आधुनिक समय का एक अच्छा उदाहरण है। आज चीन में कम्युनिज्म खत्म है। यह बात ठीक है लेकिन माओ एक बड़ा श्रेष्ठ नेता था। कुशल संगठक, श्रेष्ठ विचारक, कुशल सेनापति ऐसा माओ था। जापान ने जब हमला किया तब उस समय चीन की अवस्था ऐसी न थी।
जापान का मुकाबला चीन की राष्ट्रीय सरकार कर रही थी जिसका नेतृत्व च्यांगकाई शेक कर रहे थे। उसके खिलाफ कम्युनिस्ट लड़ रहे थे। कम्युनिस्टों को ऐसा दिखाई दिया च्यांगकाई शेक जापान का मुकाबला नहीं कर सकता। कम्युनिस्ट भी जापान का मुकाबला अकेले नहीं कर सकते थे और च्यांगकाई शेक को भी उखाड़ना चाहते थे। माओ ने च्यांगकाई शेक के साथ बात शुरू की।
च्यांगकाई शेक कम्युनिस्टों का दुश्मन था। च्यांगकाई शेक को खत्म करके, उसको उखाड़ के ही वहां कम्युनिज्म स्थापित करना था। लेकिन जापान ने जब संकट देख लिया तो उन्होंने वार्ता शुरू की और वार्ता में यह कहा कि आपकी और हमारी सेना मिलकर लड़ेंगे। तो उन्होंने कहा कि आप अपनी रेड आर्मी को समाप्त करो। आर्मी समाप्त नहीं करते यह जरा ज्यादा हो गया लेकिन एक बात हम जानते हैं। जो बात वह माने, वह अपमान कारक थी।
बात उन्होंने मानी कि हमारी रैड आर्मी इंटेक्ट रहेगी लेकिन हम आपकी कमान में आपका आर्डर मानेंगे। दोनों कट्टर दुश्मन। इसी को आगे चलकर उखाड़ना है और उखाड़ा भी। लेकिन जो कट्टर दुश्मन हैं उसको माओ ने यह वचन दिया कि आपकी सी.आई.सी. मानेंगे आपकी जो कमांड आएगी जो भी आदेश आएगा उसके मुताबिक हमारी सेना चलेगी। वैसा उन्होंने काम किया।
यह कोई बड़ा सम्मानजनक काम नहीं था। अपमानजनक था। लेकिन इसका विरोध केवल कुछ लोगों में हुआ। च्यांगकाई शेक के अंडर हम काम करें वह हमारा पक्का दुश्मन है व लोग नाराज हुए। किंतु जिसको कुछ बड़ा काम करना होता है उसको यह भी देखना होता है कि किस समय क्या करना है?
जय सिंह औरंगजेब की बड़ी सेना लेकर आए। बहुत प्रचंड सेना थी। शिवाजी का उसके सामने टिकना बड़ी मुश्किल था। शिवाजी ने विजय प्राप्त की थी। 32 किले उस समय शिवाजी के पास थे। आपको आश्चर्य होगा शिवाजी ने उस समय 32 में से 20 किले औरंगजेब को दिए कितना अपमानजनक था। 32 में से 20 किले दिए। केवल 12 किले रखे और बाकी जो हुआ वह सारा इतिहास बताने की आवश्यकता नहीं कि संग्राम में नहीं जाएंगे, औरंगजेब से मिलेंगे वगैरा।
यह कितना अपमानजनक समझौता मान लिया। किंतु यह समझ लीजिए कि सारे जो उदाहरण मैंने रखे कि कुछ आगे रहे कुछ पीछे हटे कुछ अपमानजनक परिस्थिति भी मान ली। किंतु कायर आदमी का मान लेना और बहादुर आदमी का मान लेना इसमें अंतर यह रहता है कि जो कायर होता है वह झुक जाता है जो झुक जाता है तो मर ही जाता है और जो बहादुर होता है वह समझता है, अरे यह प्रसंग है इस समय हमको झुकना पड़ेगा और थोड़ा पीछे हटना पड़ेगा अपमान की परिस्थिति आई है। लेकिन जब भी नीचे से हाथ निकलता है फिर से हम बदला लेंगे।
32 में से 20 किले दिए शिवाजी ने और 20 किले देने की अपमानदायक परिस्थिति के कारण लोगों में विफलता का भाव भी आया। उस समय मन में यह भाव निश्चय ही था कि हम 20 किले दे रहे हैं, 20 की बात क्या है? सारे हिंदवी स्वराज्य की हम स्थापना करने वाले हैं यह विषय लेकर यह 20 किले देने की सुलह की।
अफजल खान का सारा अपमान बरदाश्त किया यह क्या है? वह अपनी जान बचाकर छिप रहा है यह सारा अपमान उसने बरदाश्त किया किंतु मन में एक भाव यह भी था कि हम बढ़ते रहेंगे चाहे अपमानजनक सुलह कर लो हम तुम्हारी कमांड मानेंगे जो हमारा दुश्मन था किंतु साथ ही यह निश्चित था कि च्यांगकाई शेक को आगे चलकर उखाड़ने वाले हैं। माओ के समान विजय का विश्वास लेकर जो इस तरह की सुलह करते हैं उनकी तुलना कायरों से नहीं हो सकती। जैसे एक मिट्टी का बॉल है और एक रबड़ का बॉल है। रबड का बॉल नीचे डालें तो वह नीचे जाता है तो इस विश्वास के साथ जाता है कि जो मुझे नीचे पटक रहा है, मैं नीचे जाऊंगा लेकिन इसके सिर पर ऊपर उठकर जाऊंगा, तो नीचे पटकने वाले के सिर पर वो रबड़ का गेंद चला जाता है।
और कायर मिट्टी का गेंद है जिसे यदि किसी ने जमीन पर पटक दिया तो सज्जन आदमी के समान जमीन पर ही रहता है। हम कौन हैं? हम मिट्टी का गेंद हैं या हम रबड़ का गेंद हैं? यह सवाल आ जाता है। तो यहां आशय समझना कि रणनीति के नाते कभी-कभी यह कहना पड़ता है। बाकी रास्ता आगे क्या है? यह हम समझ सकते हैं। किंतु तुरंत रास्ता नहीं है तब तक यह बर्दाश्त करना पड़ेगा।……
साल 1990 में आरएसएस के लुधियाना के सम्मेलन में दत्तोपंत ठेंगड़ी