
आगे अपने व्याख्यान में रामबहादुर राय ने जेपी (जयप्रकाश नारायण) की डायरी का उल्लेख करते हुए इमरजेंसी के संदर्भ में पैदा हुई भ्रांति और क्रांति को समझने की आवश्यकता पर बल दिया। वे प्रभाष परंपरा न्यास की ओर से गांधी स्मृति दर्शन के सत्याग्रह मंडप में आयोजित 16वें ‘प्रभाष प्रसंग’ कार्यक्रम में अपनी बात रख रहे थे।
अपने व्याख्यान के प्रारंभ में रामबहादुर राय ने मशहूर फिल्मकार सत्यजीत रे की भूतहा कहानी संग्रह का जिक्र करते हुए कहा कि आपातकाल उसी भूतहा कहानी जैसा है, जो शुरू में खौपनाक डर पैदा करता है और अंत में आनंदमय डर। आगे उन्होंने कहा कि बौद्धिक प्रपंच रचते लोग यह बताते रहे हैं की इमरजेंसी के लिए जितनी दोषी इंदिरा गांधी थी, उतने ही दोषी जेपी भी थे! इसलिए इमरजेंसी की भ्रांति और क्रांति को समझने की आवश्यकता है। संविधान हत्या दिवस जैसे शब्द को सही ठहराते हुए श्री राय ने कहा कि गहरी निंद्रा को तोड़ने के लिए कठोर शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।
इस कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि शिरकत कर रहे केंद्रीय संस्कृति मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा, “प्रभाष जोशी एक निर्भीक पत्रकार थे, जिन्होंने इमरजेंसी के दौरान सरकार
को अपनी बेबाक लेखनी से झकझोर दिया। उन्होंने हिंदी पत्रकारिता को राष्ट्रीय मंच पर स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।” आगे उन्होंने कहा कि प्रभाष जी ने लोकोन्मुख पत्रकारिता की और अपने व्यक्तित्व को भी लोकोन्मुख बनाया। केंद्रीय मंत्री श्री गजेंद्र सिंह ने कहा कि संविधान हत्या दिवस के 50 वर्ष पूरे होने पर देश भर में उसे समझने के लिए कार्यक्रम करने की जरुरत है! इस दौरान उन्होंने प्रभाष जी से जुड़े संस्मरण भी सुनाए।

कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के तौर पर उपस्थित रहे मध्यप्रदेश के उपमुख्यमंत्री श्री राजेन्द्र शुक्ल ने प्रभाष जोशी के इंदौर से जुड़ाव और उनकी पत्रकारिता में नैतिकता व सुचिता पर प्रकाश डालते हुए कहा, “25 जून 1975 को देश में एक राजनीतिक अपराध हुआ था, जिसने लोकतांत्रिक मूल्यों को गहरी ठेस पहुंचाई। नई पीढ़ी को इस इतिहास से सीख लेनी चाहिए।” उन्होंने प्रभाष जोशी की रिपोर्टिंग शैली का उल्लेख आचार्य विनोबा भावे की यात्रा के संदर्भ में किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ पत्रकार पद्म-श्री जवाहरलाल कौल ने कहा कि प्रभाष जी के कुछ विचार हमसे अलग थे। लेकिन मतभेद के बावजूद हम एकमत हो जाते थे। प्रभाष जी एक संपादक के साथ साथ विराट पुरुष भी थे। उनका विराट व्यक्तित्व उनके विचार और कृतित्व ने बनाया। उन्हें पढ़ना आज अति प्रासंगिक है। यदि वे आज होते तो लोकतंत्र की वर्तमान यात्रा को और अधिक गहराई से देख रहे होते।
कार्यक्रम का समापन सुप्रसिद्ध लोकगायक प्रहलाद सिंह टिपाणिया के कबीर गायन से हुआ! उन्होंने अपने गायन से उपस्थित जनसमूह को आध्यात्मिक रस में सराबोर कर दिया। इससे पूर्व वरिष्ठ पत्रकार मनोज मिश्र ने प्रभाष परम्परा न्यास के संदर्भ अपनी बात रखी। इस दौरान दो पुस्तकों “जनसत्ता के प्रभाष जोशी” और “इमरजेंसी के पचास साल” का लोकार्पण हुआ।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. प्रभात ओझा ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन प्रभाष प्रसंग की ओर से राकेश सिंह ने किया।