पत्रकार के रूप में गांधी की यात्रा

महात्मा  गांधी की  पत्रिकाएं: नवजीवन, हरिजन, आज, सौराष्ट्र, भारतीय खादी समाचार, खादी जगत, खादी पत्राकार, नई तालीम, सबकी बोली, राष्ट्रभाषा, हिंदी प्रचारक, नया-हिंद, हरिजन सेवक, नशाबंदी संदेश, जीवन-साहित्य, गांधी-मार्ग, भारतीय-राय, सर्वोदय, गांधी आदि।

 

गांधी के समाज सुधार संबंधी विचारः मद्य-निषेध, अस्पृश्यता निवारण, जाति व्यवस्था निषेध, नारी-कल्याण, राष्ट्रभाषा, स्वदेशी आंदोलन, पूंजीपतियों के लिए संरक्षता का सिद्धांत।

महात्मा  गांधी के राजनैतिक विचारः सत्य, अहिंसा, सत्याग्रह, सर्वोदय, स्वराज्य और ग्राम-स्वराज्य।

पत्र-पत्रिकाएं किसी भी युग की ऐतिहासिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं धर्मिक घटनाओं को न केवल स्वयं अपने में संजोए हुए रहती हैं, बल्कि उनका एक विशिष्ट ढंग से मूल्यांकन और विश्लेषण भी करती हैं। पत्र-पत्रिकाएं समाज का एक ऐसा दर्पण हैं जिनसे समाज का प्रतिबिंब स्पष्ट एवं मुखर होकर स्वयं ही बोलने लगता है।

यद्यपि महात्मा गांधी के भारतीय राजनीति में आगमन से पूर्व भारतीय राजनीति में हिंदी पत्रकारिता स्वतंत्रता आंदोलन के इस महासमर में एक अत्यंत प्रभावकारी अश्त्र के रूप में कार्यरत थी। परन्तु महात्मा गांधी के पदार्पण के साथ ही हिंदी-पत्रकारिता जगत में नव-चेतना एवं उत्साह का संचार हुआ। यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि उनका सानिध्य व आशीर्वाद पाकर पत्रकारिता जगत पुलकित तथा रोमांचित होकर अब अपनी निर्भीक अभिव्यक्ति प्रस्तुत करने लगा था। अधिकांश हिंदी समाचार पत्र-पत्रिकाओं के संपादक एवं स्वामियों का संबंध कांग्रेस के राजनीतिक दल के रूप में नहीं वरन एक ऐसे रूप में था, जिनके नैतिक मूल्य तथा राजनैतिक आकांक्षाएं लगभग एक समान थीं। गांधी जी के द्वारा प्रतिपादित नैतिक मूल्यों जैसे, ‘सत्य, अहिंसा, सत्याग्रह, उपवास, सर्वोदय आदि का तत्कानील समाचार पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित समाचारों, संपादकीय तथा लेखों की अभिव्यक्ति के आधार पर विश्लेषणात्मक वर्णन प्रस्तुत किया गया है। इनके विश्लेषण में कुछ आलोचनाएं भी प्रतिमुखी हैं। क्योंकि आलोचक सिद्धांतो के आधर पर व्यवहार को निश्चित करते हैं। वहीं गांधी जी ने व्यवहार के आधार पर सिद्धांतो को नियत किया है।

समाचार पत्र-पत्रिकाओं में महात्मा गांधी के कार्य-कलापों के साथ-साथ अपने धुन की छवि का प्रतिबिंब स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। स्वतंत्रता संग्राम के इस महायज्ञ में समर्पित व समर्थित अनेक पत्र-पत्रिकाओं के समर्थन के बावजूद भी भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास में हिंदी पत्रकारिता का अमूल्य योगदान स्वर्णाक्षरों में अंकित है। स्वाधीनता की संघर्ष चेतना को लोकाचित में व्यापक स्तर तक अपनी संपूर्ण विचार-भूमिका के साथ पहुंचाने का कार्य हिंदी पत्रकारिता ने बहुत ही सशक्त ढंग से किया। यह कार्य राष्ट्रहित के लिए समर्पित निडर एवं निर्भीक पत्रकारों के अथक प्रयत्नों का परिणाम था। जो जनजागरण के स्वर को व्यापक स्तर पर प्रस्फुटित करने वाली शक्ति रूपा, एक अमोघ अस्त्र के रूप में प्रतिष्ठित हुई। अकबर इलाहाबादी ने लेखनी योजनाओं के लिए यह पंक्ति कही है-

‘खींचो न कमानों को न तलवार निकालो,

जब तोप मुकाबिल हो तो अख़बार निकालो।’

