योगी सरकार संस्कृति के रथ पर सवार है। प्रयाग में कुंभ से पहले चार वैचारिक कुंभा का आयोजन संघ परिवार करने जा रहा है। काशी में पर्यावरण कुंभ, इलाहाबाद में सद्भाव कुंभ, लखनऊ में युवा कुंभ, वृंदावन में मातृशक्ति कुंभ व अयोध्या में सामरसता कुंभ की तैयारी बैठके शुर
बहुसंख्यकों की आस्था का जनसमुद्र संगम की रेती पर प्रयागराज में जनवरी माह में उमड़ेगा, लेकिन उसके पहले ही कुंभजनित आस्था और विश्वास से लोगों को स्नान कराने की कोशिशे शुरू हो गई है। कुंभ सिर्फ धार्मिक स्नान और पूजा-पाठ ही नहीं है बल्कि उसके पीछे धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक सौंदर्य भी छिपा हुआ है।
इस सौंदर्य के विराट स्वरूप से लोगों को परिचित कराने के लिए योगी सरकार कुंभ के पहले ही पांच वैचारिक कुंभ आयोजित करेगी। प्रदेश के प्रमुख पांच शहरों में ऐसे वैचारिक कुंभ का आयोजन होगा। इन पांच शहरों में चार ऐसे है जो कि भाजपा के सांस्कृतिक सरोकारों और उसके प्रतीकों से बहुत गहरे जुड़े हुए है। इस दिशा में आयोजन वाले शहरों में इसकी तैयारी बैठके भी चल रही है। संस्कृति के रथ पर सवार योगी सरकार सत्ता में आने के दिन से ही सांस्कृतिक सरोकारों के बहाने सधे सियासी तीर चला रही है। लगता है कि उसी दिशा में कुंभ के पहले वैचरिक कुंभों का आयोजन भी है।
जनवरी की 30 तारीख को प्रयाग में “सर्वसमावेशी हिन्दू चिंतन” नाम से कुंभ का आयोजन होगा। 25 नवंबर को काशी में पर्यावरण कुंभ, 9 दिसंबर को वृंदावन में मातृशक्ति कुंभ, के पहले काशी, प्रयाग, वृंदावन, अयोध्या और लखनऊ में वैचारिक कुंभ होगा। काशी में पर्यावरण कुंभ, इलाहाबाद में सद्भाव कुंभ, लखनऊ में युवा कुंभ, वृंदावन में मातृशक्ति कुंभ तथा सबसे आखिरी में १६ दिसंबर को 16 दिसंबर को अयोध्या में सामरसता कुंभ होगा। प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 23 दिसंबर को युवा कुंभ का आयोजन होगा। महत्वपूर्ण यह भी है कि ये सभी पांचों कुंभ भारतीय जनता पार्टी के बैनर तले नहीं होंगे।
संघ परिवार ने वैचारिक कुंभों के सफल आयोजन के लिए सधी रणनीति बनाई है। केंद्रीय सह संगठन मंत्री शिव प्रकाश, सूबे के डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ओएसडी संजीव सिंह को इस बाबत जिम्मेदारी सौपी गई है। वैचारिक कुंभों में कुंभ की पौराणिकता और प्राचीनता को आधुनिक संदर्भो में व्याख्याति किया जाएगा।
सूबे के सभी पांच शहरों में होने वाले वैचरिक कुंभ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रखर विचारकों के शामिल होने की संभावनाए भी जताई जा रही है। गौरतलब है कि गत दो अगस्त को डा. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय में सामरस्य कुंभ के आयोजन को लेकर तैयारी बैठक हुई। बैठक मे सूबे के समाज कल्याण मंत्री रमापति शास्त्री ने कहा कि ‘सामरसता कुंभ के आयोजन का उद्देश्य यह है कि कुभ स्नान में जाने वाले भक्तों को कुंभ के सांस्कृतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक पक्ष से ठीक से परिचित कराना है।
