
भदरसा। फैजाबाद शहर से 10 किमी दूर।यहीं पर बिब्बो पैदा हुई।उस समयकौन जानता था कि यह बच्ची भविष्य की मल्लिका ए गजल बेगम अख़्तर है। तबका भदरसा गांव अब छोटा सा अलसाया हुआ कस्बा बन चुका है। दर्द से भीनीभीनीकपकपाती आवाज बेगम अख्तर की पहचान बनी। दुनिया ने उनको जाना लेकिनउसी भदरसा ने अपनी बेटी को बिसार दिया। भदरसा के मिरियासी मोहल्ले में बिब्बोकहां पैदा हुई, उस स्थान की पहचान करना भी मुश्किल हो गया है। अवध कीराजधानी रही फैजाबाद की अदबी जमीन बहुत उर्वर रही है। यहाँ की माटी नेसंस्कृति के नायाब हीरे दिए, जो आज भी जगमगा रहे है। यहां की सांस्कृतिकपरंपरा की पहचान बेगम अख्तर है। मीर अनीस है। बृज नारायण चकबस्त हैं।शलभ श्री राम सिंह है। मजाज रुदौलवी है। डॉक्टर राम मनोहर लोहिया औरआचार्य नरेंद्र देव भी है। मिर्जा मुहम्मद रफी सौदा भी है। सौदा पैदा हुए दिल्ली मेंलेकिन उनके जीवन की सांझ बेला की जमीन फैजाबाद ही रही। बेगम अख्तर कीयादों को संजोने के लिए अवध विश्वविद्यालय ने महत्वपूर्ण प्रयास किया है लेकिनसाथ ही यह भी सवाल उठता है कि मीर अनीस, बृज नारायण चकबस्त, सौदा, लोहिया और आचार्य, इन सब की यादों का क्या होगा ? क्योकि शलभ और मजाजरुदौलवी को छोड़कर अवध के इन विभूतियों से जुड़ी निशानियों को वक्त के थपेड़ोंने मिटा दिया है। शलभ और मजाज का पैदाइशी घर मसोढा और रुदौली मे अब भीहै।
मल्लिका ए गजल बेगम अख्तर के नाम से प्रसिद्ध अख्तरी बाई फैजाबादी के नाम परअवध विश्वविद्यालय संगीत कला अकादमी खोलने जा रहा है। इसका ब्लू प्रिंटतैयार हो गया है। इसके निर्माण पर 42 करोड़ ख़र्च होगा। सात स्वरों सा-रे -गा -मा -पा -धा -नि के नाम पर सात फैकल्टी बनेगी। ये सभी एक बड़े हाल से कनेक्टहोगी। एक भव्य प्रवेश हाल भी बनेगा, जहां संगीत का म्यूजियम सजेगा।
अवधविश्वविद्यालय ने आईटी के नए परिसर के पास उपलब्ध 35 एकड़ के खाली पड़ेजमीन के एक हिस्से में नौ हजार 951 वर्ग मीटर में बेगम अख्तर संगीत कलाअकादमी बनाने की तैयारी पूरी कर ली है। प्रोजेक्ट रिपोर्ट के मुताबिक इसे बनाने मेंकुल लागत 42 करोड़ 66 लाख 36 हजार रूपए आएगी। आर्किटेक्ट अनुपमअग्रवाल ने इसकी डिजाइन तैयार की है। इसमें कुल नौ हाल बनेंगे। जिसमें मध्य मेंसबसे बड़ा हाल सभी अन्य हाल से सीधा संयोजित होगा। सात हाल एक साइज केहोंगे। कुल सातों फैकल्टी में विद्यार्थियों के प्रशिक्षण का इंतजाम होगा। सभीफैकल्टी मे संगीत की अलग-अलग विधाएँ सिखाई जाएगी। फैकल्टी ‘ सा’ का रंगनीला, रे का लाल, गा का पीला, मा का मध्यम नीला, पा का मध्यम लाल, मा कामध्यम पीला तथा नि का हल्का नीला रंग होगा। बेगम अख्तर पर अवधविश्वविद्यालय ने कार्यक्रमों का आयोजन भी शुरू कर दिया है। इसी क्रम में अवधविश्वविद्यालय के विवेकानंद सभागार में बेगम अख्तर की शिष्या रेखा का कार्यक्रमहुआ। विश्व विद्यालय देश के विभिन्न हिस्सों में बेगम अख़्तर की याद मे चैरिटीकार्यक्रम आयोजित करने की दिशा मे प्रयासरत है। इन आयोजनो से संगीतएकेडमी के निर्माण के लिए धन की भी प्राप्ति हो जाएगी। इसके अलावा संस्कृतिमंत्रालय को भी विश्वविद्यालय ने प्रस्ताव भेजा है। विश्वविद्यालय को उम्मीद है किवहां से भी धन इस मद में मिल जाएगा। डॉक्टर राम मनोहर लोहिया अवधविश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित ने कहा कि ‘ संस्कृति के संरक्षणऔर संवर्धन में शैक्षिक संस्थानों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इसी भूमिका कानिर्वहन करने में लगा हुआ हूं। बेगम अख्तर के नाम पर यहां जो एकेडमी बनेगी,उससेसंगीत के क्षेत्र में यह इलाका नई पहचान हासिल करेगा। बेगम अख्तर की शिष्यारेखा सूर्य को विजिटिंग प्रोफेसर बनाने का निर्णय विश्वविद्यालय ने लिया है।’