इसी श्रृंखला में महात्मा गांधी भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के निर्णायक सोपान की एक महत्वपूर्ण कड़ी बने और उन्होंने अपने विचारों की अभिव्यक्ति का माध्यम पत्रकारिता को बनाया। किंतु पत्रकारिता जगत में उनका पदार्पण इतना अकस्मात था जिसे महज एक संयोग कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा। वे 1904 ई. में एक निर्भीक पत्रकार के रूप में सक्रिय पत्रकारिता से जुड़े। लेकिन पत्रकारिता जगत में उनके प्रवेश की पृष्ठभूमि लंदन से जुड़ी थी। इस संबंध में श्री कृष्ण देव व्यास ने लिखा- ‘गांधी जी ने 18 सितंबर सन् 1888 ई. को लंदन में सर्वप्रथम एक समाचार-पत्र का अवलोकन किया था, जबकि इससे पूर्व उन्होंने भारत में कोई समाचार-पत्र नहीं पढ़ा था। बस फिर क्या था उनके विचार मंथन की श्रृंखला अनवरत रूप से चलती रही।

उनकी जाग्रत लेखन शक्ति की अभिव्यक्ति का माध्यम सर्वप्रथम लंदन स्थित ‘लंदन वेजिटेरियन सोसाईटी का मुखपत्र ‘वेजिटेरियन’ बना।’ उक्त पत्र में गांधी जी के शाकाहार संबंधी अनेक लेख प्रकाशित हुए। धीरे-धीरे उनका अन्य पत्र-पत्रिकाओं के प्रति आकर्षण बढ़ा। तत्पश्चात वे दादाभाई नौरोजी के संपर्क में आए। दादाभाई नौरोजी ने जब सन् 1890 ई में लंदन से ‘इंडिया’ नामक अंग्रेजी पत्र प्रकाशित किया तो उन्होंने गांधी को जोहांसवर्ग, डरबन और दक्षिण अफ्रीका में अपने समाचार पत्र का प्रतिनिध नियुक्त किया। इसी तारतम्य में उनके विचार, जो बोवर युद्व से संबंध्ति थे, सन् 1899 ई. में ‘टाइम्स आफ इंडिया’ में प्रकाशित हुए थे। लेकिन उन्हें सही अर्थों में एक पत्रकार के रूप में प्रतिष्ठित करने का सौभाग्य दक्षिण अफ्रीका के साप्ताहिक-पत्र ‘इंडियन ओपिनियन’ को जाता है।

साप्ताहिक  पत्र  इंडियन  ओपीनियनः दक्षिण अफ्रीका में प्रथम छापाखाना स्थापित करने का श्रेय बंबई के एक स्कूल मास्टर श्री मदन जीत व्यवहारिक को जाता है। उन्होंने डरबन में सन् 1860 ई. में न केवल ‘इंटरनेशनल प्रिटिंग प्रेस की स्थापना की बल्कि लगभग 14 वर्ष बाद 4 जून 1903 ई. को गांधी जी एवं मनसुख लाल की संपत्ति से ‘इंडियन ओपिनियन’ नामक साप्ताहिक की ज्योति प्रज्ज्वलित की थी। प्रारंभ में उक्त पत्र श्री मनसुखलाल के संपादकत्व में अंग्रेजी, हिंदी, तमिल व गुजराती में छपता था। किंतु ग्राहकों की संख्या में कमी होने के कारण निरंतर घाटे की ओर बढ़ रहा था। परिणाम स्वरुप प्रथम वर्ष में ही तीस हजार रुपए का घाटा होने के कारण उनके साझीदारों के पांव उखड़ गए।

अतः पत्र संचालन में उन्होंने असमर्थता दर्शायी। इस विषम स्थिति से निपटने के लिए गांधी ने पत्र संचालन का उत्तरदायित्व अपने एक मित्र अल्बर्ट वेस्ट को सौंप दिया। लेकिन कुछ समय पश्चात् अल्बर्ट महोदय ने भी पत्र संचालन में अपनी असमर्थता जतायी। क्योंकि समाचार पत्र की आर्थिक दशा को उन्होंने भी दयनीय स्थिति में पाया था। उक्त समस्या के निवारण हेतु गांधी जी रोगाट पहुंचे। उनके मन-मश्तिष्क में पत्र से संबंध्ति भिन्न-भिन्न विचार उठ रहे थे। लेकिन उन्हें उचित लगा कि न्याय एवं समानता के संघर्ष में ‘इंडियन ओपिनियन’ एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसलिए उन्होंने पत्र के संचालन का वीणा खुद उठाया। पत्र के प्रथम वर्ष में उन्होंने दो हजार पौंड खर्च किए। धीरे-धीरे पत्र की आर्थिक स्थिति सुधरने लगी और वह जम गया। अब गांधी जी के संपादकत्व में यह पत्र निकलने लगा।