स्नान और पूजा पाठ करके तीर्थयात्री वापस आ जाते है, जरूरी है कि लोग कुंभ के विराट अर्थ को भी ग्रहण करे।’ बैठक में निर्णय हुआ कि अयोध्या का जो विविध सांस्कृतिक सौंदर्य है, उन सभी मतों के प्रतिनिधियों को सामरस्य कुंभ मे आमंत्रित किया जाएगा। धर्मनगरी में जैन, बौद्ध और सिक्ख मतों की भी गहरी जड़े है। इन सभी मतों से जुड़े अनुयायियों को सामरसता कुंभ में शामिल होने के आसार है। इसके साथ ही अयोध्या में तकरीबन डेढ़ सौ मंदिर ऐसे है जो विभिन्न जातियों और राजा रजवाड़ों के है। इन स्थानों के प्रतिनिधियों की भी भागेदारी रहेगी। गौरतलब है कि अयोध्या की आध्यात्मिक उर्वर भूमि पर कौन नहीं रींझा।
अयोध्या के आंगन से हर किसी का रिश्ता रहा। महात्मा बुद्ध यहां पर कई चातुर्मास किया। जैन धर्म के प्रथम तीर्थांकर ऋषभदेव अयोध्या के ही थे। उनके अलावा भी चार तीर्थांकरों की जन्मभूमि अयोध्या रही है। सिक्ख धर्म के गुरू नानक देव ने अयोध्या में साधना की धूनी रमाई। उस स्थान पर गुरूद्वारा ब्रह्मकुंड है, जहां के प्रति सिक्ख धर्म के अनुयायिओं की गहरी आस्था है। अयोध्या का एक सौंदर्य और है। अयोध्या में जो विभिन्न मत वाले है, उन सभी को एक सूत्र में पिरोने का उद्देश्य भी इस समरसता कुंभ के आयोजन में दिखाई पड़ रहा है। सामरस्य कुंभ के आयोजन से जुड़े भाजपा के जिलाध्यक्ष अवधेश पांडेय ‘बादल ’ ने कहा कि ‘१६ दिसंबर को समरसता कुंभ का आयोजन होगा जिसमें पूरे देश से तकरीबन ढाई हजार लोगों के शामिल होने के आसार है। हिंदू, जैन, बौद्ध, सिक्ख सभी क्षेत्रों के लोगों को आमंत्रित किया जा रहा है।’
गौरतलब है कि कुंभ के शाही स्नान की तिथियों की सीएम द्वारा घोषणा के सहारे भी भाजपा ने सांस्कृतिक एजेंडा को धार देने की तैयारी की है। भाजपाई लोगों को समझा रहे है कि सीएम के शाही स्नान की घोषणा सांस्कृतिक सरोकारों पर भाजपा की प्रतिबद्धता का प्रमाण है। बीजेपी लोगों को यह भी बता रही है कि यह पहला अवसर है जबकि कुंभ मेले के महत्व का प्रचार विदेशों तक में कराया जा रहा है। अयोध्या की दीवाली, मथुरा की होली और काशी की देव दीपावली और इनका विकास, नेपाल के जनकपुर से अयोध्या तक बस यात्रा, अयोध्या से जनकपुर तक की सडक़, राम वन गमन निर्माण पर कार्य, अयोध्या की सांस्कृतिक परिधि मानी जाने वाली ८४ कोसी परिक्रमा को टू-लेन बनाने की पहल, कुंभ मेले की तैयारी, गंगा को अविरल और निर्मल बनाने का संकल्प, गो रक्षा पर ध्यान जैसे काम लोगों को सिलसिलेवार बताए जा रहे है। पहली बार ऐसा हुआ कि अयोध्या में आने वाले कांवरियों पर छह अगस्त को हेलीकाप्टर से पुष्पवर्षा की गई।
फैजाबाद के सांसद लल्लू सिंह ने अयोध्या में होने वाले समरसता कुंभ पर कहा कि ‘ मर्यादा पुरुषोत्तम राम समरसता के सबसे बड़े प्रतीक है। तपस्वी भेष में उन्होंने अपने पांवों से देश को नाप लिया। शबरी के जूठे बेर खाए, जटायू को गले लगाया, रीछ-वानर से मित्रता की, वनवासियों में स्वाभिमान का भाव पैदा की। राम से बड़ा समरसता का प्रतीक कौन हो सकता है। देश में मोदी और प्रदेश में योगी उसी राह पर चल रहे है जिस पर चलकर राम ने समरसता का भाव जगाया था।’