अवध विश्वविद्यालय कार्यपरिषद के सदस्य ओम प्रकाश सिंह ने कहा कि ‘ साहित्य, कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में अवध की विभूतियों के योगदान के भुलाया नहीं जासकता है। विश्वविद्यालय की भवन नामकरण समिति का सदस्य भी हूं और इस केनाते मैं यह कह सकता हूं कि एकेडमी की सातों फैकल्टी इस क्षेत्र के विभूतियों केनाम पर होगा।’
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बीसवीं शताब्दी के तीसरे दशक में कोलकाता की मशहूर रिकॉर्डिंग कंपनी मेगा फोनरिकार्ड्स की मशहूर गायिका अख्तरी बाई फैजाबादी का जन्म 7 अक्टूबर 1914 को फैजाबाद के भदरसा में हुआ था। सौ साल बाद भी वह पहले से ज्यादा सुनी जारही है। उनकी खनकती आवाज का जादू बरक़रार है। दर्द मे डूबे स्वर के साथ बहजाने के लिए रसिक जन आज भी उन पर फिदा है। उन्हें याद करना एक सदी केसांगीतिक सफर पर चलने जैसा है। इसी बहाने उस समय के लखनऊ और फैजाबादशहरों के साथ ही आज बिल्कुल बेनूर हो चली उस पारंपरिक महफिलों की संगीतको भी याद कर सकते हैं। बेगम अख़्तर ने शास्त्रीय संगीत की परंपरागत तालीमपटियाला घराने के उस्ताद मोहम्मद खां और किराना घराने के उस्ताद अब्दुल वाहिदखान से सीखी। पटियाला घराने की गंभीर गायकी में अपने उस्ताद से गजल,ठुमरीऔर दादरा सीखने में व्यस्त रही। यह गौरतलब है कि उसी समय बेगम अख़्तर नेकिराना घराने से ख्याल की बारीकियों को भी सीखा। मल्लिका ए गजल कीकपकपाती आवाज शब्दों की सत्ता को चिरंतन बना देती थी। अमरता के अनहदनाद से गुंजायमान कर देती थी। कई गीत ऐसे है जिनके जरिए उन्हे बेहद सघनताऔर तीव्रता से याद किया जाता रहा है। कैसी ये धूम मचाई कोयलिया, मत करपुकार जियारवा लागे कटार, हमरी अटरिया पे आओ रे सांवरिया देखा देखी तनिकहुई जाए, जरा धीरे से बोलो कोई सुन लेगा, चला गया परदेसिया नैना लगाए ..जैसेगीतों का खजाना प्रमुखता से शामिल है।
शायर सलाम जाफरी ने पुरानी यादों को ताजा करते हुए कहा कि ‘ रीड गंज स्थितडॉक्टर अख्तर साहब के यहां मेहंदी मंजिल में बेगम अख्तर की महफिल जमतीरहती थी। मैं छोटा था। श्रोता के रूप में उनको सुना और देखा भी। उस जमाने केअदब को आज की पीढ़ी को बताना जरूरी है। आने वाले वक्त के लिए इन पर फिल्मबननी चाहिए। लेकिन यह जरूरी है कि फैजाबाद के ही लोग उसमें हो। बाहर केलोग अक्सर तोड़-मरोड़कर चीजों को प्रस्तुत कर देते हैं।’
बेगम अख्तर ने फिल्मों में भी काम किया। उन्होंने कई फिल्मों में अदाकारा के तौर परअपनी उपस्थिति सिनेमा के रूपहर्ले पर्दे पर दर्ज कराया। एक दिन की बादशाहत,नल दमयंती, अमीना, मुमताज बेगम, जवानी का नशा, नसीब का चक्कर औररोटी आदि है। यह भी कहा जाता है कि प्रसिद्ध संगीतकार मदन मोहन के साथ अपनेदोस्ताना रिश्ते के चलते बेगम अख्तर उन्हे सलाह दिया करती थी। अप्रतिम गायिकाबेगम अख्तर ने भारतीय उप शास्त्री गायन और गजलों की दुनिया में बिल्कुल नए ढंगका युग रचा है। दर्द मे डूबी व कंपकंपाती बेगम की आवाज 30 अक्टूबर 1974 कोअहमदाबाद में हमेशा के लिए शांत हो गई। वहां के टाउन हॉल में अपने जीवन कीआखिरी संगीत सभा के लिए गई हुई थी। बेगम अख्तर की गाई हुई कुछ गजलों केजरिए उनके योगदान को नमन करते हैं। ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पर रोना आया.., उल्टी हो गई सब तदबीरें.., कुछ तो दुनिया की इनायत ने दिल तोड़ दिया…, पहलेउल्फत के हवाले पर हंसी आती है…,वह जो हम में तुम में क़रार था आदि है। रीडगंजस्थित मेहंदी मंजिल के जमशेद अख्तर ने कहा कि ‘ हमारी याद में हमारे घर परबेगम अख्तर दो बार आई थी। आखिरी बार तब,जब वह अपना मकान बेचने के लिएआई थी। उन्होंने मुन्नू भाई को अपना मकान बेचा। जमशेद ने कहा कि ‘ हमारेवालिद क्लासिकल म्यूजिक को सपोर्ट करते थे। बेगम अख्तर के नाम परविश्वविद्यालय बड़ा काम करने जा रहा है। संगीत तो सब को जोड़ता है यह एकअच्छा प्रयास है।’
बेगम अख्तर की यादों को संजोने के लिए जागरूक नागरिक समिति दो दशक सेआंदोलन करती रही है।बेगम अख्तर की जन्म शताब्दी वर्ष पर उनके नाम पर नगरपालिका फैजाबाद ने एक सड़क का नामकरण किया जो उनके घर के सामने सेगुजरती है। जागरूक नागरिक समिति के अध्यक्ष शिव कुमार फैजाबादी ने कहा कि‘ वर्षो की मेहनत के बाद बेगम के नाम पर एक रोड का नामकरण हो पाया। यहसौभाग्य की बात है कि विश्वविद्यालय ने बेगम की यादों को संजोने के लिए बड़ानिर्णय लिया है। हमें उम्मीद है कि अब जो भी बाहर से बेगम की यादों को टटोलने केलिए यहां आएगा तो उसे कम से कम उनके नाम पर विश्वविघालय मे कलाअकादमी मिल जाएगी। हमें उम्मीद है कि इस अकादमी के जरिए संगीत के क्षेत्र मेंएक नई पौध तैयार होगी। ‘ भदरसा के मिरियासी मोहल्ले के शबीहुल हसन उर्फपप्पू भाई ने अपने मकान के पीछे तरफ के हिस्से की ओर इशारा करते हुए कहा कि ‘ यहीं पर बेगम अख्तर का जन्म हुआ था इमामबाड़ा में आज भी वह मिंबर मौजूद हैजिस पर बैठ कर बेगम ने पहली बार मोहर्रम मे मरसिया गाया था। माना जाता है किउनकी आवाज मे इतना दर्द था कि परिंद और चरिंद ख़ामोश हो गए थे।’ पप्पू भाई नेएक डायरी सम्हाल कर रखी है क्योंकि देश विदेश से भदरसा आने वाले संगीतरसिको ने उसी मे अपने भाव दर्ज किए है।
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बृज नारायण चकबस्त एवं मीर अनीस का शायरी में बड़ा नाम है। अदबी जगत की येदोनो सख्सियत गंगा जमुनी तहजीब की शानदार मिसाल है। अनीस और चकबस्तका नाम वाचिक परंपरा में एक साथ ही लिया जाता है। बृज नारायण चकबस्त काजन्म 19 जनवरी 1882 को राठ हवेली के पास कश्मीरी मोहल्ला में हुआ था। येकश्मीरी मूल के थे। मुजाबीने चकबस्त, सुबहे वतन और कमला इनकी प्रमुखकृतियों में शुमार है। मुंशी प्रेमचंद और बृज नारायण चकबस्त के बीच गहरी दोस्तीरही। प्रेमचंद के पत्र सुबहें उम्मीद में चकबस्त नियमित रूप से लिखते थे। लेकिन यहदुर्भाग्य है कि रीडगंज स्थित अनीस चकबस्त पुस्तकालय में सुबहें उम्मीद की एक भीप्रति नही है।