‘इंडियन ओपिनियन’ में जहां भारतीय संस्कृति, धर्म और नैतिकता के उच्च आदर्शों से परिपूर्ण स्वरों की झंकार गुंजायमान थी, वहीं समय  पर टालस्टाय, थ्योरो एवं रस्किन की विचारधराओं का परिचय मिलता था। रूस-जापान में विजयी जापान के संदर्भ में गांधी जी ने सन् 1905-1907 ई. के अंकों में उनके लेख जापानियों के शौर्य, आत्म सम्मान, उनके साहस से प्रभावित होकर लिखे थे। इसी प्रकार व्यक्तिगत और सामूहिक वीरता पर भी उन्होंने बहुत कुछ लिखा था। ‘इंडिनयन ओपिनियन’ पत्र के माध्यम से उन्होंने जन-जागरण का महामंत्र ‘सत्याग्रह’ चलाया, जो आगे चलकर दिव्य-अस्त्र साबित हुआ। सत्याग्रह आंदोलन के चलते ‘इंडियन ओपिनियन’ मुखपत्र बनकर उभरा था। इस साप्ताहिक पत्र के माध्यम से सत्याग्रह आंदोलन की प्रमुख घटनाओं, उसमें शामिल स्त्री-पुरुषों की बलिदान गाथाओं एवं उनके अजेय नेता के व्यक्तित्व और जीवन-सिद्धांतों का केवल भारत को ही नहीं संसार का परिचय मिलता था।

सत्य के विरुद्ध कोई कुछ कहे, यह बात उन्हें सहन नहीं थी। जब लार्ड कर्जन ने एक बार किसी प्रसंगवश सत्य के विरुद्ध कुछ आपत्तिजनक टीका-टिप्पणी की, तब गांधी जी सत्य की ढाल बनकर खड़े हो गए और उन्होंने ‘इंडियन ओपिनियन’ के माध्यम से सशक्त ढंग से लार्ड कर्जन के मतों का खंडन किया था। इसी प्रकार भारत आने के पश्चात् अपने पुत्रा मणिलाल गांधी को लिखा था- ‘इंडियन ओपिनियन में जो कुछ लिखो वह सत्य होना चाहिए। यदि इसमें कभी तुमसे कोई भूल हो जाय तो उसे कबूल करने में झिझकना नहीं।’ इस दृष्टि से अगर आज की पत्रकारिता को देखा जाय तो वह खुद पर स्वयं ही सवाल खड़ा करने लगी है।

सत्याग्रह  समाचारः गांधी के संपादकत्व में 7 अगस्त 1916 ई. को बंबई से ‘सत्याग्रही’ नामक साप्ताहिक समाचार-पत्र का प्रकाशन शुरू हुआ। उक्त साप्ताहिक पत्र समाचार पत्र संबंधी अधिनियम के अंतर्गत रजिस्टर्ड नहीं था। इस संबंध् में गांधी जी का विचार था कि ‘सत्याग्रही अपनी विचारधारा को केवल ऐसे ही गैर रजिस्ट्रीशुदा पत्रों के माध्यम से स्पष्ट रूप से प्रकट कर सकते थे। क्योंकि ऐसे ही पत्र एक शक्तिशाली शस्त्र का काम देते हैं।’ यह पत्र सविनय अवज्ञा के हथियार के रूप में था। इसके प्रथम अंक में प्रकाशित चेतावनी द्रष्टव्य हैः ‘जब तक ‘रौलट ऐक्ट’ वापस नहीं लिया जाएगा, तब तक इसका प्रकाशन यथावत चलता रहेगा।’ उक्त साप्ताहिक का मूल्य एक आना था, जो प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होता था। इस हस्तलिखित पत्र का कार्य सत्याग्रह आंदोलन संबंधी गांधी जी के विचारों एवं संदेशों को जनता तक पहुंचाना होता था। यह कार्य देश भक्तों द्वारा गुप्त रूप से नहीं किया जाता था। इसलिए इस पत्र की प्रतियां या तो बंट जाती थीं या जब्त कर ली जाती थीं।

इसी तारतम्य में जन-क्षोभ दृढ़ता के साथ प्रतिबिंबित करने के लिए अनेक पत्र अपनी संपूर्ण शक्ति को समाहित कर राष्ट्रीय चेतना को जाग्रत करने के लिए आगे आए। उनमें गांधी जी के असहयोग आंदोलन को व्यापक बनाने के उद्देश्य से कृष्णगोपाल शर्मा ने उरई से ‘उत्साह’ नामक साप्ताहिक पत्र निकाला। उक्त पत्र शीघ्र ही बुंदेलखंड का प्रमुख पत्र बन गया। इसी क्रम में गोरखपुर से 6 अप्रैल 1919 को साप्ताहिक पत्र ‘स्वदेश’ का प्रकाशन हुआ, जो अंग्रेज हुकूमत की आंखों की किरकिरी बना रहा। इस पत्र के मुख्य पृष्ठ पर अंकित निम्नलिखित आदर्श वाक्य होता था-

‘जो भरा नहीं है भावों से बहती जिसमें रसधर नहीं।

वह हृदय नहीं है, पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।

सचित्र मासिक पत्रिका ‘ललिता’ ने सितंबर 1919 ई. के अंक में ‘साहित्य गति’ शीर्षक के अंतर्गत ‘स्वदेश’ नामक उक्त साप्ताहिक पत्र की प्रशंसा में लिखा कि ‘स्वदेश (गोरखपुर) का विजयांक बहुत अच्छा निकला है।’ इन पत्रों ने जन साधरण में एक नई चेतना पैदा कर दी।