सांस्कृतिक सरोकारो के मुद्दों पर हुए वादों को इरादों में बदलने की बेताबी
भगवाई रणनीतिकार ही नहीं खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी शायद यह अच्छी तरह से महसूस करते है कि उन्हें इतने बड़े जनादेश के साथ सत्ता सौपी गई है तो उसके पीछे कहीं न कही सांस्कृतिक सरोकारों से जनता का गहरा जुड़ाव भी रहा है। बहुसंख्यकों के सांस्कृतिक सरोकारों और प्रतीकों से पिछली सरकारों ने जो दूरी बना रखी थी, वह स्थतियां बहुसंख्यक जनमानस को दशकों से उद्वेलित करती रही है, असहज करती रही है। उसी उद्वेलन और उसी असहजता को ध्यान में रखकर योगी सरकार कोई ऐसा अवसर हाथ से नहीं जाने दे रही है, जब वह अपने को सांस्कृतिक सरोकारों से प्रतिबद्धता का इजहार न करती हो। बहुसंख्यकों की ‘सांस्कृतिक-भूख’ को योगी सरकार शांत करना चाहती है। विधान सभा चुनाव में भाजपा ने संकल्प पत्र में वादा किया था कि मथुरा, वृंदावन, अयोध्या, प्रयाग, विंध्याचल, नैमिष्रायण, कुशीनगर से लेकर काशी तक सांस्कृतिक पयर्टन को बढ़ावा दिया जाएगा। इसके लिए राम, कृष्ण और बुद्ध सर्किट बनाए जाएगे। सरकार सम्हालने के बाद सीएम के कदम लगातार इसी ओर बढ़ रहे है।
सर्किट की बात बजट में शामिल हो चुकी है। हिंदुओं की आस्था वाले स्थानों को लेकर सरकार के जुड़ाव और उनके विकास के लिए समर्पण का संदेश देना पहले ही दिन से नवरात्र पर शक्तिपीठों को २४ घंटे बिजली और वहां के साफ-सफाई का आदेश देकर शुरू कर दिया था। मथुरा-वृंदावन तथा अयोध्या को नगर निगम का दर्जा देकर सरकार इसी दिशा में आगे बढ़ी। इन स्थानों सहित हिंदुओं की आस्था से जुड़े अन्य केंद्रों को लगातर बिजली और इनके विकास के लिए कई कार्य प्रारंभ कराकर यह संदेश देने का प्रयास किया गया कि ये जगह सरकार की शीर्ष प्राथमिकताओं में शुमार है। सीएम शायद इस बात को समझते है कि मामला सिर्फ कार्य कराने से नहीं बनेगा बल्कि इनके प्रति सरकार की आस्था और समर्पण के भाव का संदेश भी जनता के बीच जाते रहना चाहिए। योगी आदित्यनाथ ने इस कार्य की जिम्मेदारी खुद अपने कंधों पर ली।
सीएम योगी प्रदेश के सांस्कृतिक पयर्टन की बा्रंडिंग में खुद जुटे है। अयोध्या में दीपावली मनाकर राम की नगरी को सांस्कृतिक विरासत की दृष्टि से विश्व भर में चर्चा में ला चुके योगी ने कृष्ण नगर मथुरा में ब्रज की होली को भी दिव्यता-भव्यता दिलाने के लिए वहां पहुंचे। सीएम ने मथुरा में तत्समय कहा कि ‘यह प्रदेश राम, कृष्ण और शंकर की भूमि है। ऋषियों-मुनियों-साधु-संतो-योगियों की भूमि है। ये हमारी धरोहर है। हमे इनके प्रति गौरव अनुभव करना चाहिए। इन स्थलों का भौतिक विकास भी होना चाहिए। हमने ब्रज के विकास के लिए तीर्थ विकास परिषद का गठन कर बजट में सौ करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। कृष्ण ने यहां जन्म भले लिया हो लेकिन वह अखंड भारत के आराध्य है। उन्होंने पूरब को पश्चिम से तो उत्तर को दक्षिण से जोडऩे का कार्य किया। वे देश के हर स्थल की संस्कृति में देखने को मिलते है। उन्होंने दुनिया को प्रेम की भाषा सिखलाई। ’