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मीर बाबर अली अनीस का जन्म 1803 रीडगंज स्थित गुलाब बाड़ी के पास हुआथा। मीर अनीस मर्सिया के प्रमुख कवि के रूप में जाने जाते हैं। फारसी,हिंदी ,अरबीऔर संस्कृत शब्दों को अपनी रचना ने स्थान दिया। मरसियो की रचना के अलावारुबाइयां और गजल भी लिखी। मीर अनीस की संपूर्ण रचनाए पाँच खंडों मेंप्रकाशित है। मिर्जा मोहम्मद सौदा का जन्म तो दिल्ली में हुआ लेकिनदिल्ली,फर्रुखाबाद ,लखनऊ होते हुए जीवन की साँझ बेला में फैजाबाद आ गए।खुशवंत सिंह जैसे नामचीन लेखकों का मानना है कि मिर्जा सौदा की मृत्यु लखनऊ मेंहुई लेकिन तीन वर्ष पहले फैजाबाद आए ज्ञानपीठ सम्मान से अलंकृत कविकेदारनाथ सिंह ने यह रहस्योद्घाटन कर हम सभी को चैका दिया कि सौदा की मृत्युफैजाबाद में हुई और सौदा की कब्र भी यहीं पर है।तत्समय हुई मुलाकात में उन्होंनेमुझे जिम्मेदारी सौंपी थी कि तुम्हें पता लगाना है कि सौदा की कब्र फैजाबाद में कहांपर है। डॉक्टर सदानंद शाही, डॉक्टर अनिल सिंह व स्वप्निल श्रीवास्तव भी उससमय मौजूद थे। मैंने सौदा की कब्र को तलाशने की कोशिश की लेकिन कोईजानकारी नहीं मिल पाई और इसी बीच केदारनाथ सिंह ने भी इहलीला का संवरणकर लिया। डॉ राम मनोहर लोहिया का जन्म फैजाबाद जिले के अकबरपुर तहसील(अब अंबेडकर नगर जिला ) में हुआ था। अकबरपुर के शहजादपुर मोहल्ले मे डा. लोहिया से जुड़ी तत्समय की स्मृति मौजूद नही है। आचार्य नरेंद्र देव का जन्मफैजाबाद शहर के रीडगंज मोहल्ले में हुआ। सफेद रंग की आचार्य जी की कोठी दोवर्ष पहले होटल में तब्दील हो गई। इन विभूतियों से जुड़ी निशानियाँ मिट गई।भावना का चरम आवेग हो तो ईट-पाथर और माटी भी मौन संवाद करने लगता है।अब ऐसे ही संवादों का सहारा बचा है।
असरारुल हक मजाज का जन्म 19 अक्टूबर 1911 को फैजाबाद के रुदौली मेंजमीदार खानदान में हुआ था। इन्हें हम मजाज रुदौलवी व मजाज लखनवी के नामसे भी जानते हैं। इंकलाबी शायर के रूप में इन की खास पहचान है। मजाज की‘आवारा ‘ गजल बेहद चर्चित रही-
शहर की रात और मैं नाशाद और नाकारा फिरूं। जगमगाती जागती सड़कों परआवारा फिरूं। गैर की बस्ती है कब तक दरबदर मारा फिरूं। ए गम-ए-दिल क्याकरूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं। मजाज की कृतियां आहंग,नजरें दिल , ख्वाबे -शहर और वतन -आशेब है। मजाज को महज 44 वर्ष की जिंदगी मिली। लखनऊके लाल बाग में 1955 में दिसंबर की सर्द रात में एक कमीज और जैकेट पहने एकछत पर बेहोशी की हालत में पाए गए और फिर उनकी मृत्यु हो गई फिलहाल मजाजका पुश्तैनी घर रुदौली मे है।
बाबा नागार्जुन ने शलभ श्री राम सिंह को कविता के नए गोत्र का सर्जक कहा। यहनया गोत्र युयुत्सासवाद के रुप में साहित्य जगत में जाना गया। शलभ जी का जन्मभी तत्समय के फैजाबाद जिले के मसोढा गांव में हुआ था। फैजाबाद को दो दशकपहले दो भागो मे बाट दिया गया। अब मसोढा गाँव अंबेडकर नगर जिले मे है। उनकीएक नज्म बहुत चर्चित रही-‘ नफस-नफस कदम-कदम। बस एक फिक्र दम-ब-दम। घिरे हैं हम सवाल से। हमें जवाब चाहिए। जवाब दर सवाल है कि इंकलाबचाहिए। इंकलाब जिंदाबाद..।’ शलभ श्री राम सिंह का पुश्तैनी घर मसोढा गाँव मेंमौजूद है। शलभ की यादों को सुरक्षित रखने के लिए उनके वंशजों ने कलात्मकदृष्टि का परिचय दिया है। शलभ के समय की माटी की दीवारों को सुरक्षित रखतेहुए ईट पाथर का नया घर बनाया है। शलभ के रिश्ते मे पौत्र अंशुमान सिंह ने कहाकि ‘ अवध विश्व विधालय ने बाबा के नाम पर अपने एक भवन का नामकरण करउनके योगदान को याद किया है। हम लोग भी अपनी भूमिका निभा रहे है।