बिहार में राष्ट्रीय चेतना जाग्रत करने में साप्ताहिक पत्र ‘देश’ का योगदान अद्वितीय था। उक्त साप्ताहिक पत्र का उदय सन् 1919 ई. में पटना से हुआ। इसके संबंध् में मासिक पत्रिका ‘लक्ष्मी’ ने लिखा था कि ‘देश’ साप्ताहिक-पत्र पटना से निकला है। वार्षिक मूल्य ‘ढाई रुपए’ है। उक्त पत्र समयानुकूल राजनीतिक विषयों की चर्चा करता है। संपादक है, बिहार के कर्तव्य परायण उत्साही नेता बाबू राजेन्द्र प्रसाद।

‘बिजौलिया सत्याग्रह’ के अग्रणी नेता विजय सिंह पथिक को गांधीजी ने बंबई बुलाया। वहां निर्णय हुआ कि राजस्थान में जन-जागृति लाने हेतु क्यों न एक समाचार पत्र की नींव रखी जाय? इस लक्ष्य की पूर्ति हेतु सन् 1919 ई. में पथिक जी वर्धा पधारे। यहां से उनके संपादकत्व में ‘राजस्थान केसरी’ नामक साप्ताहिक पत्र का उदय हुआ। इसी क्रम में पथिक जी ने अजमेर से ‘नवीन राजस्थान’ नामक एक और साप्ताहिक पत्र निकाला। ऐसे ही वीर योद्वाओं की भावनाओं को ‘केसरी’ ने सन् 1919 ई. के अंक में इस प्रकार व्यक्त किया- ‘लोगों में जागरूकता, सुख-शांति और उत्साह पैदा करना, यही पत्रकार की दृष्टि में हमारा प्रथम कर्तव्य है।’

गांधी जी ऐसी ही पवित्र विचारधारा को प्रेरित कर रहे थे। उनकी प्रेरणा से मौन एवं कुंठित जन निर्भय होकर अपनी अभिव्यक्ति प्रस्तुत करने का साहस करने लगे। भयग्रस्त चेहरों पर धीरे-धीरे मुस्कान लौटने लगी। सदैव झुकी रहने वाली आंखें अब सामने देखने का साहस करने लगीं। इस प्रकार गांधी जी ने राजनीतिक जागृति के विकास में निर्भीकता के साथ ब्रिटिश सरकार की नीतियों एवं कार्याें की भर्त्सना एवं कटु आलोचना अपने लेखों एवं भाषणों में समय पर प्रस्तुत की। ताकि सोई हुई भारतीय जीनवशक्ति अपनी संपूर्ण प्रचंडता के साथ जाग उठे।

नवजीवनः महात्मा गांधी ने गुजरात के राष्ट्रीय जागरण के इस महायज्ञ में अपना सर्वस्व होम करने का निमंत्राण 7 अक्टूबर 1919 ई. को गुजराती भाषा में ‘नवजीवन’ नामक साप्ताहिक पत्रा प्रकाशित कर उसके माध्यम से देना प्रारंभ किया था। उन्होंने उक्त पत्रा में अपने विचारों को सरल, स्पष्ट एवं आडंबर रहित भाषा में प्रस्तुत कर वहां पर बिखरी हुई जन शक्ति को न केवल संगठित किया बल्कि उसे राष्ट्रीय विचारधारा के प्रवाह से भी जोड़ दिया था।

गांधी जी के संपादकत्व में एक आना मूल्य के इस साप्ताहिक पत्र की ग्राहक संख्या देखते ही 1200 तक जा पहुंची। गांधी जी को विश्वास था कि यदि उनके पास मुद्रण के पर्याप्त साधन उपलब्ध् हों तो पत्र के ग्राहकों की संख्या बीस हजार तक पहुंच सकती थी। जनता इस पत्र के माध्यम से अपने अधिकारों के प्रति सचेत हो गई थी। गांधी जी की लोकप्रियता दिनोंदिन इन पत्रों के माध्यम से बढ़ रही थी। ‘नवजीवन’ साप्ताहिक पत्र के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए उन्होंने अपने पाठकों यही बताया था कि उन्हें इस पत्र का संपादन सितंबर 1919 में शंकर लाल बैंकर और इंदुलाल याज्ञिक ने सौंपा था। उस समय उन्होंने शंकर लाल बैंकर तथा याज्ञिक से कहा था कि ‘नवजीवन’ से प्राप्त होने वाली आय का उपयोग सार्वजनिक हित के लिए ही किया जाएगा।

