंबर बाक्स के तहत आती है |अगर सरकार किसानों को सस्ती बिजली देती है तो यह अंबर सब्सिडी में आयेगा इससे किसान का लागत मूल्य कम हो जाता है |

भारत के किसानों को ब्लू और ग्रीन बॉक्स सब्सिडी नहीं मिलाती है |उन्हें अपने खर्च पर ही मकान,ट्यूबवेल ,टैक्टर ,मजदूरी ,खाद, बिजली का खर्च वहन करना पड़ता है |इसलिए जीविका के लिए उसे फसल का अच्छा दाम चाहिए |लेकिन विकसित देशों के सस्ते खाद्यान मूल्यों के कारण अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में भारतीय खाद्यान्न का बाजार भाव टिक नहीं पाता |इससे विश्व व्यापार संगठन के वजूद में आने के बाद से भारतीय किसानों की आर्थिक हालात बिगड़ी है |इसका कारण यह है कि अमीर देशों की सरकारें अपने किसानों को पूजी खर्च खुद देती है |जैसे मकान ,ट्यूबवेल, ट्रैक्टर खरीदने पर भी सब्सिडी मिलती है |उसे अपनी जेब से सिर्फ मजदूरी ,खाद ,बिजली पर ही खर्च करना पड़ता है |इसलिए उसका लगत मूल्य कम रहता है |जिसका विपरित असर भारतीय कृषि व्यवस्था और किसानों की आर्थिक हालात पर पड़ता है |

एक दूसरा कारण भारत में मौसम पर आधारित कृषि व्यवस्था है |जोत छोटी होने के कारण भी उपज कम रहती है |भारत की सरकार को अन्य विकासशील देशों के साथ मिलकर कृषि और किसानों के मुद्दे पर मजबूत लामबंदी करनी होगी |

विश्व –व्यापार संगठन में इन मुद्दों से जुझते समय भारत को एक दीर्घकालिक रणनीति पर विचार करना चाहिए |समान विचारधारा व समान परिस्थितियों वाले देशों से इस मुद्दे पर अलग से विचार –विमर्श किया जा सकता है ताकि इस विश्व संस्था से निर्णय की प्रक्रिया सबको साथ ले कर चल सके |

 प्रायः यह देखने में आया है कि विकासशील देशों में यह भावना बढती जा रही है कि विश्व व्यापार संगठन विकसित देशों द्वारा अपनी शर्तों को विकासशील देशों पर थोपने का एक माध्यम बन गया है जो इस संस्था की सफलता पर प्रश्न चिन्ह लगाता है |

अगर विकसित देश ई-कामर्स ,निवेश सुगमता ,मत्स्य पालन जैसे नए मुद्दे चर्चा के लिए लाते हैं तो भारत को भी अपनी आई .टी .तथा अन्य तकनीकी कुशल श्रमबल को विश्व में स्वतंत्र रूप से कार्य करने का मुद्दा उठाना चाहिए |क्या सिर्फ वस्तुएं ही विश्व –व्यापार की श्रेणी में आयेगी ?सेवा क्षेत्र में भारतीय कुशलता तथा श्रमबल को भी क्यों विश्व व्यापार संगठन से नहीं जोड़ा जा सकता |क्यों अमेरिका में उनके वीजा आवेदनों पर रोक लगाने का काम किया जा रहा है ?

   स्पष्ट है कि भारत की विशाल आबादी के लिए खाद्य- सुरक्षा ,भंडारण तथा सार्वजनिक खरीद न केवल गरीबी रेखा से नीचे जीवन जीने वाले नागरिकों ,अपितु किसानों के लिए भी एक बड़ा मुद्दा है जिस पर कोई भी सरकार समझौता नहीं कर सकती |

 

 

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Name *