यंग  इंडियाः ‘नवजीवन’ गुजराती साप्ताहिक पत्र के उदय होने के एक दिन बाद 8 अक्टूबर सन् 1919 ई. को अहमदाबाद से गांधी जी के संपादकत्व में ‘यंग इंडिया’ साप्ताहिक पत्र के रूप में निकलने लगा। इससे पूर्व यह पत्र बंबई से अर्ध-साप्ताहिक पत्र के रूप में प्रकाशित होता था। ‘यंग इंडिया’ के प्रथम अंक में गांधी जी ने पत्रकारिता से संबंधित अपने मूलभूत सिद्धांतों को प्रस्तुत करते समय यह स्वीकार किया था कि उनके लिए अंग्रेजी भाषा के पत्र का संपादन करना कोई गौरव की बात या प्रसन्नता को विषय नहीं था। बल्कि उन्होंने इस पत्र का संपादन मात्र इसलिए किया था ताकि वे लोग जो गुजराती अथवा हिंदी भाषा से अनभिज्ञ थे, इस पत्र के माध्यम से राष्ट्रीय विचारधारा से जुड़ सकें। आरंभ में एक आना मात्रा मूल्य के इस पत्र की ग्राहक संख्या 1200 से अधिक थी। लेकिन जैसे ही असहयोग आंदोलन की चिंगारी फूटी वैसे ही इस पत्र के ग्राहकों की संख्या में बृद्वि होने लगी। गांधी जी के गिरफ्तारी तक इस पत्र की चालीस हजार प्रतियां प्रति सप्ताह बिकने लगीं थीं।

सन् 1922 ई. में उनके ऊपर एक ऐतिहासिक मुकदमा चला। उनके ऊपर लगाए गए अभियोग का आधार साप्ताहिक ‘यंग इंडिया’ के 15 सितंबर और 26 सितंबर सन 1921 ई. तथा 23 फरवरी सन् 1922 ई. के अंकों में प्रकाशित तीन लेख थे। पहला था- ‘राजभक्ति से भ्रष्ट करने का आरोप’, दूसरा ‘एक उलझन और उसका हल’ और अंतिम था ‘गर्जन तर्जन’। ब्रिटिश सरकार इन लेखों को आपत्ति जनक मानकर गांधी जी और शंकर लाल बैंकर को गिरफ्तार कर लिया।

गांधी जी ने ‘यंग इंडिया’ के माध्यम से जन-जागृति के द्वारा देशव्यापी आंदोलन का सूत्रपात किया और ब्रिटिश सरकार को अनेक चुनौती भरे पत्र लिखे। वहीं उन्होंने सामाजिक और धर्मिक परिप्रेक्ष्य में सत्य, अहिंसा, स्वदेशी, संरक्षता, गौरक्षा, खादी, श्रम कल्याण तथा हिंदू-मुस्लिम एकता जैसे रचनात्मक प्रसंगों पर उनकी लेखनी निरंतर चलती रही। जन उपयोगिता की दृष्टि से उन्होंने ऐसे विषयों पर भी प्रकाश डाला जो मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से उपयोगी अवश्य थे किंतु ‘समाचार’ नहीं थे।

आजः  काशी नगरी से कृष्ण जन्माष्टमी के दिन शिव प्रसाद गुप्त ने 5 सितंबर 1920 ई. को दैनिक पत्र ‘आज’ का प्रकाशन प्रारंभ किया। हिंदी के दैनिक पत्रों में ‘भारत मित्र’ के बाद काशी में ‘आज’ दैनिक ने काफी ख्याति अर्जित की। बाबूराव विष्णुराव पराड़कर ने ‘आज’ के प्रथम अंक में लिखा था कि ‘हमारा उद्देश्य अपने देश के लिए सब प्रकार के स्वातंत्रय का उपार्जन है। हम हर बात में स्वतंत्र होना चाहते हैं। हमारा लक्ष्य यह है कि हम अपने देश का गौरव बढ़ाएं, अपने देशवासियों में स्वाभिमान का संचार करें।’

गोरखपुर में हुए भयंकर अग्निकांड और हत्याओं का चौरी-चौरा कांड के रूप में भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का अविस्मरणीय पृष्ठ बन गया। उसके संदर्भ में दैनिक ‘आज’ ने जो अभिमत प्रकट किया था, वह गांधी जी की अहिंसा की नीति के अनुरूप था। पत्र ने लिखाः ‘जिस आंदोलन में देश लगा हुआ है उसकी एक शर्त को हमने मूल धर्म मान रखा है। तो हिंसा करना, उत्पात मचाना मक्कारी और दगाबाजी है।’ इस पत्र ने गांधी जी के विचारों को जनता के बीच पहुंचाने में काफी मदद की। इससे उनके साथ एक बड़े हुजूम को जुड़ने में मदद मिली।

हिंदी नवजीवनः गुजरात में हिंदी पत्रकारिता के विकास में गांधी का महत्वपूर्ण योगदान है। हरिभाऊ उपाध्याय, जो कुछ वर्षों तक ‘हिंदी नवजीवन’ नामक साप्ताहिक पत्र के संपादन कार्य में गांधी जी के सहयोगी रहे थे, उन्होंने प्रसंगवश इस संदर्भ में लिखा कि जून 1921 ई. में वे उक्त पत्र के प्रकाशन के संदर्भ में बंबई गये थे। तब उन्हें गांधी जी और जमना लाल बजाज के द्वारा ही पत्र के सफल होने की आशा बंधी थी। 15 अगस्त 1921 ई. को ‘हिंदी’ नवजीवन गांधी जी के संपादकत्व में निकला। गांधी जी का चिंतन, देश और समाज के सर्वांगीण विकास का चिंतन था। अतः उन्होंने इस विचार से रचनात्मक कार्यक्रमों जैसे वर्ण, धर्म, श्रम-धर्म, मद्य निषेध्, अस्पृष्यता निवारण, दहेज प्रथा, बाल विवाह, संतति विग्रह, स्त्रियों के लिए समानता का अधिकार इत्यादि तथा राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में सत्य, अहिंसा, स्वदेशी, स्वराज्य, सत्याग्रह एवं हिंदू-मुस्लिम एकता तथा वायसराय को चुनौती भरे पत्र लिखकर जनजागरण की स्वर लहरी छेड़ी थी। किंतु गोलमेज सम्मेलन की असफलता के पश्चात् न केवल उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया बल्कि 1932 ई. में ‘यंग इंडिया’, ‘नवजीवन’, ‘हिंदी नवजीवन’ पर प्रतिबंध लगा दिया गया। गांधीजी का पत्रकारिता का जीवन बहुत ही संघर्षशील रहा।

हिंदी  प्रचारकः  उस समय दक्षिण भारत में हिंदी का प्रचार-प्रसार अत्यंत कठिन और दुष्कर कार्य था। किंतु गांधी जी की प्रेरणा से प्रेरित होकर रिषिकेश शर्मा तैलंग ने जनवरी 1922 ई. में ‘हिंदी प्रचारक’ नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रचार कार्यस्थल त्रिपल्लीकेन मद्रास से प्रारंभ किया। कुछ समय बाद यह पाक्षिक-पत्रिका के रूप में उभरी। कालांतर में दक्षिण भारत की ‘हिंदी प्रचार’ सबका मुख पत्र बन गया। सन् 1926 ई. तक रिषिकेश शर्मा तैलंग समर्पित भाव से इस पत्रिका से जुड़े रहे। 1927-1928 ई. तक पंडित देवव्रत विद्यार्थी ने इसका संपादन किया अब यह पत्रिका पाक्षिक से मासिक बन चुकी थी।

त्याग-भूमिः  सन् 1928 ई. में अजमेर की ध्रा पर ‘त्याग-भूमि’ का प्रकाशन एक युगांतकारी घटना थी। श्री हरिभाऊ उपाध्याय जैसे साहित्यिक विद्वान जिसके संपादक हों और गांध्ी जी का जिसे आशीर्वाद प्राप्त हो उस पत्रा में निर्भीक विचारों का प्रकाशन क्यों न हो। त्याग भूमि का आदर्श वाक्य-

‘आत्म समर्पण होत जहं, जहां शुभ्र बलिदान।

मर मिटने को साथ जहं, तहं हैं श्री भगवान।’

और नेति-नेति शीर्षक कविता से प्रथमांक का प्रारंभ किया गया था। जिसमें ये पंक्तियां भी थीं-

‘हां, अंतस्तल का अंतिम कण, तक मातृ चरण अर्पण कर दे।

वह अमर भिखारी द्वार खड़ा है, उसकी भी झोली भर दे।’

वस्तुतः ‘त्याग भूमि’ मासिक हो या साप्ताहिक रूप में, अपने उद्देश्य को अक्षरशः निभाती रही।

हरिजन  सेवकः  गांधी जी के संरक्षण एवं प्रेरणा से 23 फरवरी सन् 1932 ई. को ‘हरिजन सेवक’ नामक साप्ताहिक पत्र वियोगी हरि के संपादकत्व में दिल्ली से प्रकाशित हुआ। बाद में किशोर लाल मशरुवाला ने इसका संपादन किया। ‘हरिजन सेवक’ 1942 ई. के आंदोलन के दौरान बंद हो गया था। प्रतिबंध हटने के पश्चात पुनः श्री प्यारे लाल के संपादकत्व में निकलना प्रारंभ हुआ। गांधी जी के देहावसान पर कुछ समय के लिए इसका प्रकाशन स्थगित रहा। इस पत्र का मुख्य उद्देश्य अस्पृश्यता-उन्मूलन करना था। प्रति आना मूल्य के इस पत्र के प्रथमांक में गांधी जी, बिड़ला जी तथा स्वामी सत्यदेव के लेखों के साथ-साथ मैथिलीशरण गुप्त की एक छोटी कविता भी प्रकाशित हुई थी।

‘हरिजन सेवक’ में हरिजन सेवक का धर्म, शिमला में हरिजन सेवा, गरीब गाय, प्रौढ़-शिक्षण, भंगी बस्ती में क्यों? पशु पालन, खादी क्रांति, चरखा इत्यादि शीर्षकों में लिखे गए उनके हिंदी कृतित्व पर प्रकाश डालते थे। गांधीजी के आह्वान पर 1 मई 1946 को यह पत्रा उर्दू में छपने लगा था। इसकी मात्र 250 प्रतियां छपती थीं। कालांतर में गांधी जी के विचारों की सारगर्भित अभिव्यक्ति का यह पत्र सन 1956 तक पहुंचते-पहुंचते अतीत बन गया।

हरिजनः  गांधी जी रचनात्मक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। तब अंग्रेज सरकार ने उनके द्वारा संपादित समाचार पत्र पर प्रतिबंध लगा दिया तो गांधी जी बिना हताश हुए अस्पृश्यता निवारण जैसे रचनात्मक कार्य में जुट गए। उन्होंने इस कार्य हेतु ‘हरिजन’ नामक एक साप्ताहिक पत्र का अंग्रेजी संस्करण 19 पफरवरी सन् 1935 ई. को आर.वी.शास्त्राी के संपादकत्व में आर्यभट्ट प्रेस पूना से प्रकाशित किया। एक आना का यह पत्र ‘हरिजन सेवा संघ’ का मुख पत्र था। गांधी जी का इसका अंग्रेजी संस्करण निकालने के पीछे उद्देश्य था दक्षिण भारत और बंगाल की जनता के बीच अपने विचारों को सहजता के साथ समझाना।

समताः  हिंदी पत्रकारिता के इतिहास में ‘हरिजन’ के बाद दूसरा दीर्घजीवी हरिजन पत्र जून 1934 ई. को अल्मोड़ा से प्रकाशित ‘समता’ नामक साप्ताहिक पत्र था। महात्मा गांधी ने अल्मोड़ा प्रवास के दौरान उनकी प्रेरणा से दलितों, हरिजनों और अछूतों के पहाड़ में ‘दूसरे अंबेडकर’ कहे जाने वाले मुंशी हरिप्रसाद टम्टा के विशेष प्रयासों का ही परिणाम था। उक्त साप्ताहिक पत्र का संपादन लक्ष्मी देवी ने कुशलता पूर्वक किया। एक संपादिका के रूप में लक्ष्मी देवी ने दलित एवं पिछड़े वर्ग की सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक समस्याओं से उबारा। इसी प्रकार उन्होंने नारी शिक्षा एवं उनकी राजनीतिक चेतना को जाग्रत करने के लिए ‘समता’ में अनेक संपादकीय लेख लिखे थे।

ग्रामोद्योग  पत्रिकाः  सन् 1937 ई. में अखिल भारतीय ग्रामोद्योग संघ मगनवाड़ी वर्ध के तत्वावधन में ‘ग्रामोद्योग’ नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। इस पत्रिका के संपादक जे.सी.कुमारप्पा थे। पत्रिका में मगनवाड़ी में किए जाने वाले प्रयोगों की रिपोर्ट रहती थी।

नई तालीमः  सन् 1936 में गांधी जी प्रेरणा से प्रेरित होकर हिंदुस्तानी तालीमी संघ वर्धा की ओर से ‘नई तालीम’ नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। इस पत्रिका की संपादिका श्रीमति आशा देवी थीं। यह पत्रिका सेवाग्राम तालीमी संघ का मुखपत्र थी। इसमें बुनियादी शिक्षा पद्वति पर लेख प्रकाशित होते थे। गांधी जी ने शिक्षा जगत को बुनियादी शिक्षा के रूप में एक नवीन विचार प्रदान किया।

सबकी बोलीः  सन् 1936 ई. में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्ध के तत्वावधन में ‘सबकी बोली’ नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। गांधी जी के विचारों को अपनी दृष्टि से संपादित करने वाले इस पत्रिका के संपादक काका कालेलकर और श्रीमन्नारायण अग्रवाल थे।

सर्वोदयः  गांधी जी की सर्वोदयी कल्पना को मूर्त रूप देने के लिए सन् 1936 ई. में गांधी सेवा संघ वर्धा ने ‘सर्वोदय’ नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया। यह पत्रिका काका कालेलकर और दादा धर्माधिकारी के संपादकत्व में निकली। भारत छोड़ो आंदोलन के प्रारंभ तक इसका प्रकाशन निरंतर होता रहा। इसमें छोटी-छोटी टिप्पणियां और संपादकीय के अतिरिक्त सर्वोदय विचार के विभिन्न पहलू सरल और सुपाठ्य भाषा में लिखे जाते थे। इसके लेख प्रायः गांधी विचार पर केंद्रित होते थे।

जीवन साहित्यः  गांधी जी के विचारों एवं उनकी जन-जागरण व कल्याणकारी भावनाओं से परिपूर्ण ‘जीवन-साहित्य’ नामक मासिक पत्रिका 1940 ई. में हरिभाऊ उपाध्याय, यशपाल जैन, विट्ठल दास मोदी और महावीर प्रसाद के संपादन में सस्ता साहित्य मंडल नई दिल्ली से प्रकाशित हुई। यह अहिंसक नवरचना का मासिक पत्र प्रारंभ में उच्च कोटि का साहित्यिक पत्र था।

राष्ट्र भाषाः  हिंदी-हिंदुस्तानी के प्रचार के लिए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा 15 जून 1941 ई. में ‘राष्ट्रभाषा’ नामक मासिक पत्र का प्रकाशन प्रारंभ किया।

खादी  जगतः  15 जुलाई 1941 ई. को सेवाग्राम वर्धा के तत्वावधन में आशा देवी और श्रीकृष्णदास गांधी के संपादकत्व में ‘खादी-जगत्’ नामक मासिक पत्र का प्राकाशन प्रारंभ हुआ। उक्त पत्र में खादी से संबंधित लेख छपे रहते थे। वस्तुतः खादी के अर्थशास्त्रा पर आधरित तथा अखिल भारतीय चरखा संघ के परीक्षणों के आधार पर तैयार किए गए लेखादि का समावेश रहता था। इसमें खादी परीक्षा की सूचना एवं उसके परिणाम भी प्राकशित होते थे।

संसारः  सन् 1943 ई. में संसार प्रेस काशी से बाबूराव विष्णुराव पराड़कर द्वारा स्थापित ‘संसार’ नामक साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। इसका संपादन कमलापति त्रिपाठी और काशीनाथ उपाध्याय ‘भ्रमर’ के हाथों में था। यह पत्र कांग्रेसी नीतियों का समर्थक था। सम-सामयिक समस्याओं पर लेख एवं टिप्पणियां प्रभावपूर्ण होती थीं।

नया हिंदः  ‘हिंदी-हिंदुस्तानी’ भाषा से संबंध्ति गांधी जी के विचारों को प्रचारित एवं प्रसारित करने के उद्देश्य से जुलाई 1946 ई. को पंडित सुंदरलाल ने प्रयाग से ‘नया हिंद’ नामक पत्र का प्रकाशन प्रारंभ किया था। यह दो लिपियों में छपता था और अरबी, फारसी भाषा से प्रभावित था।

गांधी  मार्गः  गांधी स्मारक निधि बंबई के तत्वावधन में गांधीवाादी विचारधारा से ओतप्रोत ‘गांधी मार्ग’ नाम त्रौमासिक पत्रिका हिंदी और अंग्रेजी दो भाषाओं में निकलती थी। कालांतर में यह पत्रिका गांधी शांति प्रतिष्ठान नई दिल्ली से द्वैमासिक पत्रिका के रूप में प्रकाशित होने लगी। आज के संदर्भ में गांधी के विचारों की प्रासंगिकता का परिचय ‘गांधी-मार्ग’ के संपादकीय एवं उच्चस्तरीय लेखों में सहज ही मिल जाता है। वर्तमान में यह पत्र गांधी जी के आदर्शों, सिद्धांतों व उनके विचारों का प्रचार व विश्लेषण करने, जनता तक उनको पहुंचाने का कार्य कर रहा है।

अतः हम कह सकते हैं कि गांधी की पत्रकारिता की शुरुआत से लेकर अंतिम समय तक संघर्षों का लंबा इतिहास रहा है। कभी गांधी पत्रकारिता पर भारी दिखते हैं तो कभी पत्रकारिता गांधी पर। यह शह-मात का खेल गांधी के जीवन पर्यंत बना रहा।

संदर्भ  ग्रंथः  

  • हिंदी पत्राकारिता और गांधी;शोध् प्रबंध-संदीप कुमार, इतिहास विभाग, मेरठ विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश
  • नवभारत टाइम्स ;दैनिक- राष्ट्रीय आंदोलन और हिंदी दैनिक, 19 मार्च 1964
  • आंचलिक पत्रकार ;पत्रकारिता पर केन्द्रीत शोध पत्रिका, सितंबर 1965
  • दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह का इतिहास- महात्मा गांधी
  • चंचल गीण्डाराम वर्माः हिंदी की पत्र-पत्रिकाएं- विनय अखिल
  • इंडियन ओपीनियन ;साप्ताहिक पत्र, 1905
  • हरिजन सेवक- 26 सतिंबर 1936, 7 अप्रैल 1946
  • महात्मा गांधी- रोमा रोलां
  • आज ;दैनिक समाचार पत्र,- 18 अगस्त 1967
  • यंग इंडिया ;अंग्रेजी साप्ताहिक,- 3 अप्रैल 1924

(‘प्रज्ञा संस्थान’ द्वारा प्रकाशित ‘गांधी की पत्रकारिता’ पुस्तक से साभार)

 

1 thought on “पत्रकार के रूप में गांधी की यात्रा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Name *